राजनीति की रोचक कबड्डी, पार्टी कर देती है ओल्ड गार्ड की छुट्टी

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, किसी भी पार्टी की शोभा उसके पुराने सिपहसालारों या ओल्ड गार्ड से होती है. कहते भी हैं- ओल्ड इज गेल्ड. जो जूना वो सोना. ओल्ड गार्ड अनुभवी और तरह-तरह की चुनौतियां झेलने में प्रवीण होते हैं. पार्टी के प्रति उनकी वफादारी की कद्र की जानी चाहिए.’’ हमने कहा, ‘‘क्या आपने कबाड़ी को आवाज देते नहीं सुना- ‘जूना-पुराना लोहा-लोखंड, रद्दी वाला!’ लोग बेहिचक कबाड़ी को पुराना सामान दे देते हैं ताकि घर साफ-सुथरा और व्यवस्थित बना रहे. इसी तरह हर पार्टी अपने ओल्ड गार्ड को ठिकाने लगा देती है ताकि नए लोगों को मौका मिले.

    बीजेपी ने पहले तो आडवाणी और मुरलीमनोहर जोशी को अपने शोकेस से हटाकर परामर्शदाता मंडल नामक अंधेरे बेसमेंट में डाल दिया. केशूभाई पटेल, शांता कुमार, यशवंत सिन्हा को रिटायर कर दिया. सुमित्रा महाजन, उमा भारती, कल्याण सिंह सब की छुट्टी कर दी. अब येदियुरप्पा को इस्तीफा देना पड़ गया.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इंदिरा गांधी ने भी तो अपनी अंकल की उम्र के नेताओं को कामराज योजना के जरिए बाहर किया था. बीजेपी नेतृत्व ने येदियुरप्पा को बाहर का रास्ता दिखाया तो इंदिरा ने भी निजलिंगप्पा, अतुल्य घोष, एसके पाटिल, एन संजीव रेड्डी, मोरारजी देसाई की छुट्टी की थी. पॉलिटिक्स में कोई किसी का सगा नहीं होता.

    चेंज कहां नहीं होता! क्रिकेट में गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, महेंद्रसिंह धोनी गए, तभी तो विराट कोहली आगे आए. पतझड़ के बाद बसंत आने पर नए पत्ते आ जाते हैं. गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि जो चले गए, उनका शोक मत कर.’’ हमने कहा, ‘‘पार्टी पुराने नेताओं को चुका हुआ कारतूस या पुराना बैटरी सेल मानकर बाहर कर देती है. अटल-आडवाणी जमाने के नेता अब बीजेपी को नहीं चलते. कोई आश्चर्य नहीं कि कर्नाटक के बाद पार्टी मध्यप्रदेश में भी परिवर्तन की सोचे. पुराने नेता अपने स्वर्णिम अतीत को याद कर यही गुनगुनाते रहेंगे- जाने कहां गए वो दिन…!’’