आगरा में नोटों की बरसात, बंदर की खुराफात लंगूर रोकेंगे उत्पात

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज (Nishanebaaz) आपने बंदर को लेकर कुछ कहावतें सुनीं होंगी जैसे कि बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद, बंदर के हाथ तलवार. दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर का फायदा वाला किस्सा भी आपको मालूम होगा. बेमेल गठबंधन के दौरान सत्ता के लिए होने वाली बंदरबांट भी हम देखते ही रहते हैं. एक इंग्लिश फिल्म हिंदी में डब होकर आई थी जिसका शीर्षक था- एक बंदर, होटल के अंदर.’’ हमने कहा, ‘‘आज आपके दिमाग में बंदर क्यों धमाचौकड़ी मचा रहा है? क्या बंदर की उछल-कूद की कोई घटना सामने आई है? वैसे मंदिरों के सामने चना-फुटाने का प्रसाद खरीदकर ले जाने वालों की पुड़िया या झोली बंदर झपट्टा मारकर छीन लेते हैं लेकिन यही बंदर चना बेचने वाले को कोई तकलीफ नहीं देते.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आगरा अब तक ताजमहल और पागलखाने के लिए जाना जाता था. वहां का पेठा भी मशहूर था लेकिन अब वहां एक बंदर ने कमाल दिखा दिया. एक व्यक्ति ने तहसील परिसर में अपनी कार खड़ी कर दी और उसकी पिछली सीट पर नोटों से भरी बैग छोड़ दी. कार की खिड़की खुली छोड़कर वह व्यक्ति बाहर निकल गया. इतने में मौका पाकर बंदर खिड़की से कार के अंदर घुसा और नोटों का बंडल लेकर पेड़ पर चढ़ गया. उसने 50,000 की गड्डी खोलकर सारे नोट नीचे फेंकने शुरू कर दिए. पेड़ से नोटों की बारिश होते देखकर तहसील परिसर में भगदड़ मच गई और लोग नोट लूटने में लग गए. जब कार का मालिक आया तो उसे इस घटना की जानकारी मिली.’’

हमने कहा, ‘‘उपद्रवी बंदरों को भगाने के लिए लाल मुंह वाले लंगूर का उपयोग किया जाता है. उसे देखते ही बंदर भाग खड़े होते हैं. आगरा में बंदरों के आतंक से बचने के लिए ज्यादातर होटलों में लंगूर को रखा जाता है. कई थानों में पुलिसकर्मी अपनी तरफ से खर्च कर लंगूर रखते हैं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कुछ समय पहले खबर आई थी कि संसद भवन परिसर से भी उत्पाती बंदरों को भगाने के लिए लंगूर का उपयोग किया गया था. जबलपुर के भेड़ाघाट में नर्मदा नदी पर एक स्थान बंदर कूदनी कहलाता है.

वहां बंदर इस पार से उस पार कूद जाया करते थे.’’ हमने कहा, ‘‘भगवान राम ने सुग्रीव की वानर सेना की मदद से ही लंका जीती थी. वानर इंजीनियरों नल और नील ने भारत से लंका तक पुल बनाया था जो रामसेतु कहलाता है. पराक्रमी वानरों में अंगद का नाम मशहूर है. कैलाश पर्वत को उठाने वाला रावण भी अंगद का पैर नहीं हिला पाया था.’’ पड़ासी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इस समय तो किसान आंदोलनकारी अंगद के समान मजबूती से पैर जमाकर सरकार के खिलाफ डटे हैं.’’