महाशिवरात्रि : जाने कैसे हुई 12 ज्योतिर्लिंगों की उत्पति

महाशिवरात्रि हिन्दू लोगों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर सभी लोग भगवान शिव की आराधना करते है। साथ ही भगवन शिव के मंदिरों में जाकर ज्योतिर्लिंगों की पूजा करते है।

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महाशिवरात्रि हिन्दू लोगों के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण त्यौहार है। महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर सभी लोग भगवान शिव की आराधना करते है। साथ ही भगवन शिव के मंदिरों में जाकर ज्योतिर्लिंगों की पूजा करते है। लेकिन कभी न कभी आपके मन में यह प्रश्न आया ही होगा कि ज्योतिर्लिंगों की उत्पति कैसे हुई? हम आपके इन प्रश्नों के जवाब देंगे और सभी 12 ज्योतिर्लिंगों की उत्पति और मंदिरों के बारें में बतायेंगे।

शिवपुराण के अनुसार विक्रम संवत के कुछ हजार वर्ष पहले उल्कापात का बहुत प्रकोप हुआ था। इस दौरान आदि मानव को रूद्र बाहार निकलते हुए दिखाई दिया। कहा जाता है कि उस समय आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे थे और उनसे थोड़े समय के लिए प्रकाश फैल गया था। यही उल्का पिंड बारह ज्योतिर्लिंग कहलाए गए है। 

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग पृथ्वी का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। सोमनाथमंदिर गुजरात के सौराष्ट्र में विराजमान है। शिवपुराण के मुताबिक जब चंद्रमा को दक्ष प्रजापति ने क्षय रोग होने का श्राप दिया था, तब चंद्रमा ने इसी स्थान पर तप कर इस श्राप से मुक्ति पाई थी। कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने की थी। विदेशी आक्रमणों के कारण यह 17 बार नष्ट हो चुका है। हर बार इसे नष्ट किया गया और बनाया गया है। देश आज़ाद होने के बाद तत्कालित उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री सरदार पटेल ने संसद के अंदर बील लेकर इसका पुनः उद्धार किया था।  

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी के तट पर मौजद श्रीशैल नाम के पर्वत परस्थित है। इस मंदिर का महत्व भगवान शिव के कैलाश पर्वत के समान कहा गया है। कई धार्मिक शास्त्र इसके धार्मिक और पौराणिक महत्व की व्याख्या करते हैं। मान्यता है कि इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने से व्यक्ति को उसके सभी पापों से मुक्ति मिलती है। माना जाता है कि श्रीशैल पर्वत पर आकर शिव का पूजन करने से व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ के समान पुण्य फल मिलते हैं। 

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश के उज्जैन में विराजमान है। इस ज्योतिर्लिंग विशेष बात यह है कि ये एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां रोज सुबह होने वाली भस्मारती सुप्रसिद्ध है। महाकालेश्वर की पूजा विशेष रूप से आयु वृद्धि और आयु पर आए हुए संकट को टालने के लिए की जाती है। उज्जैन के लोगों की मान्यता हैं कि भगवान महाकालेश्वर ही उनके राजा हैं और वे ही उज्जैन की रक्षा कर रहे हैं। 

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश की मिनी मुंबई कहे जाने वाले शहर इंदौर के समीप स्थित है। ज्योतिर्लिंग जहां स्थित है, उस स्थान पर नर्मदा नदी बहती है और पहाड़ी के चारों ओर नदी बहने से यहां ऊं का आकार बनता है। ऊं शब्द की उत्पति ब्रह्मा के मुख से हुई है। यह ज्योतिर्लिंग औंकार अर्थात ऊं का आकार लिए हुए है, इस कारण इसे ओंकारेश्वर नाम से जाना जाता है। यहां ओंकारेश्वर और मामलेश्वर दो पृथक-पृथक लिंग हैं। लेकिन ये एक ही लिंग के दो स्वरूप हैं। ओंकारेश्वर लिंग को स्वयंभू समझा जाता है। 

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड में स्थित है। केदारनाथ मंदिर बद्रीनाथ के मार्ग में स्थित है। केदारनाथ समुद्र तल से 3584 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। केदारनाथ का वर्णन स्कन्द पुराण एवं शिव पुराण में भी किया गया है। यह तीर्थ भगवान शिव को काफी पसंद है। भगवन शिव ने केदार क्षेत्र को कैलाश जैसा ही महत्व दिया है। 

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के सांस्कृतिक शहर पूणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर विराजमान है। यह ज्योतिर्लिंग मोटेश्वर महादेव के नाम से भी प्रसिद्ध है। मान्यता है कि जो भक्त श्रृद्धा से इस मंदिर के प्रतिदिन सुबह सूर्य निकलने के बाद दर्शन करता है, उसके सात जन्मों के पाप दूर हो जाते हैं तथा उसके लिए स्वर्ग के मार्ग खुल जाते हैं। 

काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंगउत्तर प्रदेश के काशी नामक स्थान पर विराजमान है। मान्यता है कि प्रलय आने पर भी यह स्थान बना रहेगा। इसकी रक्षा के लिए भगवान शिव इस स्थान को अपने त्रिशूल पर धारण कर लेंगे और प्रलय के टल जाने पर काशी को उसके स्थान पर पुन: रख देंगे। 

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में विराजमान है। इस ज्योतिर्लिंग के सबसे करीब ब्रह्मागिरि पर्वत है। इसी पर्वत से गोदावरी नदी शुरू होती है। भगवान शिव का एक नाम त्र्यंबकेश्वर भी है। कहा जाता है कि भगवान शिव को गौतम ऋषि और गोदावरी नदी के आग्रह पर यहां ज्योतिर्लिंग रूप में रहना पड़ा। 

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग
यह शिवलिंग झारखंड के देवघर में स्थित है। लोग इस जगह को बाबा बैजनाथ धामके नाम से भी जानते है। मान्यता है कि यहां शिव का पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस वजह से इसे कामना लिंग भी कहते है। 

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग गुजरात के द्वारका में स्थित है। शास्त्रों में भगवान शिव नागों के देवता है और नागेश्वर का पूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। मान्यता है कि जो व्यक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के साथ यहां दर्शनों के लिए आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। 

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग तमिलनाडु राज्य के रामनाथ पुरं में स्थित है। यह स्थान हिंदुओं के चार धामों में से एक है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। भगवान राम के द्वारा स्थापित होने के कारण ही इस ज्योतिर्लिंग को भगवान राम का नाम रामेश्वरम दिया गया है। 

घृष्णेश्वर मन्दिर ज्योतिर्लिंग
यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के संभाजीनगर के समीप दौलताबाद के समीप स्थित है। इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ लोग आत्मिक शांति प्राप्त करने आते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएं इस मंदिर के समीप स्थित हैं। यहीं पर श्री एकनाथजी गुरु व श्री जनार्दन महाराज की समाधि भी है। इस मंदिर का अंतिम जीर्णोद्धार महारानी पुण्यश्लोका देवी अहिल्याबाई होलकर के द्वारा करवाया गया था।