By नवभारत | Updated Date: Nov 10 2019 10:59PM |
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बंगलुरू. केंद्रीय जांच ब्यूरो ने कर्नाटक सरकार के कुछ सीनियर अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है. इन अधिकारियों पर आरोप है कि इन्होंने रिश्वत लेकर आईएमए घोटाला होने दिया. एक अलग एफआईआर में सीबीआई ने बेंगलुरु (शहरी) के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर बीएम विजय शंकर, बेंगलुरु नॉर्थ के तत्कालीन सब-डिवीजन अफसर एलसी नागराज और बेंगलुरु नॉर्थ डिवीजन के ही विलेज अकाउंटेंट मंजूनाथ के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा 7, 7(ए), 8 और 12 के तहत मामला दर्ज किया है.
निदेशकों से ली रिश्वत
सीबीआई के अनुसार, बी.एम. विजय शंकर और एल.सी. नागराज ने मंजूनाथ के माध्यम से आईएमए ग्रुप ऑफ़ कंपनीज के निदेशकों से अवैध लाभ प्राप्त किए. मंजूनाथ ने लेनदेन के लिए मध्यस्थ के रूप में काम किया. सीबीआई के प्रवक्ता ने कहा कि अवैध रूप से लाभ की मांग की गई थी और दोनों अफसरों ने आईएमए ग्रुप ऑफ कंपनीज की गैरकानूनी गतिविधियों की जांच में मदद करते हुए इनके अनुकूल सरकार को रिपोर्ट भेजी. केंद्रीय जांच एजेंसी के मुताबिक, विजय शंकर ने 1.5 करोड़ रुपये की मांग की थी जिसे मंजूनाथ और आईएमए कंपनी के एक निदेशक के माध्यम से एक रियल एस्टेट कंपनी को मुहैया कराया गया. एलसी नागराज ने भी कथित तौर पर लगभग 4 करोड़ रुपये प्राप्त किए. इस लेनदेन में मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे मंजूनाथ को 8 लाख रुपये दिए गए. आईएमए घोटाले में सीबीआई की यह तीसरी एफआईआर दर्ज की गई है.
15 ठिकानों पर छापेमारी
आईएमए घोटाला मामले में सीबीआई ने 15 ठिकानों की तलाशी ली जिनमें कर्नाटक पुलिस के कई अधिकारियों के ठिकाने भी शामिल हैं. आरोपों के मुताबिक पोंजी स्कीम के तहत आईएमए (आई मॉनेटरी एडवायजरी) ने निवेशकों के हजारों करोड़ रुपये का घोटाला किया है. इस केस का मुख्य आरोपी और आईएमए का संस्थापक मंसूर खान अभी सीबीआई की हिरासत में है. दुबई से लौटते वक्त उसे हिरासत में लिया गया था.
अधिकारियों ने दी क्लीनचिट
सीबीआई ने जिन ठिकानों की तलाशी ली उनमें तत्कालीन वित्तीय अपराध शाखा के आईजी हेमंत निंबालकर (आईपीएस), ईबी श्रीधर, सीआईडी के तत्कालीन डिप्टी एसपी अजय हिलोरी सहित 5 अन्य अधिकारियों के ठिकाने शामिल हैं. सीबीआई ने बंगलुरू के 11, मेरठ, मांड्या और रामनगरा में एक-एक ठिकानों पर छापे मारे. कर्नाटक के बेलगांव में भी एक जगह छापेमारी की गई. सीबीआई ने बताया है कि इन अधिकारियों ने आईएमए के मुताबिक रिपोर्ट तैयार की और कंपनी को क्लीनचिट देने में मदद की. इसके कारण आईएमए के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं हो सकी.