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स्मार्टफोन खरीदने में कई परिवार सक्षम नहीं

घर बैठे पढ़ रहे छात्र,  अभ्यास कराने में जुटे शिक्षक

साक्री. विद्यालय बंद हैं, अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजना नहीं चाहते,  लेकिन शिक्षा विभाग चाहता है कि स्कूल जितना जल्दी हो खोले जाएं. इन सभी  परिस्थियों में शिक्षकों ने अपनी जिम्मेदारी समझते हुए विगत तीन हफ्ते से बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया है. 1 जुलाई को स्कूल खुलने वाले थे, किंतु कोरोना का प्रकोप है कि थमने का नाम नहीं ले रहा है. उल्टे दिन-ब-दिन उग्र रूप धारण कर रहा है. जिसके चलते कोई भी शिक्षा संस्थान स्कूल खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है. इस आनलाइन शिक्षा में बच्चों के पास स्मार्टफोन होना जरूरी है. आर्थिक रूप से संपन्न लोेगों के लिए स्मार्ट फोन खरीदना कठिन नहीं है,  लेकिन लाकडाउन में रोजगार गंवा चुके लोगों के पास इतना पैसा नहीं है कि वे बच्चों को स्मार्ट फोन खरीद सकें. उनके सामने बच्चों की शिक्षा गंभीर समस्या बन चुकी है. 

उहापोह की स्थिति में शिक्षक,  अभिभावक

कोरोना महामारी की वजह से सभी शिक्षा संस्थान अभी भी बंद हैं. शिक्षा विभाग,  शिक्षक, शिक्षा संस्थानों के चालक,  विद्यार्थी, व उनके अभिभावक भी उहापोह की स्थिति में हैं. जैसा कि शिक्षा विभाग द्वारा हर वर्ष की तरह 15 जून को नए शैक्षिक वर्ष की शुरुवात घोषित कर दी है. शिक्षा विभाग चाहता है कि अगर इस माहौल में संस्थान को स्कूल चलाने में कोई दिक्कत नहीं है तो शिक्षा विभाग को भी कोई एतराज नहीं है. इसी रुख को देखते हुए कई शिक्षा संस्थानों एवं शिक्षकों ने बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया है. चाहे वे ऑनलाइन हैं या सोशल मीडिया द्वारा शिक्षक स्वतः अपनी अध्यापन सामग्री कम्प्यूटर,  लैपटॉप, मोबाइल जैसे साधनों के इस्तेमाल से बनाने में और ऑनलाइन ढूंढने में अपना समय लगा रहे हैं. 

कक्षानुसार विद्यार्थियों का बनाया गुट

शहर के न्यू इंग्लिश स्कूल व जूनियर कालेज  में प्राचार्य एम.एम.सूर्यवंशी,  उपप्राचार्य प्रो.राजेंद्र अग्रवाल,  उपमुख्याध्यापक वी.डी. देसले,  पर्यवेक्षक एच.वी.नांद्रे,  पी.बी.ढोले अपने साथी शिक्षकों के साथ बच्चों को पढ़ाने के उपायों पर चर्चा करने हेतु बुधवार को इकट्ठा हुए. जहां शिक्षकों ने अपने विगत तीन हफ्ते से चल रहे प्रयासों की जानकारी दी.

व्हाट्सएप्प,  फेसबुक,  यू-ट्यूब,  गूगल के पढ़ाई को मददगार ऐप,  सेमिनार की तर्ज पर वेबिनार आदि जैसे सोशल मीडिया मंच पर विद्यार्थियों के कक्षानुरूप गुट बनाए गए. उक्त कक्षा के सभी अध्यापक बारीबारी से पठनीय अध्ययन सामग्री परोस रहे हैं. बच्चों को गृह कार्य भी दिया जा रहा है. 

सोशल मीडिया पर सभी विषय उपलब्ध

सोशल मीडिया पर हर विषय की सामग्री उपलब्ध है,  जिसका उपयोग भी शिक्षक करते हैं. पावर पाइंट (पीपीटी),  प्रत्यक्ष व्याख्यान व अध्यापन की वीडियो कतरन (क्लिप),  आकृतियां आदि साधनों द्वारा स्वतः शिक्षक सामग्री तैयार करते हैं. विद्यार्थी शिक्षकों के अध्यापन सामग्री का अध्ययन करते हुए, शिक्षक-विद्यार्थियों के दरमियान सवाल-जवाब भी होते हैं. शिक्षकों के इन सब प्रयासों को विद्यार्थी और उनके अभिभावक पसंद भी कर रहे हैं. लेकिन दिक्कत तब पेश आती है,  जब ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट की सुविधाएं ठीक से नहीं मिलती हैं. वहीं स्मार्ट फोन खरीदना रोजगार गवां चुके लोगों के बश की बात नहीं  है. यही नहीं हर माह आवश्यक इंटरनेट सुविधा का खर्च अभी भी कई परिवार झेल पाने की स्थिति में नहीं है.