Bihar government's decision amid rising cases of Corona, Chief Minister's Janata Darbar program postponed
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पटना: बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार को कहा कि राज्य को कोरोना वायरस से निश्चित रूप से खतरा है क्योंकि इसकी आबादी का घनत्व अधिक है और इसलिए सतर्क और सजग रहने की जरूरत है। बिहार विधानसभा में “कोरोना वायरस और बाढ़” पर सरकार के जवाब के बाद नीतीश ने कहा कि राज्य में इससे निश्चित रूप से खतरा है क्योंकि बिहार में जनसंख्या घनत्व देश में सबसे अधिक है। यह (जनसंख्या घनत्व) राष्ट्रीय औसत से तीन गुणा अधिक है और इसलिए हमें सतर्क और सजग रहने की आवश्यकता है।” उन्होंने कहा कि कोविड 19 से संक्रमित होने से बचाव के लिए लोगों को मास्क पहनने, हाथों की सफाई, कम से कम दो गज की दूरी बनाए रखने के बारे में जागरुक करने की जरूरत है।

नीतीश ने कहा, “लोगों के बीच चेतना के स्तर को बढ़ाना हमारी ज़िम्मेदारी है।” उन्होंने कहा कि सरकार इसके प्रसार को रोकने के लिए हरसंभव उपाय कर रही है, लेकिन कोई नहीं जानता कि आने वाले महीनों में कोरोना वायरस के बारे में क्या-क्या बातें सामने आती हैं। नीतीश ने कहा कि दुनियाभर में फैल रहा कोरोना वायरस, “राजनीतिक” मुद्दा नहीं है क्योंकि हर कोई इससे प्रभावित है। इसलिए हमें राजनीतिक दलों सहित सभी के समर्थन और सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी से आग्रह किया कि वह एक सर्वदलीय समिति गठित करें जो स्थिति को सुधारने के लिए अपने सुझाव देने के अलावा कोविड-19 के मुद्दे पर चर्चा करेगी।

नीतीश ने कहा कि डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ, नर्सों और स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों को प्रोत्साहन के रूप में एक महीने का मूल वेतन दिया जाएगा। उन्होंने बिहार में बाढ़ से प्रभावित हुई आबादी की चर्चा करते हुए बताया कि राज्य सरकार ने अब तक बाढ़ प्रभावित जिलों में 2,63,659 परिवारों को प्रति परिवार 6,000 रुपये राहत राशि दी है। नीतीश ने कहा कि उन्होंने 10 दिनों में बाढ़ प्रभावित हर परिवार को जीआर राशि हस्तांतरित करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने कहा कि बाढ़ प्रभावित जिलों में राहत शिविरों में रहने वाले सभी लोगों का कोविड-19 का परीक्षण किया जाना चाहिए जो प्रशासन को संक्रमित व्यक्ति को अलग करने में मदद करेगा।

इससे पहले कोरोना वायरस और बाढ़ पर बहस के दौरान, प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव ने राज्य सरकार द्वारा पिछले 15 वर्षों में राज्य में बुनियादी ढाँचा बनाने में विफलता और एनएचआरएम, नीति आयोग, यूनिसेफ के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2005 में 101 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) थे। राजग सरकार के पिछले 15 वर्षों में केवल 49 नए सीएचसी बनाए हैं। उन्होंने कहा कि वर्ष 2005 में राज्य में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 12,086 थी, लेकिन 2019 में इनकी संख्या घटकर 11,958 रह गई है।

डॉक्टर-रोगी अनुपात के बारे में बात करते हुए, राजद नेता ने कहा कि आदर्श रूप से प्रति 1000 रोगियों पर एक डॉक्टर होना चाहिए, लेकिन शहरी क्षेत्रों में यह अनुपात 1: 3207 है, जबकि राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों में यह 1: 17685 है। तेजस्वी ने कहा कि नीति आयोग के अनुसार, “राज्य में चिकित्सा बुनियादी ढांचे को विकसित करने की आवश्यकता है … बिहार स्वास्थ्य मानकों में सबसे नीचे है।”

तेजस्वी ने स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय पर आरोप लगाया कि उन्होंने दावा किया कि प्रदेश में स्थिति का आकलन करने के लिए दो दिन के लिए राज्य का दौरा करने वाली केंद्रीय टीम ने कोरोना वायरस से निपटने के लिए बिहार सरकार की प्रशंसा की थी, लेकिन तथ्य यह है कि मंत्री ने झूठ बोला था। उन्होंने दावा किया कि तीन सदस्यीय केंद्रीय स्वास्थ्य टीम ने राज्य सरकार की आलोचना की थी। पटना में जब उन्होंने कई अस्पतालों का दौरा किया तो देखा कि कोविड-19 के रोगियों के शव बिस्तर और गलियारे में पड़े थे। तेजस्वी ने कहा, “डॉक्टर कोविड-19 रोगियों के पास नहीं जा रहे हैं क्योंकि उनके पास पीपीई किट नहीं हैं … डॉक्टरों को डर है कि संक्रमित होने पर उनका इलाज कौन करेगा … पूरी प्रणाली ध्वस्त हो गई है।”