मुंबई: ओलंपिक में पदार्पण करने वाली भारत की एकमात्र तलवारबाज भवानी देवी भले ही दूसरे दौर से बाहर हो गयीं लेकिन उनका कहना है कि तोक्यो में उन्होंने सबक सीख लिया है और भविष्य में नयी ऊंचाईयां छूने के लिये अपनी तकनीक पर काम करेंगी।
भवानी पहली भारतीय तलवारबाज हैं जिन्होंने ओलंपिक के लिये क्वालीफाई किया। 27 साल की इस तलवारबाज ने ट्यूनीशिया की नाडिया बेन अजीजी के खिलाफ 15-3 की जीत से अभियान शुरू किया लेकिन अगले दौर में वह फ्रांस की मैनन ब्रुनेट से 7-15 से हार गयीं।
भवानी ने भारतीय खेल प्राधिकरण द्वारा आयोजित वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस में कहा, “तोक्यो से मैंने एक सबक सीखा है कि कड़ी मेहनत जारी रखो क्योंकि मैंने रियो के बाद कड़ी मेहनत जारी रखी जो मुझे तोक्यो ले आयी। मुझे तलवारबाजी की कुछ रणनीतियों में जैसे तकनीकी पहलुओं पर काम करके सुधार करने की जरूरत है।”
उन्होंने कहा, “मुझे मेरे मैचों के लिये अच्छा फीडबैक मिला क्योंकि मैं बाहर के दबाव पर अच्छा नियंत्रण बनाये थी, यही चीज मेरे लिये अच्छी है। मैं कड़ी मेहनत जारी रखूंगी और आगामी प्रतियोगिताओं में पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर नतीजे हासिल करूंगी।” भवानी ने कहा कि तोक्यो ओलंपिक में उन्होंने जो कुछ हासिल किया, वह उससे संतुष्ट हैं।
उन्होंने कहा, “पहला मैच काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि यह शुरूआत थी। मैं मैच से पहले थोड़ा नर्वस महसूस कर रही थी। लेकिन मैंने शुरूआत की और अच्छा अंत किया, साथ ही दूसरा मैच भी मेरे लिये अच्छा था। मुझे ऐसा नहीं लगता कि मैंने कोशिश नहीं की, मैंने कोशिश की थी। ”
उन्होंने कहा, “मुझे सुधार करने की जरूरत है। मैं जानती हूं कि वह (उनकी प्रतिद्वद्वी) तीसरे नंबर की तीरंदाज थी और उसे ओलंपिक में कांस्य पदक मिला। लेकिन मुझे लगा कि मैंने कोशिश की थी, मैंने उस मैच को जीतने के लिये पूरा जतन किया। इसलिये मुझे अपनी रणनीतियों पर थोड़ा काम करने की जरूरत है लेकिन तोक्यो में जो कुछ हुआ, उससे मैं सतुष्ट हूं।” भवानी ने कहा कि उनका ध्यान हमेशा अपने देश के लिये पदक जीतने पर लगा रहता है, भले ही प्रतियोगिता कोई भी हो।
इस सेबर तलवारबाज ने कहा, “मैं हमेशा भारत के लिये पदक जीतना चाहती हूं, भले ही यह ओलंपिक हो, विश्व चैम्पियनशिप हो या फिर एशियाई चैम्पियनशिप। लेकिन हमारे और भी महत्वपूर्ण टूर्नामेंट आने वाले हैं।” भवानी ने कहा कि जो ओलंपिक से बिना पदक के लौटेंगे, उनका भी उसी तरह समर्थन किया जाना चाहिए जैसा पहले किया गया था।
उन्होंने कहा, “एक खिलाड़ी की जिंदगी बहुत मुश्किल होती है, हर खिलाड़ी एक स्वर्ण पदक के लिये काम करता है। कुछ जीत जाते हैं, कई उस पदक को नहीं जीत पाते लेकिन यह अंत नहीं होता, हमें वही समर्थन चाहिए होता है और स्वर्ण पदक विजेताओं को हमेशा यह अच्छा समर्थन और अधिक प्रोत्साहन मिलता है।”