nishanebaaz-Nurses from Kerala called outside instead of local

पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कहावत है- घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का संत। घर के होनहार प्रतिभाशाली और मेहनती लोगों की कद्र नहीं होती और बाहर से आने वालों के लिए पलक-पांवड़े बिछाए जाते हैं।’

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कहावत है- घर का जोगी जोगड़ा, आन गांव का संत। घर के होनहार प्रतिभाशाली और मेहनती लोगों की कद्र नहीं होती और बाहर से आने वालों के लिए पलक-पांवड़े बिछाए जाते हैं।’’ हमने कहा, ‘‘यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इसमें आप कुछ नहीं कर सकते। यदि किसी रोजगार दाता ने बाहर से आए व्यक्ति को ज्यादा ऊंचे पद पर, ज्यादा वेतन के साथ रख लिया तो उसकी मर्जी! उसे अशर्फियों को छोड़कर कोयले पर मुहर लगाने का पूरा अधिकार है। यदि पुराने कर्मचारियों को यह अखरता है तो मन ही मन भुनभुनातें रहें। मालिक की मर्जी के आगे आखिर किसका वश चला है! मालिक को खुश रखने के लिए ‘ऐ मालिक तेरे बंदे हम’ गाते रहना चाहिए।’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हम किसी मालिक की नही, महाराष्ट्र सरकार की विचित्र नीति की बात कर रहे हैं। राज्य सरकार ने कोरोना आपदा से निपटने के लिए केरल से 100 नर्सें बुलाने का फैसला किया है जबकि महाराष्ट्र की नर्सों को कोई प्राथमिकता नहीं दी गई। भूमि पुत्रियों या डाटर्स आफ सॉइल की उपेक्षा कर बाहरी नर्सों को बुलाने का कारण हमें समझ में नहीं आया।’’ हमने कहा, ‘‘मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से किसी ने कहा होगा कि केरल की नर्सों की यूरोप से लेकर खाड़ी देशों तक हर कहीं बहुत मांग है। वे बहुत सेवाभावी व दयालु होती हैं और बड़ी अच्छी तरह से अपनी डयूटी को अंजाम देती हैं। उनमें जॉब मोबिलिटी रहती है और अपने राज्य से दूर कहीं भी जाने को तैयार रहती हैं।’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, कुछ भी हो, महाराष्ट्र की नर्सों को काम न देते हुए, बाहरी राज्य से नर्सों को बुलाना अन्याय व पक्षपात है। महाराष्ट्र की 129 नर्सें डीएमईआर एक्जाम प्रोसेस के जरिए चुनी गई थीं और अभी तक डयूटी ज्वाइन करने के इंतजार में हैं। उनके संबंध में विचार क्यों नहीं किया गया? परिचारिकाओं के संगठन यूनाइटेड नर्सेंस एसोसिएशन की महाराष्ट्र इकाई भी इस बात से नाखुश है। इसके अलावा कांट्रैक्ट पर नर्सों को रखा जा रहा है।’’ हमने कहा, अब परमानेंट नौकरी की बात भूल ही जाइए। हर तरफ कांट्रैक्ट सिस्टम से लोगों को रखा जा रहा है। मैनेजमेंट इसमें अपनी सुविधा देखता है। स्थानीय लोगों को रोजगार में रखा जाए तो वे अपना संगठन बना लेते हैं। बाहर वाले चूं-चपड़ नहीं करते। वे ज्यादा देर काम भी कर लेते हैं। सरकार ने अंदर वाली नर्सों को छोड़, बाहर वाली नर्सों को बुलाया तो इसकी कोई वजह जरूर होगी।’’