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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हाल ही में गुजरात के गिर वनक्षेत्र में एक एम्बुलेंस को 4 सिंहों ने घेर लिया। इस एम्बुलेंस में एक गर्भवती महिला थी जिसे जल्दी अस्पताल ले जाने की जरूरत थी।

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, हाल ही में गुजरात के गिर वनक्षेत्र में एक एम्बुलेंस को 4 सिंहों ने घेर लिया। इस एम्बुलेंस में एक गर्भवती महिला थी जिसे जल्दी अस्पताल ले जाने की जरूरत थी। सिंहों की वजह से गाड़ी आगे ले जाना मुमकिन नहीं था। महिला ने एम्बुलेंस में ही बच्ची को जन्म दिया। उसके तुरंत बाद गाड़ी के आसपास घूम रहे सिंह वापस जंगल में चले गए। हमें तो ऐसा लगता है कि वह नवजात बालिका दुर्गा का रूप रही होगी और जो सिंह वहां आए थे, वे दुर्गा का वाहन हैं।’’ हमने कहा, ‘‘आपकी श्रद्धा की बलिहारी है! इन दिनों बच्चों का जन्म घर या अस्पताल से दूर कहीं भी हो रहा है। अभी भारत और नेपाल की सीमा पर एक शिशु ने जन्म लिया जिसका नाम ‘बॉर्डर’ रख दिया गया। बार्डर की मां यूपी के बहराइच जिले की रहने वाली है। वह नेपाल के एक ईंट भट्ठे पर काम करती थी। लॉकडाउन के बाद काम बंद होने से वह अपने घर वापस लौट रही थी। सीमा पार कर भारत आने के लिए लाइन में लगी महिला को लेबर पेन हुआ। अन्य महिलाओं ने घेरा बनाकर वहीं प्रसव कराया तो शिशु जन्म हुआ।’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, एक प्रवासी मजदूर महिला को संतान हुई तो बेटे का नाम ‘लॉकडाउन’ रख दिया। इसी तरह एक अन्य प्रवासी श्रमिक दम्पति ने जुड़वा बेटा-बेटी का जन्म होने पर उनका नाम ‘कोविड’ और ‘कोरोना’ रख दिया। एक मजेदार बात तो यह हुई कि अभिनेता सोनू सूद के प्रयासों से ओडिशा के अपने गांव पहुंची एक प्रवासी मजदूर महिला ने जब बच्चे को जन्म दिया तो उसका नाम सोनू सूद रखकर एक तरह से अपनी कृतज्ञता जताई। हमें आशंका है कि जिस तरह पारसियों में सायरस नाम रहता है, वैसे ही कोई अपने बच्चे का नाम गलती से वायरस न रख दे। इसी तरह आगे चलकर किसी शिशु का नाम अनलॉक रखा जा सकता है।’’ हमने कहा, ‘‘अपने देश में देवी-देवताओं, स्थानों व नदियों पर से भी बच्चों के नाम रखने की परंपरा रही है जैसे कि मथुरा प्रसाद, गोकुल प्रसाद, काशी प्रसाद, अयोध्या प्रसाद, प्रयागदत्त, केदारनाथ, बद्रीप्रसाद, गंगाप्रसाद, जमुना प्रसाद, नर्मदा प्रसाद आदि। किसने सोचा था कि वर्तमान परिस्थितियों में लॉकडाउन, कोविड, कोरोना जैसे नाम भी रखे जाने लगेंगे! अमेरिका में तो बच्चा बाद में जन्म लेता है, नाम पहले ही तय कर लिया जाता है। वहां अस्पताल में एडवांस में एक लड़के का नाम और एक लड़की का नाम देना पड़ता है। संतान के बर्थ सर्टिफिकेट पर बाकायदा वही नाम दर्ज होकर मिलता है। यदि आप इरफान खान की अंग्रेजी फिल्म ‘नेमसेक’ देखेंगे तो बात स्पष्ट हो जाएगी।’’