Vinesh Phogat Strong contender for medal at Tokyo Olympics
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2014 से विनेश का सुनहरा सफर शुरू हुआ, जब उसने ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों की 48 किलोग्राम श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता।

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    नयी दिल्ली. हरियाणा (Haryana) ने खेल जगत में देश-दुनिया के पटल पर कई जगमगाते सितारे दिए हैं। खेल के क्षेत्र में न केवल लड़कों बल्कि यहां की लड़कियों का भी बराबर का दबदबा रहा है। राज्य के फोगाट परिवार की लड़कियों ने कुश्ती में एक के बाद एक कई मील के पत्थर स्थापित करके राज्य की लड़कियों के अरमानों को पर दिए और अब इसी परिवार की विनेश फोगाट (Vinesh Phogat) ने तोक्यो ओलंपिक (Tokyo Olympics) खेलों में पदक की आस बंधाई है।

    यह दिलचस्प संयोग है कि 2016 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो में हुए ओलंपिक खेलों में भारत ने सिर्फ दो पदक जीते और दोनों ही पदक महिला खिलाड़ियों के प्रयासों से हासिल हुए। हरियाणा की साक्षी मलिक कुश्ती में ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनीं और अब यह उम्मीद की जा रही है कि हरियाणा की ही विनेश फोगाट विजयी मंच पर पहुंचकर भारत के तिरंगे का मान बढ़ाएंगी।

    विश्व कुश्ती प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीतकर तोक्यो ओलंपिक खेलों में पहुंचने वाली विनेश फोगाट का जन्म 25 अगस्त 1994 को हरियाणा के भिवानी ज़िले के बलाली गांव में राजपाल और प्रेमलता के घर हुआ। विनेश सिर्फ नौ बरस की थीं, जब उनके पिता की मौत हो गई। ऐसे में उनके ताऊ महावीर ने उन्हें अपने संरक्षण में लिया और अपनी बेटियों के साथ उन्हें भी पहलवानी के गुर सिखाने लगे।

    हालांकि, हरियाणा के सामाजिक परिवेश में लड़कियों को अखाड़े में उतारना आसान नहीं था। लोगों ने फोगाट बहनों के कुश्ती और दंगल में भाग लेने पर कड़ा एतराज किया। महिला प्रतियोगी न होने के कारण फोगाट बहनों को दंगल में लड़कों से कुश्ती लड़नी पड़ी। इस सबसे उनमें खुद को बेहतर साबित करने और पिता एवं कोच महावीर फोगाट के सपने को सच करने का जज्बा पैदा हुआ।

    देश की प्रमुख महिला पहलवानों को कुश्ती के गुर सिखाने वाले अर्जुन पुरस्कार विजेता कृपाशंकर बिश्नोई ने वर्ष 2009 में सब जूनियर वर्ग से विनेश को प्रशिक्षण देना शुरू किया और 19 बरस की आयु में विनेश ने दिल्ली में एशियन चैंपियनशिप के 52 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीतकर कुश्ती के अन्तरराष्ट्रीय नक्शे पर पहली बार अपना नाम लिखा।

    2014 से विनेश का सुनहरा सफर शुरू हुआ, जब उसने ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों की 48 किलोग्राम श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता। उसके बाद की तमाम प्रमुख अन्तरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में विनेश फोगाट का नाम विजेताओं की सूची में रहा, लेकिन 2020 के रियो ओलंपिक खेलों में घुटने की चोट ने उनके ओलंपिक पदक जीतने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

    रियो ओलंपिक खेलों के क्वार्टर फाइनल मुकाबले के दौरान विनेश फ्रीस्टाइल स्पर्धा के 48 किलोग्राम भार वर्ग में चीन की सुन यनान के खिलाफ मुकाबला कर रही थीं और 1-0 की बढ़त बनाए हुए थीं, सुन के एक दांव से विनेश को चोट लग गई और उन्हें स्ट्रेचर से बाहर लाया गया। उनके रूंधे गले और भीगी आंखें देखकर करोड़ों देशवासियों की आंखें भी नम हो गईं। हालांकि, विनेश ने अपनी इस चोट से उबरकर दोगुने उत्साह से अपनी तैयारी शुरू की और तोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली भारत की पहली महिला पहलवान बनी।

    पिछले दो सप्ताह में उसने दो प्रमुख स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक जीता है। हालांकि पिछले ओलंपिक की टीस अभी उसके दिल से गई नहीं है, लेकिन उसका कहना है कि वह अपने अधूरे सपने को तोक्यो में जरूर पूरा करेगी और इसके लिए वह हर दिन सात घंटे अभ्यास कर रही है और दोगुने उत्साह से अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही है।

    2016 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित विनेश का कहना है कि ओलंपिक खेलों की कुश्ती स्पर्धा में सुशील कुमार के पदक जीतने के बाद कुश्ती के क्षेत्र में क्रांति आई और साक्षी मलिक के ओलंपिक पदक ने देश की बेटियों में एक नया उत्साह भर दिया। उनका मानना है कि देश में महिला कुश्ती में बहुत तेजी से बदलाव आ रहा है और कुश्ती अब केवल ताकत का खेल नहीं रह गया है और इसमें स्टेमिना और स्ट्रेंथ का काफी योगदान रहता है। उन्हें उम्मीद है कि तोक्यो ओलंपिक खेलों में वह अपना ही नहीं बल्कि पूरे देश का सपना पूरा कर पाएंगी।