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  •  लोगों में उदासी के चलते बाजार में चहल-पहल घटी

साक्री. रक्षाबंधन का त्योहार भारतीय संस्कृति की अनोखी विरासत है. हर वर्ष भाई-बहन के प्यार को दर्शाता, बहन की सुरक्षा का वचन दोहराने वाला यह त्यौहार बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है, लेकिन इस वर्ष ये पवित्र त्योहार बड़ा ही फीका रहा है. न राखी , ना मिठाई , बहन-भाई का ना ही मिलना हो पाया है. कोरोना ने त्योहार की रंगत ही मानो हर ली है.

चाहकर भी नहीं जा पाए

 बहन के घर राखी बंधवाने जाता भाई या भाई के घर राखी बांधने आती बहन यातायात के सार्वजनिक साधन बंद होने के चलते चाहकर भी नहीं जा पाए. यही नहीं, पहले अगर प्रत्यक्ष मिलने की संभावना नहीं होने की सूरत में बहन अपना प्यार राखी में पिरोकर डाक लिफाफे के द्वारा भेज दिया करती थी. कोरोना के संक्रमण के भय से बहनों का ये आनंद भी छीन गया है. बस मोबाइल के जरिए संदेश का आदान-प्रदान ही भाई-बहन के दरमियान संभव हो पाया है.

हर वर्ष होता था लाखों का कारोबार

हर वर्ष लाखों रुपए का कारोबार राखियों, नारियल, दूध बिक्री, घर में बननेवाले पकवानों,  मिठाइयों में इस त्योहार के मनाने पर होता था.  चार दिन पहले मिठाइयों की त्योहार हेतु होनेवाली मांग को देखते हुए मिठाईवाले व्यस्त हो जाते थे.

संक्रमण के डर से डाक से नहीं भेजी राखी

डाक विभाग के कर्मी त्योहार के 8 दिन पहले और बाद में पूरा पखवाड़ा राखियों के लिफाफे घर-घर पहुंचाने में व्यस्त रहते थे. हाल के दिनों में कुरियर व्यवस्था को इस का लाभ मिलने लगा, लेकिन हम तो राखियों को ढंग से सैनिटाइज कर के देंगे, लेकिन डाक विभाग, पोस्टमैन या कुरियर वाला ना जाने मेरे परिजन को राखी का लिफाफा देने के साथ संक्रमण की सौगात ना दे दे का डर इस कोरोना काल में हर बहन-भाई के दिल में होगा, इसमें कोई आश्चर्य नहीं. इसी के चलते डाक या कुरियर सेवा का इस त्योहार का धंदा मंदा रहा.

बाजार में फीके रहे पकवान

बाहरी कोई खाने की चीज या मिठाई लेने के बारे में भी अधिकतर समाज का मानस फिलहाल तैयार नहीं है. होटल और मिठाई बनानेवाले भी इस उहापोह की स्थिति में थे कि अगर ऐसी स्थिति में मांग घटती है तो बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा. जिस के चलते मिठाई बाजार में भी पकवान फीके ही रहे. पेड़े और लड्डुओं की खपत ना के बराबर है, शेष महंगी मिठाइयों का सवाल ही नहीं.

यातायात पर बंदिशें कायम

अभी भी सार्वजनिक परिवहन वाहन के यातायात पर पाबंदियां कायम हैं, और तो और जनता भी सार्वजनिक वाहनों से सफर करने पर परहेज कर रही हैं.जिसकी वजह से परिवहन व्यवसाय की लुटिया डूबी हुई है, जिससे चहलपहल नदारद है.

कोरोना से कारोबार खटाई में

राखियों का कारोबार भी इस वर्ष खटाई में रहा. क्योंकि बाजार में नजर आता हुआ मंदी का दौर और इसी के चलते नई राखियों की मांग नहीं रहने के आदेशों से व्यापारीयों ने  उत्पादन कम रखा, बाजार में भी कम उतारा गया. राखियों की दुकानें भी अपेक्षाकृत बहुत कम रही. जनता में भी नई राखियां खरीदने के बजाए घर में विगत वर्ष की पुरानी राखियों को ही काम मे लाने का रुझान रहा. जिसका प्रभाव बाजार पर हुआ.