महंगाई घटी नहीं यह मंदी का आगाज

सरकार यह मानकर अपनी पीठ न ठोंके कि उसके प्रयासों से फरवरी में थोक महंगाई घटकर 2.26 प्रतिशत रह गई. वास्तविकता यह है कि मंदी की वजह से ऐसा हुआ है. लोगों के पास खरीदने को पैसे नहीं हैं. उद्योग बंद हुए

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सरकार यह मानकर अपनी पीठ न ठोंके कि उसके प्रयासों से फरवरी में थोक महंगाई घटकर 2.26 प्रतिशत रह गई. वास्तविकता यह है कि मंदी की वजह से ऐसा हुआ है. लोगों के पास खरीदने को पैसे नहीं हैं. उद्योग बंद हुए हैं, स्टाफ की छटनी हुई है, बेरोजगारी बढ़ी है. ऐसी हालत में मांग में गिरावट आई है. लोगों की क्रयशक्ति कम हो जाने की वजह से वे मन मसोस कर जी रहे हैं. इच्छा होने पर भी खरीद नहीं पा रहे या बेहद कम मात्रा में खरीदी कर रहे हैं. इसलिए मार्केट में उठाव नहीं है. यह सब आर्थिक सुस्ती या स्लोडाउन का नतीजा है. जब भी मंदी आती है, लोगों की हालत पतली हो जाती है. बाजार में बहुत कुछ प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होने के बावजूद शौक और उत्साह से की जाने वाली ग्राहकी नदारद है. त्योहारों पर भी इसीलिए रौनक नहीं देखी गई. जब मांग में उठाव नहीं रहेगा तो कीमतें घटेंगी ही. फरवरी में खाद्य पदार्थों व सब्जियों के थोक दाम में 14 प्रतिशत की गिरावट आई. इसके अलावा चाय 8 प्रतिशत, अंडा और मक्का 7-7 प्रतिशत, मसाले और बाजरा 4-4 प्रतिशत, चना और ज्वार 2-2 प्रतिशत तथा मीठे जल की मछलियां, सुअर मांस, रागी, गेहूं, उड़द और मसूर एक-एक प्रतिशत सस्ते हो गए. हालांकि समुद्री मछली और भैंसे का मांस 5-5 प्रतिशत, पान के पत्ते 4 प्रतिशत, मूंग और मुर्गे 3-3 प्रतिशत, बकरे का मांस 2 प्रतिशत तथा जौ, राजमा और तुअर एक-एक प्रतिशत महंगे हुए हैं. थोक में महंगाई कम भी हो जाए तो भी आम जनता को इससे कोई फायदा नहीं होता. वह तो चिल्लर या खुदरा खरीदी ही करती है. थोक में दाम कितने भी कम हो जाएं, चिल्लर बिक्री में दाम ऊंचे ही बने रहते हैं. इसका लाभ सिर्फ थोक व्यापारी या बिचौलिए को होता है. सामान्य व्यक्ति अपनी जेब देखकर जरूरत के मुताबिक ही खरीदी करता है. उसे कहीं कोई रियायत नहीं मिल पाती. इसलिए थोक महंगाई घटना सरकार के कदमों का परिणाम या उपलब्धि नहीं है बल्कि यह मंदी का आगाज है जिसने जनता को बेबस बना रखा है.