पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, मुंबई जैसी मायानगरी में जिस प्रकार बिजली गुल हुई और लोग 3 घंटे से ज्यादा समय तक हलाकान रहे, उसे देखते हुए हम सोच में पड़ गए कि ये क्या जुलुम हुआ, ये क्या गजब हुआ!’’
पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, मुंबई जैसी मायानगरी में जिस प्रकार बिजली गुल हुई और लोग 3 घंटे से ज्यादा समय तक हलाकान रहे, उसे देखते हुए हम सोच में पड़ गए कि ये क्या जुलुम हुआ, ये क्या गजब हुआ!’’ हमने कहा, ‘‘विदर्भ-मराठवाड़ा के लोगों ने तो कितने ही वर्षों तक लोडशेडिंग और पावरकट देखी. मुंबई को भी उसका हल्का सा अनुभव हो गया तो कौन सी बड़ी बात है! बिजली तो चंचला होती है, आती-जाती रहती है. आपने गीत सुना होगा- बिजली गिराने मैं हूं आई, कहते हैं मुझको हवा-हवाई!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, दिल्लगी मत कीजिए. मुंबई सिर्फ महाराष्ट्र की कैपिटल नहीं, बल्कि देश की आर्थिक राजधानी है. वहां बिजली गुल होने का मतलब उद्योग-धंधे, व्यापार-व्यवसाय को करोड़ों का नुकसान! जनजीवन में भारी व्यवधान! लोकल ट्रेनों का बीच में ही रुक जाना. यात्रियों का फंस जाना. बिजली गुल होने से विकास के पहिये में ब्रेक लग जाता है. शेयर मार्केट का रुक गया डिस्पले, लोगों के दिल दहले. जैसे अमेरिका का न्यूयार्क, वैसी भारत की मुंबई. मुंबई की महत्ता समझिए और फिर जुबान खोलिए.’’ हमने कहा, ‘‘यह क्यों भूल जाते हैं कि मुंबई की अट्टालिकाएं विदर्भ के थर्मल पावर स्टेशनों की बिजली से जगमगाती हैं. वहां के उद्योग भी इसी की बदौलत चलते हैं. अकेले टाटा पावर मुंबई की जरूरतें पूरी नहीं कर सकता. चंद्रपुर, कोराड़ी, खापरखेड़ा व पारस की बिजली मुंबई की मांग में चमकते उधार के सिंदूर के समान है. पश्चिम महाराष्ट्र व मुंबई ने विदर्भ की बिजली ली और बदले में पावरकट और ऊंचे रेट दिए. विदर्भ में निर्मित बिजली विदर्भवासियों को बहुत महंगी दर में मिलती है. पहले तो बिल में ट्रांसमिशन का लॉस भी जोड़ा जाता था. बिजली भेजी जाए मुंबई और विदर्भवासी ट्रांसमिशन से होने वाले खर्च या नुकसान की भरपाई करें, यह कौन सा न्याय है? बगल वाले राज्य छत्तीसगढ़ की तुलना में विदर्भ में बिजली काफी महंगी है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, दिल बड़ा करके सोचिए. विदर्भ तो गरीब की गाय है. उसे हमेशा हर मामले में सौतेलापान बर्दाश्त करना पड़ता है. मुंबई को इस तरह की असुविधा उठाने की आदत नहीं है. वह किसी रानी-महारानी से कम नहीं है.’’ हमने कहा, ‘‘मानना होगा कि मायानगरी मुंबई का मामला स्पेशल है. वहां जरा देर को बिजली क्या गुल हुई कि हंगामा हो गया, इधर पूरा प्रदेश झेल रहा है तो उसकी कोई चर्चा नहीं! समझ में नहीं आता कि यह कैसा गोरखधंधा है!’’