कहां से आएगा शिष्टाचार ऊपर से नीचे तक होता है भ्रष्टाचार

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, (Nishanebaaz) देश में शिष्टाचार की बजाय कदम-कदम पर भ्रष्टाचार देखा जा रहा है. इस मामले में नेताओं और अफसरों का ऐसा तालमेल है कि कहना होगा- हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे. जो करप्ट नहीं है वह सिस्टम में फिर नहीं है. उससे नीचे वाले और ऊपरवाले दोनों नफरत करते हैं और कहते हैं- खाए, न खाने दे दुष्ट! वही अधिकारी तरक्की करता है जो नीचे से रिश्वत और कमीशन वसूलकर माल ऊपर तक पहुंचाता है.’’ हमने कहा, ‘‘विकास के वृक्ष पर भ्रष्टाचार की बेल पनपती है.

    इसमें आश्चर्य की क्या बात है. किसी भी परियोजना में सभी का परसेंटेज बंधा रहता है. इंजीनियर, ठेकेदार, अफसर, मिनिस्टर सब उससे मालामाल हो जाते हैं. अब यह बात छोड़िए कि घटिया दर्जें का काम रहने पर बांध या पुल टूट जाते हैं, सड़कों में दरार आती है और निर्माण के कुछ समय बाद ही चंद्रमा के धरातल के समान गड्ढे हो जाते हैं. जितनी बार सड़क बनती है, उतनी बार भ्रष्टाचार के नए अवसर पैदा होते हैं. राजस्थान के संसदीय कार्य और शहरी विकास मंत्री शांति धारीवाल (Shanti Dhariwal) ने बाकायदा सदन में कहा कि भ्रष्टाचार (Corruption) भारत की कुंडली में है. जिस राजा भारत के नाम पर देश का नाम पड़ा, उस राजा की कुंडली में भ्रष्टाचार था.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यह बात पटने वाली नहीं है.

    चक्रवर्ती सम्राट भरत बड़े प्रतापी थे. वे बचपन में शेर का मुंह खोलकर उसक दांत गिनते थे. उन्होंने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया.’’ हमने कहा, ‘‘मंत्री धारीवाल ने दुष्यंत शकुंतला की कहानी सुनाई कि किस प्रकार देवराज इंद्र ने विश्वामित्र का तप भंग करने के लिए देवलोक से मेनका नामक अप्सरा को भेजा. विश्वामित्र और मेनका की संतान हुई शकुंतला जिसका पालन-पोषण महर्षि कण्व के आश्रम में हुआ. राजा-महाराजा अपने खाली टाइम में शिकार के लिए वन में जाते थे और वहां ऋषि-मुनियों के आश्रम में ताकझांक भी करते थे. ऐसी ही मुहिम में राजा दुष्यंत का कण्व की पालित पुत्री शकुंतला से प्रेम हो गया. राजा अपने प्रेम की निशानी के रूप में शकुंतला को शाही अंगूठी देकर चले गए. शकुंतला ने नदी में नहाते समय वह अंगूठी खो दी. दुष्यंत ने शकुंतला को पहचानने से इनकार कर दिया. बाद में मछुआरों को एक मछली के पेट से वह अंगूठी मिली. उन्होंने राजा को अंगूठी लाकर दी तब उसे देखकर दुष्यंत को सब कुछ याद आया और उन्होंने शकुंतला व अपने पुत्र भरत को अपने पास बुलवा लिया. दुष्यंत ने भ्रष्टाचार नहीं स्वेच्छाचार किया था.’’