त्र्यंबकेश्वर. तहसील में कोरोना (Corona) के खिलाफ टीकाकरण (Vaccination) को लेकर बहुत कम प्रतिक्रिया नागरिकों की ओर से मिल रही है। हालांकि, कोरोना से बचाव के लिए गांवों (Villages) में तरह-तरह की दवाएं ली जा रही हैं। कोरोना से संक्रमित ना होने लिए विभिन्न प्रकार के घरेलू प्रयोग किए जा रहे हैं। इसके लिए पेड़ों की टहनी जिसे एक प्रकार की वनस्पती भी कहा जा सकता है, उसका भरपूर मात्रा में उपयोग किया जा रहा है। इसमें आम और नीम के पेड़ अधिक काम आ रहे हैं। उसमें नीम के पेड़ों में अधिकतर रोग प्रतिकारक शक्ति होती है इसलिए लोग इसे अधिक पसंद कर रहे हैं।
कुछ गांवों में पेड़ों से दवाएं निकाल कर देने वाले पारंपरिक लोग होते हैं। उनमें से अधिकतर इन दिनों सक्रिय हो गए हैं। कुछ वनस्पतियों का काढ़ा देते हैं, तो कुछ पेड़ों की छाल काटकर उसका चूर्ण बनाकर देते हैं। 2 बार या 4 बार खाने जितनी मात्रा में दवाई दी जाती है। कुछ भगत सुबह नाश्ते के पहले खाली पेट दवाई लेने की सलाह देते हैं। टीकाकरण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। साथ ही, यह गलत धारणा कि अस्पताल जाने से बीमारी बढ़ सकती है, ग्रामीण इलाकों में जड़ें जमा रही है, जिससे कोरोना का इलाज उलटा हो रहा है। टीकाकरण न करने और मास्क का उपयोग न करने के परिणामस्वरूप कोरोना के मरीज बढ़ते जा रहे हैं।
स्थानीय प्रशासन को देना होगा ध्यान
कृषि का खरीफ सीजन शुरू होने वाला है। खरीफ का काम शुरू होने के बाद अगर संक्रमण बढ़ता है तो इस पर काबू पाना मुश्किल हो सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले नीम हकीमों को सबक सिखाना प्रशासन के लिए जरुरी हो गया है। इसके लिए ग्राम पुलिस, सरपंच, ग्राम पंचायत सदस्यों एवं ग्राम सेवकों के संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है।