नेता खुद हैं हैरान क्यों फिसलने लगी उनकी जुबान

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पड़ोसी ने हमसे कहा,‘‘निशानेबाज (Nishanebaaz), राह चलते लोग केले के छिलके पर पैर पड़ने से फिसल जाते हैं तो कुछ अपने बाथरूम में लगी टाइल पर फिसल पड़ते हैं, लेकिन हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इन दिनों नेताओं की जुबान इतनी ज्यादा क्यों फिसलती जा रही है? अब देखिए न, पहले तो बीजेपी नेता व राज्यसभा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की जुबान कुछ इस तरह फिसली कि उन्होंने ताव-ताव में पंजे के लिए वोट मांग लिया. उन्होंने इमरती देवी की प्रचार सभा में भाषण देते हुए कहा- मेरी डबरा की शानदार-जानदार जनता मुट्ठी बांधकर विश्वास दिलाओ कि हाथ के पंजे वाला बटन दबेगा.

जैसे ही सिंधिया को अपनी गलती का एहसास हुआ, उन्होंने उसे सुधारते हुए कहा- कमल के फूल वाला बटन दबाएंगे और हाथ के पंजे वाले बटन को बोरिया-बिस्तर बांध के हम यहां से रवाना करेंगे. दूसरी ओर मध्यप्रदेश के सीएम शिवराजसिंह चौहान की भी जुबान फिसली. उन्होंने अपने ही मुंह से खुद को एमपी का पूर्व सीएम बता दिया. शिवराज सिंह के बेटे कार्तिकेय सिंह ने भी एक सभा में अपने पिता के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शब्द का इस्तेमाल किया.’’ हमने कहा, ‘‘चुनाव के तनाव में ऐसा हो जाता है. कमान का तीर और जुबान का शब्द एक बार छूटा तो वापस नहीं आता. चमड़े की जुबान फिसल ही जाती है. चुनाव प्रचार में नेता जुबान हिलाने के अलावा और करते ही क्या हैं! जब बहस होती है तो जुबानदराजी भी करते हैं.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जब मस्तिष्क और वाणी का संतुलन नहीं रहता तो जुबान बेलगाम हो ही जाती है. व्यक्ति सोचता कुछ है और बोलता कुछ है. वैसे हमारे नेता बेजुबान जनता के सामने जुबान नहीं चलाएंगे तो फिर किसके सामने चलाएंगे? वैसे चुनाव प्रचार में नेताओं के भाषण सिर्फ जुबानी जमा-खर्च होते हैं. कुछ तो अपनी जुबान में शहद घोलकर बोलते हैं. ऐसे मीठे ठगों से बचकर रहना चाहिए. आपने सुना भी होगा- सीधा तिलक, मधुरिया बानी, दगाबाज की यही निशानी!’’ हमने कहा, ‘‘जुबान या तो लड़खड़ाती है या फिसलती है. बड़बोले नेताओं की जुबान कैंची की तरह चलती है. फिसलने या रपटने पर आपने अमिताभ बच्चन-स्मिता पाटिल का गीत सुना होगा- आज रपट जाएं तो हमें न उठइयो, हमें जो उठइयो तो खुद भी फिसल जइयो.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जुबान का अर्थ सिर्फ जीभ नहीं, भाषा भी होता है. वैसे किसी की मादरे जुबान (मातृभाषा) उर्दू होती है. पुरानी फिल्मों का रोनी सूरत वाला हीरो गाता था- ये आंसू मेरे दिल की जुबान हैं. जहां तक जुबान फिसलने की बात है, रहीम ने लिखा था- रहिमन जिव्हा बावरी, कह गई ताल-पताल, आपन तो भीतर गई, जूती खात कपाल. इसका अर्थ है कि जुबान तो कुछ भी बकवास कर भीतर चली गई लेकिन उसी की वजह से सिर पर जूते पड़ने की नौबत आ जाती है. इसलिए हमेशा जुबान संभाल के बोलना चाहिए.’’