वक्त कैसा आ गया 2400 रु. में बिकने लगी बोतल बंद हवा

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज (Nishanebaaz), कितनी हैरत की बात है कि हवा भी बिकने लगी. ब्रिटेन की एक कंपनी स्वच्छ स्थानों की हवा को बोतल (UK Company Sells Bottles) में पैक करने के बाद उसका कारोबार करती है. 500 मिलीलीटर हवा को 2400 रुपए में बेचा जाता है. कंपनी का दावा है कि इस हवा को सूंघने से लोग मानसिक व शारीरिक तौर पर खुद को तरोताजा महसूस करेंगे. लॉकडाउन में घरों में बंद लोगों के लिए यह शुद्ध हवा (Pure Fresh Air) फायदेमंद बताई जाती है. अब आप यह मत कहिएगा कि ये सब ठगी के धंधे हैं.’’ हमने कहा, ‘‘हम ऐसा क्यों कहेंगे! हवा का महत्व हर कोई जानता है.

आक्सीजन को प्राणवायु कहा जाता है. सांस के जरिए शरीर में हवा खींची जाती है. कहते हैं जब तक सांस तब तक आस! फिल्मी गीतों में हवा का गुणगान किया जाता रहा है. आपने सुना होगा- इन हवाओं में, इन फिजाओं में तुझको मेरा प्यार पुकारे. हवा के साथ-साथ घटा के संग-संग ओ साथी चल. ये हवा, ये रात, ये चांदनी, सब तेरे रुख पे निसार है. कहते हैं मुझको हवा-हवाई. जाने दे जाने दे, थोड़ी हवा आने दे. चली-चली फिर चली-चली, चली इश्क की हवा चली! गुलाम अली की गजल भी है- दिल में इक लहर सी उठी है अभी, कोई ताजा हवा चली है अभी!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, ईश्वर या प्रकृति ने सारी दुनिया को हवा मुफ्त में दी है लेकिन लालची लोग उसको भी बेचने लगे.

जिसे शुद्ध हवा चाहिए, वह घनी बस्ती से बाहर निकलकर बाग-बगीचे में जा सकता है. नीम के वृक्ष के नीचे बैठ सकता है. वैसे भी सारे वृक्ष कार्बन डाइआक्साइड ग्रहण कर बदले में शुद्ध ऑक्सीजन देते हैं.’’ हमने कहा, ‘‘समय के साथ हर चीज जायज हो जाती है. 50 साल पहले पानी मुफ्त में मिलता था. लोग गर्मी में प्याऊ खोलते थे. अब बोतलबंद 1 लीटर पानी 15 से 20 रुपए में आता है. लोग पुराने दिन भूल-बिसर गए और बिसलरी का पानी पीने लगे. सुनील दत्त की पहली फिल्म थी ‘रेलवे प्लेटफार्म’ जिसमें ट्रेन एक गांव के पास जाकर बिगड़ जाती है. उसमें व्यापारी की भूमिका निभानेवाला जानी वाकर तुरंत जाकर गांव का एकमात्र कुआं खरीद लेता है और पानी बेचने लगता है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, हवा किसी को दिखाई नहीं देती इसलिए किसे पता कि बोतल में ताजी हवा पैक की गई है? हमने यह भी सुना है कि शराब के बार के समान ऑक्सीजन बार भी खोले गए हैं जहां जाकर लोग खुद को तरोताजा महसूस करते हैं.’’ हमने कहा, ‘‘जब प्रदूषण लगातार बढ़ेगा तो लोगों को शुद्ध हवा खरीदनी ही पड़ेगी. वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की वजह से वैसा समय दस्तक देने लगा है.’’