पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, इंद्रदेव ने सुन ली पुकार, मानसून का खत्म इंतजार, काले मेघ देख किसानों में छाया खुमार!’’ हमने कहा, ‘‘इतनी तुकबंदी मत सुनाओ. पहले केरल से निकलकर आगे बढ़नेवाले मानसून को अपने यहां आने तो दो. जल्दबाजी मत करो. ऐसा मानकर चलो कि थोड़ी सी बेकरारी, थोड़ा सा इंतजार, फिर आएगी वर्षा की शीतल फुहार! खास बात यह है कि इस बार मेघ होंगे बहुत मेहरबान, 101 प्रतिशत बारिश के साथ रखेंगे तपती धरा का ध्यान! नोट कर लीजिए कि जून में बिहार और बंगाल में अच्छी बारिश की संभावना है.
जुलाई में महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश में भरपूर वर्षा होगी. फिर अगस्त तक तो सावन मास शुरू हो जाता है. तब कोई भी फिल्म चांदनी का वह गीत गुनगुनाएगा- लगी आज सावन की फिर वो झड़ी है! कुछ लोग खुश होकर कहेंगे- सावन आया झूम के!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमने तो अभी से मोबाइल पर राजकपूर की पुरानी फिल्म बरसात, बॉबी देओल की बाद में बनी फिल्म बरसात और भारत भूषण-मधुबाला की ‘बरसात की एक रात’ देखनी शुरू कर दी है. मिलन का संदेश देनेवाला गीत आपने भी सुना होगा- बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम बरसात में! फिल्म छलिया में मुकेश ने बारिश की मादकता दर्शाने वाला गीत गाया था- डम डम डिगा डिगा, मौसम भीगा भीगा, बिन पिए मैं तो गिरा मैं तो गिरा…’’ हमने कहा, ‘‘जब बारिश आती है तो सूखी धरती हरी हो जाती है. वह हरियाली की चूनर पहन लेती है. मिट्टी से सोंधी-सोंधी महक उठने लगती है. कोयल मीठी तान सुनाती है. मोर-पपीहा सभी बोलने लगते हैं.’’
हमने कहा, ‘‘मेंढक भी तो टर्राते हैं. जरा मुंबईवासियों के बारे में सोचिए. जब जोर-शोर से मानसून आता है तो मुंबई की सड़कें झील बन जाती हैं. गाड़ियों का जाम लग जाता है. निचली बस्तियां डूब जाती हैं. पुराने मकान ढहने लगते हैं. ज्यादा तेज बारिश हुई तो जो जहां पर है, वहीं फंसकर रह जाता है. पानी से भरे रास्ते पर संभलकर चलना पड़ता है. कोई मेन होल में समा गया तो उसका पता ही नहीं चलता. मानसून आने पर सुविधा और असुविधा दोनों होती है. हमारे देश में भरपूर वर्षा होती है लेकिन अरब देश और इजराइल बारिश के लिए तरसते हैं. आप अभी से बुलाइए- डीयर मानसून, कम सून!’’