सरकार नहीं छोड़ रही अकड़, किसान आंदोलन पर बातों का बतंगड़

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, (Nishanebaaz) किसानों का आंदोलन इतने दिनों से चल रहा है लेकिन बात कुछ बन नहीं रही. समझ में नहीं आता कि अंदर की बात क्या है? कुछ तो बताइए!’’ हमने कहा, ‘‘आंदोलन जनभावना की अभिव्यक्ति है. जिन देशों में लोकतंत्र है, वहीं आंदोलन हुआ करते हैं. किसानों ने सदियों से सिर्फ खेती ही नहीं की, समय आने पर आंदोलन भी किए. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) की राष्ट्रीय पहचान नील की खेती करने वाले किसानों के आंदोलन से ही बनी थी.

बिहार के चम्पारण के नेता राजकुमार शुक्ल ने कोलकाता के कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधी को बताया था कि अंग्रेज किसानों से जबरन नील की खेती करवा रहे हैं और उन पर अमानुषिक जुल्म ढा रहे हैं. किसानों को नेतृत्व की जरूरत है, आप चम्पारण आइए. महात्मा गांधी ने बिहार जाकर आचार्य कृपलानी और डा. राजेंद्र प्रसाद का सहयोग लिया और किसानों को न्याय दिलवाया. इसी तरह लौहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने भी बारडोली के किसान आंदोलन का नेतृत्व किया था, तभी से वे सरदार कहलाए. शहीद-ए-आजम भगत सिंह के चाचा अजीतसिंह ने भी किसानों के शोषण का विरोध करते हुए उनका आत्माभिमान जगाया था और उनसे कहा था- पगड़ी संभाल जट्टा पगड़ी संभाल! इस सारे इतिहास से आप समझ गए होंगे कि किसान आंदोलन का कितना महत्व है.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, यह भी गौर करने लायक बात है कि किसानों के आंदोलन को समर्थन देते हुए कितने ही खिलाड़ियों और पूर्व सेनाधिकारियों ने अपने मेडल व सम्मानपत्र सरकार को लौटा देने की पेशकश की है. कुछ तो पद्म अलंकरण भी वापस करने की तैयारी में हैं. इस बात पर आपकी क्या राय है?’’ हमने कहा, ‘‘सच बात तो यह है कि कोई कुछ भी लौटाए, मोदी सरकार झुकने वाली नहीं है. वह अपने स्टैंड को सही ठहरा रही है. आप मोदी के मन की बात सुनिए. उनके मंत्रियों नरेंद्रसिंह तोमर, पीयूष गोयल, राजनाथ सिंह, प्रकाश जावडेकर, स्मृति ईरानी की बातें सुनिए. मीडिया में भी किसान आंदोलन से जुड़ी तमाम बातें छाई हुई हैं. किसान एमएसपी की गारंटी देने वाला कानून बनाने की मांग कर रहे हैं लेकिन इसकी अनसुनी कर सरकार उन्हें फ्री मार्केट दे रही है कि भारत में जहां चाहो, अपनी उपज बेचो. एक तरफ है किसान तो दूसरी ओर अंबानी-अदानी जैसे मित्रों पर सरकार मेहरबान.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज दोनों पक्ष नहीं छोड़ रहे अपनी अकड़. बहुत हो गया बातों का बतंगड़.’’