जब मोबाइल नहीं था, तब भी तो भाग जाया करती थीं लड़कियां

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, उत्तरप्रदेश राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष मीना कुमारी ने विवादित बयान दिया है कि घर वाले लड़कियों को मोबाइल न दें क्योंकि फोन पर लंबी बात कर लड़कियां लड़कों के साथ भाग जाती हैं.’’ हमने कहा, रोमियो-जूलिएट, शीरी-फरहाद, लैला-मजनू, हीर-रांझा के पास मोबाइल नहीं था फिर भी वे प्यार के बंधन में बंधे और उन्होंने जमाने की कोई परवाह नहीं की. यहां तक कि बाजीराव-मस्तानी के पास भी मोबाइल या लैंडलाइन फोन नहीं था. प्रेम करने के लिए मोबाइल जरूरी नहीं है. निगाहें चार होती हैं, मोहब्बत हो ही जाती है. 

    अंग्रेजी में कहा गया है- लव ऐट फर्स्ट लाइट. किसी को कोई अनायास ही अच्छा लगने लगता है और इसमें कोई तर्क नहीं चलता.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज मीनाकुमारी की बात गंभीरता से लीजिए. वे एक बड़े पद पर हैं और पूरी जिम्मेदारी के साथ उन्होंने अभिभावकों को समझाया है कि लड़कियों को मोबाइल मत दो. वो लड़कों की मीठी-मीठी बातों में फंस जाएंगी. चैट करेंगी, मैसेजेस का आदान-प्रदान करेंगी और फिर चिड़िया जैसी फुर्र से उड़ जाएंगी.’’ हमने कहा, ‘‘लड़कियों को छुई-मुई बनाकर नहीं रखा जा सकता. पढ़ने-लिखने वाली लड़की के पास मोबाइल, लैपटाप रहना बहुत जरूरी है. महिला आयोग अध्यक्ष का वश चले तो लड़कियों को चिमटा, कलछुल लेकर किचन में कैद कर दें. 

    आज वह जमाना नहीं रहा कि खाना पकाना, सीना-पिरोना व घरेलू काम करना ही लड़की की योग्यता समझा जाता था. दकियानूस लोग कहते हैं कि लड़की चूल्हा-चक्की में पक्की होनी चाहिए. लड़की को क्वालिफाइड बनाना है तो उसे मोबाइल देना ही होगा. जब मोबाइल नहीं था तो क्या लड़कियां घर से भागा नहीं करती थीं? यदि कोई लड़की पढ़ाई या जानकारी बढ़ाने अथवा म्यूजिक सुनने के लिए मोबाइल का इस्तेमाल करे और गूगल की मदद से कोई प्रोजेक्ट तैयार करे तो हर्ज ही क्या है?’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘महिला आयोग की अध्यक्ष ने अभिभावकों को सतर्क कर दिया. ऐसी उम्र में जब बहकने का खतरा रहता है तब माता-पिता अपनी बेटी को सही मार्गदर्शन दे और थोड़ी निगरानी भी रखें कि कहीं वह मोबाइल का मिसयूज तो नहीं कर रही है.’’