nishanebaaz-raipur-a-locality-in-the-raipur-city-where-a-poet-in-every-house

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सच्चे शायर को दुनियादारी की कभी चिंता नहीं रहती.

Loading

पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, रायपुर में एक मोहल्ला ऐसा भी है जहां घर-घर में शायर हैं. इतना ही नहीं, एक ही घर में कई शायर हैं. यह लोगों के लिए आश्चर्य की बात है.’’ हमने कहा, ‘‘जब सभी शायरी करेंगे तो दाल-रोटी की फिक्र कौन करेगा क्योंकि शायरी से कभी किसी का पेट नहीं भरता. शेरो-शायरी का शौक रखना अच्छी बात है लेकिन दुनियादारी भी कोई चीज है!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सच्चे शायर को दुनियादारी की कभी चिंता नहीं रहती.

आपने फिल्म ‘प्यासा’ में गुरुदत्त को गाते सुना होगा- ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है! साहिर लुधियानवी की इस शायरी को मोहम्मद रफी ने बड़े संजीदा अंदाज में गाया था. जब शायरों की बात करें तो मिर्जा गालिब का नाम कौन नहीं जानता. आपने सुना होगा- इश्क ने गालिब निकम्मा कर दिया, वरना हम भी आदमी थे काम के! मुगल वंश के अंतिम शासक बहादुरशाह जफर को अंग्रेजों ने बर्मा ले जाकर कैद कर दिया था. वहां उन्होंने गजल लिखी थी- लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में.

हमने कहा, ‘‘ज्यादातर शायरी हुस्न-इश्क,आशिक-माशूक, शमा-परवाना, मय और साकी तथा महबूबा की तारीफ को लेकर रहती है लेकिन कुछ इंकलाबी शायर इसमें आम आदमी की मुश्किलों और हुक्मरानों के जुल्म का भी जिक्र करते हैं. शायर अकबर इलाहाबादी ने अखबार की ताकत का जिक्र करते हुए शेर लिखा था- खींचो ना कमानों को, न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, शायरों का अंदाजे बयां अलग-अलग रहता है.

साहिर लुधियानवी ने लिखा था- एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, हम गरीबों की मोहब्बत का उड़ाया है मजाक. इसके जवाब में  शकील बदायूंनी ने लिखा- एक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताजमहल, सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है.’’ हमने कहा, ‘‘साहिर ने हताश और नाउम्मीद हो चुके इंसान का उत्साह बढ़ाने के इरादे से लिखा था- तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना ले, अपने पे भरोसा हो तो एक दांव लगा ले.’’ हमने कहा, ‘‘शायर अपने तसव्वुर या कल्पना जगत में खोया रहता है.

शायरी पुरअसर और पायेदार होनी चाहिए. इसे लिखने में दिमाग लगता है. अच्छी शायरी मुशायरे में जान डाल देती है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘कभी कोई आशिक दिल टूट जाने से शायर बन जाता है तो कोई कहता है- मैं शायर तो नहीं, मगर ऐ हसीं, जबसे देखा मैंने तुझको, मुझको शायरी आ गई!’’