By नवभारत | Updated Date: Nov 21 2019 10:13PM |
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नागपुर. वर्ष 2012 के जिप चुनाव में नागपुर जिले की 59 सर्कल में से 22 सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार जीते थे. वहीं शिवसेना को 8 सीटें हासिल हुई थीं. दोनों ही पार्टियों को कुल 30 सीट मिलने से जिप पर उनकी युति का कब्जा हो गया था. युति ने अपने साथ आरपीआई के दीपक गेडाम और बसपा की पुष्पा वाघाड़े को शामिल कर पूरे कार्यकाल के लिए किसी भी तरह के तख्तापलट के खतरे की गुंजाइश को भी खत्म कर दिया था. गेडाम व वाघाड़े को सभापति बनाया गया था. उस चुनाव में कांग्रेस ने 19 व राकां ने 7 सीटें पायी थीं व गोंगपा से दुर्गावती सरियाम विजयी हुई थीं.
अपने बहुमत के चलते पूरे 5 वर्ष नहीं बल्कि एक्सटेंशन के सवा दो वर्ष सत्ता सुख अलग से भोगने वाले भाजपायियों की हालत इस बार होने वाले चुनाव में बिल्कुल उलट हो गई है. अब भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं बल्कि आला नेता भी भयभीत हैं कि जिप से उनकी सत्ता हाथ से न निकल जाए. क्योंकि अब यहां भी राज्य की तरह सेना-कांग्रेस-राकां की महाशिव आघाड़ी की सत्ता काबिज होने की पूरी संभावना बन चुकी है.
छूट गया साथी
विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद सीएम की कुर्सी के फिफ्टी-फिफ्टी बंटवारे के विवाद में भाजपा-सेना की महायुति टूट चुकी है. अब शिवसेना अपने सारे सिद्धांतों को ताक पर रखकर राज्य में कांग्रेस व राकां के साथ मिलकर सरकार बना रही है. स्वाभाविक रूप से इसका असर 7 जनवरी को राज्य की 5 जिला परिषदों के लिए होने वाले चुनाव में पड़ने वाला है. नागपुर में तो भाजपायी अभी से मान बैठे हैं कि वे जिप में अकेले दम पर सत्ता नहीं हथिया पाएंगे. हालांकि अभी से संगठन को मजबूत करने के साथ ही चुनावी रणनीति बननी शुरू हो चुकी है लेकिन अपने दम पर 30 सीटें जीतना उसके लिए काफी टेढ़ी खीर है. इस बार जिले में 58 सर्कल हैं लेकिन सत्ता में काबिज होने के लिए 30 सीटें ही चाहिए. गोंगपा, रिपाई और बसपा तो सत्ता के साथ ही जाते हैं.
कांग्रेस के हौसले बुलंद
विधानसभा चुनाव में जिले में भाजपा केवल हिंगना और कामठी को सुरक्षित बचा पायी. उसके हाथ से काटोल और उमरेड के साथ ही रामटेक की सीट भी निकल गई. सावनेर में तो कांग्रेस के सुनील केदार का डंका बरकरार रहा. ऐसे में इन 3 विधानसभा सीट के तहत आने वाले जिप सर्कलों में राकां व कांग्रेस की वजनदारी बढ़ गई है. पहले भी सावनेर में कांग्रेस और काटोल में राकां के जिप उम्मीदवारों का दबदबा कायम रहा है. इस बार उमरेड से भी भाजपा को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. जिले में अपनी सफलता से कांग्रेस व राकां खेमे में कार्यकर्ताओं के हौसले काफी बुलंद हैं. इस बार तो दोनों ही पार्टियों के लिए उम्मीदवारी के लिए भी दावेदारों की संख्या काफी बढ़ गई है.
शिवसेना भी उत्साहित
रामटेक में शिवसेना के पूर्व विधायक आशीष जायसवाल को टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा और भारी मतों से विजयी हुए. चुनकर आने के बाद वे वापस शिवसेना समर्थित विधायक बन चुके हैं. जिप चुनावों में रामटेक विधानसभा सीट के तहत आने वाले सर्कलों में इस बार उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा. शिवसेना के कार्यकर्ताओं का उत्साह देखते ही बन रहा है. भाजपा को यहां भी अपनी पूरी ताकत लगानी होगी. पूर्व पालकमंत्री के कामठी विस क्षेत्र में तो स्थानीय निकाय चुनाव में कांग्रेस पहले ही मजबूत स्थिति में रही है. 2012 के चुनाव में कामठी तहसील में आने वाले 4 जिप सर्कलों में से 3 पर कांग्रेस का कब्जा रहा था और 1 पर ही भाजपा आई थी.
कई दिग्गज मैदान से बाहर
इस बार जिप सर्कल आरक्षण में काफी बदलाव आ गया है जिसके चलते विद्यमान कई दिग्गज सदस्यों व सभापतियों का मैदान से बाहर होना तय नजर आ रहा है. केवल आशा गायकवाड़ व पुष्पा वाघाड़े के सर्कल ओपन में आने के चलते वे चुनाव लड़ सकती हैं लेकिन उपाध्यक्ष शरद डोणेकर, सभापति उकेश चव्हाण, दीपक गेडाम को तो चुनाव लड़ने के लिए दूसरे सर्कल की तलाश करनी होगी या मैदान से ही बाहर होना पड़ेगा. सत्ता पक्ष नेता मनोहर कुंभारे, कांग्रेस के दमदार सदस्य शिवकुमार यादव, विरोधी पक्ष नेता मनोहर कुंभारे, पूर्व सभापति शांताराम मडावी, उपासराव भुते, मनोज तितरमारे, पद्माकर कडू, नंदा नारनवरे, विनोद पाटिल, रूपराव शिंगणे, अरुणा मानकर, सुरेन्द्र शेंडे, जयकुमार वर्मा, कमलाकर मेंघर, शिवाजी सोनसरे, केशव कुमरे जैसे सीनियर सदस्यों का पत्ता आरक्षण से ही साफ हो गया है.