पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, संसद में सवाल-जवाब के साथ स्वस्थ बहस क्यों नहीं होती, इसके बजाय हंगामा क्यों होता है? विपक्ष शोरगुल मचाने की बजाय सदन में तीखे सवाल भी तो कर सकता है. लोकतंत्र में जनहित से जुड़े मुद्दों पर प्रश्न उठाए जाने चाहिए.’’ हमने कहा, ‘‘चीन, रूस और उत्तर कोरिया जैसे देशों में कोई सवाल नहीं पूछता. किसी ने पूछने की जुर्रत की तो उसकी शामत आ जाती है. आमतौर पर सवाल वे लोग पूछते हैं जिनके मन में संदेह है. जो खुद समझदार है, वह किसी दूसरे से पूछताछ क्यों करेगा?’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जहां जिज्ञासा उत्पन्न होती है, वहां प्रश्न पूछने की अतीव इच्छा जोर मारने लगती है. हर चिंतनशील व्यक्ति जो सत्य तक पहुंचना चाहता है, सवाल जरूर करता है.
चार्वाक, कबीर और ओशो रजनीश ने ज्वलंत सवाल किए. आपको मालूम होना चाहिए कि प्रेस कांफ्रेंस में कुछ पत्रकार खोद-खोद कर सवाल पूछते हैं. आजकल यह काम सीबीआई और ईडी जैसी एजेंसियां कर रही हैं. वैसे सवालों का सिलसिला अनंत है. कुछ सवालों का सही जवाब कोई नहीं दे सकता जैसे पहले मुर्गी हुई या अंडा? अक्ल बड़ी या भैंस?’’ हमने कहा, ‘‘विपक्ष सरकार से पेगासस जासूसी पर सवाल पूछना चाहता है और सरकार इसका कोई जवाब नहीं देना चाहती, इसलिए विपक्ष हंगामा करता है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘विपक्ष विस्फोटक और असुविधाजनक सवाल पूछने की आदत छोड़ दे और सरकार को उसके तरीके से काम करने दे.
सरकार विपक्ष के सवाल के जाल में फंसना नहीं चाहती. जहां ज्यादा सवाल-जवाब होते हैं, वहां कलह होती है.’’ हमने कहा, ‘‘सरकार को समझना चाहिए कि यक्ष ने भी धर्मराज युधिष्ठिर से जटिल प्रश्न पूछे थे. पत्रकार भी नेताओं से उलझन में डालने वाले प्रश्न पूछते हैं जिनके आधार पर वे चटपटी रिपोर्ट बनाते हैं.’’ हमने कहा, ‘‘इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी पत्रकारों से सीधे मुखातिब नहीं होते. वे अभिनेता अक्षय कुमार को इंटरव्यू दे सकते हैं, किसी पत्रकार को नहीं!’’