न बेड, न टीके, न दवाई, महामारी करती खिंचाई प्रशासन हवा-हवाई

    Loading

    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, (Nishanebaaz) कोरोना का संकट अत्यंत विकट है. कानून और कोरोना (Coronavirus) के सामने सभी बराबर हैं. न कोई छोटा, न बड़ा! चाहे राजा हो या रंक, राज्यपाल हो या लेखापाल, चोर हो या सिपाही, कोरोना किसी को भी नहीं बख्शता. ऐसी विश्वव्यापी महामारी लोगों ने अपनी जीवन में इसके पहले कभी नहीं देखी. बनारस हो या हाथरस, इसका वायरस सर्वव्यापी है. हर कोई डरा, सहमा और आशंकित है. कोरोना वायरस कहता है- मैं तेरे अगल-बगल हूं, तू मेरे अगल-बगल है. एक जमाने में लोग धुलने से न सिकुड़ने वाले कॉटन के सैन्फोराइज्ड कपड़े पहना करते थे लेकिन अब हाथों को बार-बार सैनिटाइज करने की नौबत आ गई है.

    महात्मा गांधी ने देश से छुआछूत मिटा दिया था लेकिन कोरोना इसे दूसरे रूप में ले आया. किसी से हाथ मिलाना, गले मिलना सपने जैसी बात हो गई. शायद ‘डर्टी पिक्चर’ की हीरोइन विद्या बालन अब इस तरह गाने लगेगी- छूना ना-छूना ना, कोरोना कोरोना, दूसरी लहर आ गई.’’ हमने कहा, ‘‘आप बहुत गहराई से कोरोना चिंतन कर रहे हैं. वास्तविकता पर गौर कीजिए. न अस्पताल में बेड उपलब्ध हैं, न दवाई! टीके का भी टोटा होने लगा है.

    कोई सज्जन हो या दुर्जन, ऑक्सीजन का लेवल कम हुआ और वेंटिलेटर नहीं मिला तो समझो जिंदगी से गया. बंगाल के चुनाव में भीड़ के सैलाब ने सारी लिमिट पार कर दी है. लोकतंत्र के पनघट पर जमघट लगा है. ऐसे वक्त यह गीत याद आता है- इधर झूमकर गाए जिंदगी, उधर है मौत खड़ी, कोई ना जाने कहां है सीमा, उलझन आन पड़ी!’’ पड़ोसी ने कहा, निशानेबाज, ‘‘चाहे कुंभ मेले का धर्म हो या चुनाव का कर्म, प्रशासन का रवैया पूरी तरह हवा-हवाई रहा है. त्रेता युग का आतंक था रावण और आज आतंक का नाम है संक्रमण!’’