खोज रही है जनता, कहीं चले गए जमीन से जुड़े नेता

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, आजकल जमीन से जुड़े ऐसे नेता दिखाई नहीं देते जिनकी जड़ें मजबूत हों. इसी वजह से राजनीति में उथलापन आ गया है. जब नेताओं का जनाधार न हो तो पार्टी निराधार हो जाती है.’’ हमने कहा, ‘‘तृणमूल का मतलब है घास की जड़! ममता बनर्जी की इस पार्टी को मोदी और अमित शाह का तूफानी चुनाव प्रचार हिला तक नहीं पाया. 200 से ज्यादा सीटें जीतने की बड़ी-बड़ी डींग हांकने वाले अब बेशर्मी से कह रहे हैं कि हमारी पार्टी ने 25 गुना सफलता हासिल कर रिकार्ड बनाया. पिछली विधानसभा में हमारी पार्टी की सिर्फ 3 सीट थी लेकिन अब 75 पार हो गई है.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, एक और बात गौर करने लायक है कि कांग्रेस मदर ऑफ आल पार्टीज है. जो उससे निकला, वह बाहर जाकर पनप गया. कितने ही सफल नेताओं की जड़ कांग्रेस में रही है. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले कांग्रेस में थीं. तब अन्य कांग्रेस नेता भी उन्हें तेज मिजाज और लड़ने-झगड़ने वाली माना करते थे. उन्होंने यूपीए, एनडीए में रहने के बाद तृणमूल बनाई. इसी तरह असम के मुख्यमंत्री बन चुके हिमंत बिस्व सरमा पहले कांग्रेस में थे. इस जोशीले और जनाधार वाले नेता की राहुल गांधी ने उपेक्षा की. हिमंत जब राहुल से मिलने पहुंचे तो उनकी बात सुनने की बजाय राहुल अपने कुत्ते ‘पिडी’ को बिस्किट खिलाते रहे. राहुल को अपने डॉगी की ज्यादा फिक्र थी.

    नतीजा यह निकला कि हिमंत बिस्व सरमा फौरन कांग्रेस की गोद से उछलकर बीजेपी में चले गए. ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे युवा और संभावनाएं रखने वाले नेता भी कांग्रेस में उपेक्षा महसूस करने के बाद समर्थकों सहित बीजेपी में शामिल हो गए. इसी वजह से मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार का भट्ठा बैठ गया और शिवराज की तकदीर फिर से जाग उठी.’’ हमने कहा, ‘‘पुडुचेरी के भाजपाई मुख्यमंत्री एन रंगास्वामी भी पहले कांग्रेस में थे. आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी भी पहले कांग्रेस में थे. जब उनकी उपेक्षा हुई तो उन्होंने वाईआरएस कांग्रेस बना ली. किसी न किसी रूप में कांग्रेस हर कहीं है.’’