पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज (Nishanebaaz), कितनी खुशी की बात है कि धनतेरस, दिवाली (Diwali) और भाई दूज शानदार रही. बाजार में बरक्कत देखी गई. सभी मॉल्स, शोरूम, दूकानों में ग्राहकों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. व्यापारी भी व्यस्त देखे गए. ऐसा लगता है कोरोना (Coronavirus) का डर ही निकल गया. लोगों ने खरीदारी में कोई कसर नहीं छोड़ी!’’ हमने कहा, ‘‘कई महीनों बाद गुबार फूटा. इसके पहले गणेशोत्सव, रक्षाबंधन, नवरात्रि जैसे त्योहार फीके रहे लेकिन दिवाली से चहल-पहल आ गई. बिजनेस को संजीवनी मिल गई. समाज में धन का सर्कुलेशन होते रहना चाहिए.
पैसा इस हाथ से उस हाथ में खेले तो अर्थव्यवस्था (Economy) में जान आ जाती है. मांग का बढ़ना अच्छी बात है. त्योहार इसीलिए तो आते हैं कि समाज में चैतन्यता व उत्साह आ जाए. लोगों ने फुटपाथ से लेकर एसी शोरूम तक अपने, पत्नी व बच्चों के लिए दिलदारी से खरीदारी की.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हमने देखा कि सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गईं. जब हमने किसी से 2 गज की दूरी रखनी चाही तो बीच में अन्य ग्राहक घुस गए. ऐसे में हमें गीत याद आ गया- दूरियां नजदीकियां बन गईं अजब इत्तेफाक है! लोगों ने मास्क को चेहरे की बजाय गले में लटका रखा था. इतनी भीड़ में कोई कोरोना पाजिटिव रहा होगा तो न जाने कितने लोग संक्रमित हुए होंगे. हमें तो सोचकर भी घबराहट होती है.’’ हमने कहा, ‘‘सावधानी रखना या सतर्कता बरतना बहुत अच्छी बात है क्योंकि कोरोना का खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं है.
दिल्ली में दहशत कायम है. केजरीवाल बेचैन हैं. खरीदारी तो ऑनलाइन भी हो सकती है, फिर बाजार में भीड़ करके क्या फायदा!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, महाराष्ट्र में तो मंदिर भी खुल गए. जो भी धर्मात्मा है, वह परमात्मा के दर्शन करने जाएगा. भक्तों को मास्क लगाना चाहिए और एकसाथ भीड़ न करते हुए बारी-बारी से जाना चाहिए. भगवान अपने भक्तों को अवश्य आशीर्वाद देंगे. ईश्वर से प्रार्थना कीजिए कि कोरोना रूपी राक्षस का संहार करें.’’ हमने कहा, ‘‘उम्मीद का दामन मत छोड़िए. इच्छाशक्ति मजबूत रखिए. आगे जो होगा, अच्छा ही होगा. सब दिन होत न एक समाना! संकट का दौर टल जाएगा और जिंदगी जल्द ही पूर्ववत हो जाएगी. तब तक नादानी न करते हुए सावधानी बरतिए.’’