पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, केंद्र में नए मंत्रियों को जिस तरह बेमेल विभाग सौंपे गए हैं, उससे हमें ‘आधा तीतर आधा बटेर’ वाला मुहावरा याद आता है. एक विभाग का दूसरे से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है.’’ हमने कहा, ‘‘दूरदर्शी प्रधानमंत्री ने दूर की सोच रखकर दूरंदेशी से कदम उठाया है. बड़े उत्साह और प्यार से मंत्रिमंडल का विस्तार किया है. इसमें व्यर्थ की मीन-मेख निकालने की बजाय आपको प्रसन्न होना चाहिए.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मंत्रिमंडल में फेरबदल एक सामान्य प्रक्रिया है जिसे अंग्रेजी में रूटीन एक्सरसाइज कहते हैं.
यह ताश की गड्डी फेंटने जैसा मामला है. मंत्रिमंडल का विस्तार करना कोई तीर मारने जैसी बात नहीं है.’’ हमने कहा, ‘‘आप नकारात्मक बातें कर रहे हैं. बादशाह अकबर के दरबार में सिर्फ नौ रत्न थे, जबकि मोदी के मंत्रिमंडल में कई पीएचडी धारी-विद्वान, टेक्नोक्रेट, इंजीनियर, वकील और पूर्व आईएएस अफसर शामिल किए गए हैं. मंत्रियों में अनेक महिलाएं और ओबीसी भी हैं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम आपको बेमेल विभाग वितरण की दास्तान सुना रहे हैं. उस पर गौर फरमाइए. अश्विनी वैष्णव को रेलवे के साथ आईटी मंत्रालय भी दिया गया है, जिनका आपस में कोई तालमेल नहीं है. रेलवे खुद इतना बड़ा विभाग है कि उसे ही संभालना मुश्किल है, ऊपर से आईटी का फंडा भी हैंडल करना पड़ेगा. टि्वटर और सोशल मीडिया से निपटना होगा.
सर्वानंद सोनोवाल को बंदरगाह, जहाजरानी के साथ आयुष मंत्रालय न जाने क्या सोचकर दिया गया! गृहमंत्री अमित शाह को सहकार विभाग भी दिया गया. वे लॉ एंड आर्डर देखेंगे या सहकारी क्षेत्र की घोटालेबाजी! हरदीपसिंह पुरी को पेट्रोलियम के साथ गृहनिर्माण व शहरी मामले दिए गए हैं. जी.किशन रेड्डी को पर्यटन संस्कृति के साथ पूर्वोत्तर की जिम्मेदारी भी दी गई है. यदि मंत्री से दो घोड़ों की सवारी नहीं हो पाई तो क्या होगा?’’ हमने कहा, ‘‘उसमें क्या है, मोदी फिर मंत्रिमंडल में फेरबदल कर लेंगे. जब रविशंकर प्रसाद, जावड़ेकर जैसे वफादारों की छुट्टी हो गई तो बाकी की क्या गारंटी!’’