चातुर्मास में निद्रा आती है देवता ही नहीं सरकार भी सो जाती है

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, आषाढ़ी या देवशयनी एकादशी से भगवान 4 माह के लिए सो गए. जब देवता सो जाएं तो कोई मंगल कार्य नहीं किया जाता. इसका मतलब यह कि शादी-ब्याह रुक जाएंगे. हमें समझ में नहीं आता कि ब्रह्मांड के नियंता ईश्वर कैसे सो सकते हैं!’’ हमने कहा, ‘‘यह भगवान विष्णु की योगनिद्रा है. इस समय वे ध्यानमग्न रहते हैं. घर में सर्प होने का अंदेशा होने पर लोगों की आंखों से नींद उड़ जाती है लेकिन भगवान शेषनाग की शैया पर निश्चिंत सोए रहते हैं और लक्ष्मी उनके चरण दबाती हैं. शेषनाग विष्णु भगवान के साथ अवतार भी लेते हैं. कभी वे छोटे भाई लक्ष्मण के रूप में अवतरित होते हैं तो कभी बड़े भाई बलराम के रूप में!’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जहां तक सोए रहने की बात है, विपक्ष मानता है कि सरकार भी सोई हुई है. इस नींद में गाफिल सरकार को कमरतोड़ महंगाई, भारी बेरोजगारी दिखाई नहीं देती. जनता उससे कह सकती है- जागो सोने वालों, सुनो मेरी कहानी! यूपी में कोरोना से इतनी मौतें हुईं कि वहां श्मशानों में जगह कम पड़ गई तो दर्जनों शव गंगा में बहा दिए गए. ऑक्सीजन, बेड, अस्पतालों के अभाव में हजारों बेबस मरीजों ने दम तोड़ दिया. इतने पर भी प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफों के पुल बांध दिए कि उन्होंने यूपी को बहुत अच्छी तरह मैनेज किया. क्या इस तरह के रवैये को खुली आंख रखकर सोना नहीं कहेंगे? अभी पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम चरम पर हैं. खाद्य तेल की कीमतों में रिकार्डतोड़ वृद्धि हुई है. किराना से लेकर सब्जी तक सभी के दाम आसमान छू रहे हैं, अर्थव्यवस्था चौपट है लेकिन सोई हुई सरकार को कुछ दिखाई नहीं दे रहा है.’’

    हमने कहा, ‘‘सत्ताधारियों का एक अलग वर्ग होता है. 84 प्रतिशत सांसद करोड़पति हैं. महंगाई उनके पास फटक ही नहीं सकती. इसलिए वे आम जनता की व्यथा क्या जानें! जब कोई पार्टी चुनाव हार जाती है तो दुखभरे स्वर में कहती है- सोई थी मैं, कहीं खोई थी मैं, जागी तो फिर बड़ा रोई थी मैं! सत्ताधारियों को सोने के लिए लोरी नहीं सुनानी पड़ती, वे अपने आप ही कुंभकर्ण की नींद सो जाते हैं और तब जागते हैं जब इलेक्शन सामने आता है.’’