By नवभारत | Updated Date: Apr 23 2019 3:50PM |
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पता नहीं क्या सोचकर बीजेपी ने भोपाल से साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को उम्मीदवारी दी? वे एक के बाद एक विवादित बयान दिए चली जा रही हैं और चुनाव आयोग उन्हें नोटिस देने के अलावा कुछ भी नहीं कर रहा. उनकी उम्मीदवारी रद्द क्यों नहीं की जाती? आचार संहिता के उल्लंघन व भड़काने वाली बातों के लिए कठोर चेतावनी क्यों नहीं दी जाती? अब प्रज्ञा सिंह ने कहा कि उन्होंने बाबरी मस्जिद तोड़ने में मदद की और अब वह राम मंदिर बनाने में मदद करेंगी. बाबरी मस्जिद पर टिप्पणी के बाद भोपाल के जिला चुनाव अधिकारी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है. इसके पूर्व प्रज्ञा सिंह ने कहा था- ‘‘मैंने हेमंत करकरे को कहा था कि तेरा सर्वनाश होगा. ठीक सवा महीने में सूतक लगा और उसे आतंकवादियों ने मार डाला.’’
क्या किसी संत या साध्वी को ऐसी बातें करनी चाहिए? जनहित की कोई बात न करते हुए वह बता रही हैं कि उनका शाप कितना खतरनाक होता है. ऐसे ही साक्षी महाराज ने भी अपने को वोट न देने वालों को शाप देने की धमकी दी थी. आखिर यह क्या तमाशा है? ऐसे लोगों को बीजेपी क्यों बढ़ावा देती है? क्या भाजपा साध्वी प्रज्ञा को टिकट देते समय भूल गई कि उसे मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने ही सुनील जोशी नामक संघ कार्यकर्ता की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तार किया था? सुनील समझौता एक्सप्रेस धमाके का आरोपी था जो अपने छिपने के ठिकाने पर जा रहा था, तभी उसकी हत्या हो गई. इधर महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे को जांच के दौरान मालेगांव ब्लास्ट में साध्वी प्रज्ञा का हाथ होने का सुराग मिला तो उन्होंने मध्यप्रदेश जाकर उसे हिरासत में ले लिया था. एक आतंकी घटना की आरोपी को उम्मीदवार बनाना क्या बीजेपी की छवि के लिए उचित माना जा सकता है.
वह एक के बाद दूसरा विवादास्पद बयान बेखौफ दिए जा रही हैं. अपनी उम्मीदवारी घोषित होने के 2 दिनों के भीतर ही प्रज्ञा सिंह ने 26/11 के शहीद कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी हेमंत करकरे को दिए शाप का उल्लेख किया. इस पर नाराजगी बढ़ने पर प्रज्ञा ने माफी तो मांग ली लेकिन उनके मन का विकार शायद ही दूर हुआ. ऐसा लगता है कि भोपाल में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को बढ़ाने के लिए बीजेपी ने साध्वी प्रज्ञा को उम्मीदवारी दी है. जमानत पर रिहा लोगों को विभिन्न पार्टियां उम्मीदवार बनाती हैं लेकिन आतंकवाद के केस से जुड़ी आरोपी को प्रत्याशी बनाकर बीजेपी ने विचित्र कदम उठाया है.
यद्यपि एनआईए की जांच के बाद प्रज्ञा सिंह पर लगे आरोप वापस लिए गए, परंतु इस प्रकरण में धीमी चाल चलने का दबाव आने का आरोप लगाते हुए सरकारी वकील रोहिणी सालियान ने इस्तीफा दे दिया था. चुनाव के दौरान जिस तरह की बयानबाजी प्रज्ञा सिंह कर रही हैं और धर्मयुद्ध की भाषा बोल रही हैं, उसे देखते हुए भोपाल का चुनाव किस स्तर पर जाएगा? साध्वी को अनेक वर्ष तक मानसिक व शारीरिक रूप से सताए जाने की बात कहकर बीजेपी ने उनका समर्थन ही किया है. चुनाव आयोग को इस संबंध में विशेष सतर्क रहना होगा. जब बाबरी प्रकरण से जुड़े आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी व उमा भारती को टिकट नहीं दिया गया तो साध्वी प्रज्ञा का चयन किस आधार पर किया गया?