पेट्रोल-डीजल-सिलेंडर महंगाई हुई निडर, रो रहा हर वोटर

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, कोरोना संकट और लंबे लॉकडाउन ने पहले ही लोगों की आर्थिक हालत पतली कर दी है. कहीं धंधा चौपट है तो कहीं बेरोजगारी का आलम है. ऐसे माहौल में जनता को राहत देना तो दूर, जानबूझकर महंगाई बढ़ाकर जले पर नमक छिड़का जा रहा है. पेट्रोल-डीजल पहले ही सैकड़ा पार कर चुके हैं और रोज महंगे होते जा रहे हैं. ऊपर से गृहिणियों को बुरी तरह नाराज करते हुए रसोई गैस सिलेंडर भी 25.50 रुपए महंगा कर दिया गया.’’ 

    हमने कहा, ‘‘ये वो अच्छे दिन हैं जिन्हें लाने का प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था. अब पीएम की दाढ़ी और महंगाई समान रूप से बढ़ रही है. इसे देखते हुए हम आपको सलाह देंगे- गम नहीं कर मुस्कुरा, जीने का ले ले मजा. आपका खर्च बढ़ने का मतलब यही है कि आपका जीवन स्तर पहले से ऊंचा हो गया. महंगाई को अपनी शरीक-ए-हयात या जीवनसंगिनी मान लीजिए.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, वेतन में गिनी गोटियां मिलती हैं, ऊपर से महंगाई की मिक्सी में हम चटनी की तरह पिसे चले जा रहे हैं. खाद्य तेल के दोगुने दाम भी उपभोक्ता का तेल निकाले जा रहे हैं. समझ में नहीं आता कि क्या धोएं और क्या निचोड़ें?’’ 

    हमने कहा, ‘‘आप राजनीति में जाकर नेता बन जाइए. आपने किसी नेता को महंगाई से चिंतित होते नहीं देखा होगा क्योंकि वे झोला लेकर बाजार नहीं जाते. उन्हें सचमुच आटे-दाल का भाव मालूम नहीं होता. उनकी संपत्ति एक चुनाव से दूसरे चुनाव तक कई गुना बढ़ जाती है. करोड़पति नेताओं को क्या पता कि महंगाई किस चिड़िया का नाम है!’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, लापरवाह सरकार महंगाई से सरोकार नहीं रखती. फिल्मी गीतकारों ने भी महंगाई की फिक्र करते हुए लिखा था- बाकी जो कुछ बचा था, महंगाई मार गई. आज के संदर्भ में यह गीत बिल्कुल फिट बैठता है- महंगाई डायन खाए जात है.’’ हमने कहा, ‘‘अब नई पीढ़ी महंगाई की बिल्कुल फिक्र नहीं करती. महंगे से महंगा मोबाइल फोन, स्पीड बाइक, ब्रांडेड कपड़े खरीदनेवाला युवा यही मानकर चलता है कि सस्ता रोए बार-बार, महंगा रोए एक बार. इधर कमाओ, उधर उड़ाओ!’’