By नवभारत | Updated Date: May 13 2019 10:24AM |
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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने एक अनुपम बात कही है. उन्होंने जम्मू कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हमारे देश में जितने भी राज्यपाल होते हैं, वो सरकार के चमचे होते हैं. सत्यपाल मलिक भी चमचा ही हैं, जो मोदी की चापलूसी करने में लगे हैं.’’ हमने कहा, ‘‘निरुपम को ऐसी निराली बात करने से पहले राज्यपाल के संवैधानिक पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए था. उन्होंने राज्यपाल को चमचागिरी से जोड़ दिया. आखिर उन्हें ऐसी टिप्पणी करने की क्या जरूरत थी?’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज शुरुआत तो सत्यपाल मलिक ने की. जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राजीव गांधी को ‘भ्रष्टाचारी नंबर वन’ कहा तो सत्यपाल मलिक ने भी हां में हां मिलाते हुए कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी पहले ठीक थे लेकिन चमचों से घिरने के बाद बोफोर्स घोटाला कर बैठे. राज्यपाल मलिक के ऐसे बयान से निरुपम को गुस्सा आ गया. इसलिए उन्होंने कह दिया कि राज्यपाल सरकार के चमचे होते हैं.’’ हमने कहा, ‘‘जहां तक चमचे का सवाल है वे कई आकार के होते हैं जैसे कि टी स्पून, टेबल स्पून. कोई चमचा छोटा होता है तो कोई बड़ा! जब कुकर का इस्तेमाल नहीं होता था और दाल बटलोई में उबाली जाती थी तो उसे चमचे से ही घोटा जाता था. कुछ नेता मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा होते हैं. किचन में स्टेनलेस स्टील के चमचे होते हैं तो राजनीति में नेताओं के साथ उनके चमचों का रहना अनिवार्य है. नेता के प्रति उनकी निष्ठा ऐसी रहती है कि- जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे.’’ हमने कहा, ‘‘यह निष्ठा नहीं, बल्कि चापलूसी है. संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपालों को राजनीतिक टिप्पणी नहीं करनी चाहिए.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज यदि राज्यपाल को अपना कार्यकाल बढ़वाना हो या फिर से सक्रिय राजनीति में वापसी की इच्छा हो तो वह पीएम या सत्तापक्ष को खुश करने के लिए थोड़ी बहुत चापलूसी करेगा ही. आखिर मक्खन लगाना भी एक कला है.’’