विपक्ष ने डाला व्यवधान, मोदी नहीं करा पाए नए मंत्रियों की पहचान

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, संसद में विपक्ष के भारी हंगामे की वजह से प्रधानमंत्री मोदी अपने नए मंत्रियों का परिचय नहीं करा पाए. अब सांसद और जनता इन मंत्रियों को कैसे पहचान पाएंगे? जिस मंत्री का इंट्रोडक्शन नहीं हो पाया, वह एक्शन कैसे लेगा?’’ हमने कहा, ‘‘साहित्य से लेकर राजनीति तक पहचान का संकट देखा जाता है. काव्य गोष्टी में नौसिखए कवि का परिचय कराते हुए कहा जाता है कि ये काव्य जगत के नए हस्ताक्षर हैं. फिल्म में पहचान की महत्ता जताते हुए गीत है- जान-पहचान हो, जीना आसान हो.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज जब खूबसूरत चेहरे पर मास्क लगी हो तो सिर्फ नजरों से पहचान हो पाती है. ऐसे समय गीत याद आता है- आंखों ही आंखों में इशारा हो गया, बैठे-बैठे जीने का सहारा हो गया.’’ हमने कहा, ‘‘जान-पहचान के बिना कहीं कोई काम नहीं होता. ज्यादा जान पहचान रखने वाले और पब्लिक में घुलने मिलने वाले लोग ही नेता बनते हैं. परिचय या पहचान के बगैर उधार सामान नहीं मिलता. पुलिस वाले एक नजर में बदमाश को पहचान लेते हैं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, देहात में सभी लोग एक दूसरे को भली भांति पहचानते हैं लेकिन महानगरों की अपार्टमेंट संस्कृति में एक फ्लैट वाला सामने के फ्लैट में रहने वाले को वर्षों तक नहीं पहचान पाता उसका परिचय भी प्राप्त करना नहीं चाहता. 

    ऊंची सोसाइटी के लोग सिर्फ क्लब के सदस्यों से पहचान रखते हैं. वे हर किसी से नहीं घुलते-मिलते. अफसर हमेशा अफसर से परिचय रखता है, सामान्य आदमी से नहीं. हमने कहा, ‘‘पहचान के दायरे में नाई, धोबी, चर्मकार, मिस्त्री, प्लंबर, दूधवाला, सब्जी विक्रेता सभी रहने चाहिए उनकी काफी गरज् पड़ती है. सरकारी दफ्तर के बाबुओं से पहचान हो तो काम जल्दी हो जाता है. आरटीओ व रजिस्ट्री आफिस में भी प्रेम-परिचय होना बड़ा काम आता है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, रूखे – सूखे परिचय से काम नहीं होता जो गांधी छाप नोट आगे बढ़ सकता है, उसे कोई भी पहचान लेता है.’’