क्यों नजरिया इतना तंग राज्यपाल से क्यों होती है जंग

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, (Nishanebaaz) अंग्रेजों के जमाने में गवर्नर का गर्व कायम रखते हुए उन्हें हिज एक्सीलेंसी कहा जाता था. अब भी राज्यपाल की महान महिमा का सम्मान करते हुए उन्हें महामहिम कहा जाता है. इतना होने पर भी कितने ही राज्यपाल राजभवन में सुख-शांति से नहीं रह पाते. राज्य के मुख्यमंत्री उन्हें न केवल तंग करते हैं बल्कि एक प्रकार से जंग भी करते हैं. सोचिए कि क्या बुजुर्ग राज्यपाल से ऐसा बर्ताव उचित है?’’ हमने कहा, ‘‘यह मत समझिए कि इस लड़ाई में राज्यपाल कमजोर पड़ते हैं. उन्हें केंद्र सरकार का बल और प्रोत्साहन हासिल रहता है.

    वे अपनी पूर्व पार्टी के प्रति वफादार रहते हैं जिसने उनकी पुरानी सेवाओं और उम्र को देखते हुए सक्रिय राजनीति से हटने पर राज्यपाल बनाकर पुरस्कृत किया. यही वजह है कि बंगाल के जगदीप धनखड़ जैसे जांबाज राज्यपाल मजबूती से मोर्चा संभालते हुए ममता बनर्जी से टक्कर ले रहे हैं. ममता ‘दीदी’ हैं तो धनकड़ को भी ‘दादा’ बनना पड़ रहा है. पुडुचेरी में पुलिसिया तेवर दिखाने वाली उपराज्यपाल किरण बेदी हैं. वे शुरू से बेधड़क रही हैं. भारत की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी ने इंदिरा गांधी की गाड़ी का नो पार्किंग में चालान किया था और तलवार लिए निहंग सिख का मुकाबला करने लाठी लेकर उतर पड़ी थीं. किरण बेदी का पुडुचेरी के मुख्यमंत्री रामास्वामी से लगातार टकराव जारी है. सीएम को बेदी की अति सक्रियता पर एतराज है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, महाराष्ट्र की बात कीजिए जहां राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी (Bhagat Singh Koshyari)  की उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) से तनातनी चल रही है. उन्होंने विधान परिषद सदस्य के तौर पर नामांकन के लिए राज्य सरकार द्वारा भेजे गए 12 नामों को अब तक मंजूरी नहीं दी है. इसी तरह जब राज्यपाल मसूरी जाना चाहते थे तो उन्हें सरकारी विमान इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी गई. ऐसे में महामहिम को सामान्य यात्री के समान स्पाइस जेट की फ्लाइट से देहरादून जाना पड़ा. शिवसेना प्रवक्ता संजय राऊत (Sanjay Raut) ने कहा कि यह राज्यपाल से शीतयुद्ध नहीं, बल्कि खुली जंग है. बीजेपी राज्यपाल के कंधों का इस्तेमाल करके महाराष्ट्र विकास आघाड़ी सरकार को निशाना बना रही है. राजभवन को राजनीति के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.’’ हमने कहा, ‘‘यह टकराव लोकतंत्र के लिए सही नहीं है. फिर भी जहां गैर बीजेपी सरकारें हैं, उन राज्यों में राज्यपाल और मुख्यमंत्री के रिश्तों में काफी तनाव देखा जा रहा है.’’