Babulal Marandi

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    ओमप्रकाश मिश्र 

    कोरोना (Corona) का दंश झेल रहे झारखंड (Jharkhand) में संक्रमण नियंत्रण, यहाँ के विकास दर, स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रशासनिक कार्यशैली और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी (Babulal Marandi) ने एक विशेष साक्षात्कार में उन्मुक्त कंठ से अपने विचार प्रकट किये। 

    किसी राज्य को तोड़कर अलग राज्य बनाने के पीछे राजनैतिक पार्टी और नेताओं की क्या मंशा होती है?

    इस सवाल के जवाब में मरांडी ने कहा जहाँ कहीं भी अलग राज्य की मांग होती है उसके के दो ही कारण होते है पहला विकास और दूसरा सत्ता में भागीदारी 

    आप इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे है आपके शासनकाल से लेकर अब तक झारखण्ड का कितना विकास होना चाहिए था और कितना हुआ है झारखण्ड के विकास से आप संतुष्ट है?

    विकास से कभी किसी को संतुष्ट नहीं होना चाहिए विकास एक सतत प्रक्रिया है जो निरंतर चलता रहता है समय के साथ आवश्यकताएं भी बदलती है, जहां तक विकास की बात है तो राज्य बनने के बाद विकास तो हुए ही हैं पर ये भी नहीं कहा जा सकता कि पूरी तरह विकास हो गया है और विकास के क्षेत्र में अब कोई काम करना ही नहीं है। विकास के नाम पर गांव तक सड़कें पहुंचाई गई है, नदियों में पुल बने है। घर-घर तक बिजली पहुंची हैं। आवागमन के लिए यातायात की सुविधाएं बढ़ी है, ये सारी सुविधाएं लोगों को मिली हैं। शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम हुए है पर बहुत कुछ करना बाकी है।

    शिक्षा के क्षेत्र में आप क्या कमी महसूस करते हैं? क्या होना चाहिए था जो अभी तक नहीं हुआ है?

    शिक्षा कई प्रकार के होते है एक तो सामन्य पढ़ाई में साइंस आर्ट्स और कॉमर्स की पढाई है। दूसरा तकनीकी क्षेत्र हैं, जहां मेडिकल और इंजीनियरिंग दोनों आते हैं। दोनों क्षेत्रों में गरीब तबके छात्र शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते। साथ ही बाहरी मुल्कों में जहां से बेहतर शिक्षा प्राप्त की जा सकती है उसमे भी झारखण्ड के गरीब तबके छात्र ऐसी शिक्षा नहीं ले पाते है। हमारे यहां संसाधन है पर तकनीकी शिक्षा का अभाव है जिसके कारण विकास का काम नहीं हो पा रहा है। ऐसी शिक्षा व्यवस्था बहाल करने के लिए कोई भी सरकार हो किसी भी पार्टी की सरकार हो उसे इन कमियों के तरफ ध्यान देना चाहिए। यह समस्या सिर्फ झारखण्ड की नहीं, बल्कि पुरे देश की है और इसके लिए कोई एक सरकार जिम्मेदार नहीं है, बल्कि पिछले 70 वर्षों में हमें इस तरफ ध्यान देना चाहिए था और हम यह नहीं कर पाए। 

    कोरोना से निपटने की हेमंत सरकार की तैयारी के बारे में क्या कहना चाहेंगे?

    डॉक्टरों की निहायत कमी दिख रही है। पारा मेडिकल स्टाफ की कमी दिख रही है। नर्सों की कमी, आरटीपीसीआर किट आए तो है पर उसकी मशीनें नहीं लगी है। मशीन लग भी गई तो माइक्रो बायोलोजिकल टेस्ट करने के लिए टेक्निकल हैंड की कमी है। स्वतंत्रता के बाद देश में एक ही एम्स हुआ करता था। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय रायबरेली में दूसरा एम्स बना। पिछले 6-7 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेडिकल कॉलेज की संख्या बढ़ाने का काम किया जिसके फलस्वरूप आज पुरे देश में करीब 20-22 एम्स खोले गए है, जिसमे 12-14 एम्स में मरीजों को चिकित्सा सेवा प्रदान की जा रही है। मेडिकल कॉलेज की भी यही हाल रही है। पहले निजी मेडिकल कॉलेज ज्यादा होते थे। पर सरकार के प्रयास से अब सरकारी मेडिकल कॉलेज की संख्या ज्यादा है। इसी तर्ज पर हेमंत सरकार को भी प्रयास करना चाहिए था पर इतने ही प्रयास से समस्याएं हल नहीं हो जाती। अभी देश और इस राज्य के कई इलाकों में यह महसूस किया जा रहा है कि अस्पतालों, डॉक्टर्स और टेक्निसियन की सख्त कमी है। बहुत सारे सेक्टर बने है, वहां कोई देखने वाला नहीं है। झारखण्ड में बहुत सारे वेंटिलेटर आए हैं, पर इन्हें चलाने वाले टेक्निसियन नहीं हैं। प्रशिक्षित टेक्निसियन की कमी है और यह कमी सिर्फ झारखण्ड में ही नहीं सभी जगहों पर यही हाल है। 

    बतौर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वर्तमान कार्यकलापों के सन्दर्भ में आप की राय है?      

    वर्तमान परिपेक्ष में सीएम हेमंत सोरोन को सरकारी अफसरों के बजाय विशेषज्ञों की सलाह लेनी चाहिए उन्हें अपने साथ बैठाकर उनका परामर्श लेना चाहिए था। चार-पांच आईएएस ऑफिसरों के साथ बैठकर उनकी बातें सुनकर समस्या का समाधान नहीं कर सकते। समस्याओं से निज़ात पाने के लिए समस्या से जुड़े उस क्षेत्र के विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए। अफसरों की ऐसी मानसिकता होती है कि वो अपने सामने किसी को कुछ समझते ही नहीं। ऐसे लोग विशेषज्ञ नहीं होते इसलिए इनसे समस्याओं का हल नहीं निकाला जा सकता। हेमंत सोरेन राज्य के अफसरों के अलावा  नामी डॉक्टर्स या दूसरे क्षेत्र के विशेषज्ञों को बुलाकर उनसे परामर्श लेते। उन लोगों से पूछते की समाधान क्या है? हमारे पास उपलब्ध सीमित संसाधन है इससे समस्याओं का हाल कैसे निकाला जा सकता है? ऐसा करने से उन्हें अच्छा सुझाव मिलता।  परिणाम ज्यादा अच्छा मिलते। 

    झारखंड में जहां एक ओर कोरोना मौत बनकर लोगों को निगल रहा है, वहीँ दूसरी तरफ भ्रष्टाचार के बहुत से मामले आ रहे है, आप इस बात से सहमत है क्या कि झारखण्ड में भ्रष्टाचार सर चढ़ कर बोल रहा है?

    सहमत होने की बात ही क्या है ये तो आए दिन आंखों के सामने दिख रहा है और मैं रोज इसके खिलाफ आवाज भी उठाता रहता हूं।

    किस क्षेत्र में भ्रष्टाचार दिखाई देता है आपको?

    कोई ऐसा क्षेत्र नहीं जहाँ भ्रष्टाचार नहीं हों। जहाँ की गंगोत्री ही मैली हो गई है वो गंगा साफ कैसे हो सकती है। भ्रष्टाचार का मूल श्रोत है ट्रांसफर, पोस्टिंग में अफसरों से पैसा लेना, रिश्वत लेना। इसके अलावा विकास योजनाओं में अफसरों से कमीशन लेना। आये दिन सर्वत्र चर्चा होती है कि ट्रांसफर पोस्टिंग में पैसे मांगे जा रहे है। जो भी ऑफिसर पैसा देकर कहीं पदस्थापित होंगे वैसे अफ़सर भ्रष्टाचार तो फैलाएंगे ही और ऐसा करने में उनको कोई डर भी नहीं होता। 

    विगत कुछ दिनों में ही तीन एसडीएम बदले गए क्या कारण हो सकता है इतने कम समय में तीन एसडीएम के तबादले का?  

    इसके दो कारण हो सकते है एक तो ये कि अफ़सर उनके मन के मुताबिक काम नहीं करते होंगे। मन मुताबिक काम अर्थात अफसरों से अवैधानिक कार्य करने पर जोर डाला जाता होगा और वो ऐसा करने से इंकार करते होंगे। दूसरा कारण है पैसे का लेन–देन।

    आप इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री रहे है आपको भ्रष्टाचार की इतनी जानकारी है आपने इसके खिलाफ कोई आवाज उठाया क्या? 

    वर्ष 2019 में हेमंत सोरेन की सरकार बनी, जनवरी फरवरी बजट सत्र में गुजरा, इसके तुरंत बाद लॉकडाउन हो गया। 2020 पूरी तरह से लॉकडाउन ओर कोरोना के अफरा-तफरी में ही गुजरा। इसके अलावा कुछ प्रदेशों में उप चुनाव भी हुए, जिसमे संअवैधानिक दायित्व होते है चुनाव करवाना और इसमें सहयोग देना। इसके बाद अभी 2021 में भी वही हालत है तो ऐसे में बाहर निकलना हो ही नहीं पाया। जिससे भ्रष्टाचार के खिलाफ जो आन्दोलन होना चाहिए, जिस तरह से आवाज बुलंद किया जाना चाहिए, वो नहीं हो पाया। स्पष्ट तौर पर  जो विरोध दिखना चाहिए था वो नहीं दिखा है। पर पत्र और समाचार पत्रों के माधयम से जितना संभव हो पा रहा है आवाज उठा ही रहे है ।

    मेडिकल सेवा का क्षेत्र है और स्कूल कॉलेज शिक्षा का दोनों ही क्षेत्र देश के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है वर्तमान में दोनों क्षेत्रों में भ्रष्टाचार सर चढ़ कर बोल रहा है दोनों क्षेत्रों को लूट का माध्यम बना दिया गया है गरीब, स्कूल – कॉलेज के फीस नहीं भर पा रहे हैँ तो मेडिकल में मरीजों का  डॉक्टर से  भरोसा उठ सा गया है । इसे रोकने का क्या उपाय हो सकता है ?

    जब मै मुख्यमंत्री था तब सम्बंधित लोगों से इन विषयों में मेरी बहस होती थी। मेरा मानना है कि सरकार और निजी क्षेत्रों के लोगों को इन दोनों क्षेत्रों में पूंजी निवेश करना चाहिए। मांग और आपूर्ति में जब ज्यादा अंतर हो जाता है तब ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है। पूंजी निवेश से हॉस्पिटल, डॉक्टर्स और स्कुल, कॉलेज की संख्या बढेंगी। संख्या बढ़ने से लोगों के पास विकल्प बढ़ेंगे, और विकल्प बढ़ा कर ही इस तरह के भ्रष्टाचार और लूट को रोका जा सकता है। जो स्कुल कॉलेज अच्छे है, उनकी संख्या कम है। संख्या कम होने का फायदा ये शैक्षणिक संस्थाएं उठाती हैं। इनकी संख्या बढ़ा दी जाय तो लूट खुद ब खुद कम हो जाएगा। दूसरा उपाय यह भी हो सकता है कि वैसे विधार्थी जो फीस देने में असमर्थ है वैसे विधार्थियों को सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में मुफ्त पढ़ाने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए।

    इतने स्कुल कॉलेज के होते हुए आजकल भारी संख्या में कोचिंग इंस्टिट्यूट में विद्यार्थियों को क्लास करना पड़ रहा है इंस्टिट्यूट चलाया जाना  सम्भवतः इस बात को इंगित करता है कि स्कुल कॉलेज में पढाई का स्तर ठीक है नहीं है?

    आने वाले कल में ये बहुत दिनों तक नहीं चलेगा। हम तकनीक की दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं। गूगल, नेट और मोबाइल आज एक वरदान के रूप में सामने आये हैं। दुनिया भर की सारी जानकारी इनसे हमें मिल जा रही है। अब इतने शिक्षक बहाल करने से अच्छा है कि सरकार ऑनलाइन शिक्षा ही शुरू कर दे। यू-ट्यूब, गूगल जैसे बहुत से साईट हैं जहाँ कम खर्च में हर तरह की शिक्षा प्राप्त की जा सकती है। इंस्टिट्यूट का धंधा बहुत जल्द ख़त्म होने वाला है। जिस तरह अभी कुछ साल पहले बात करने के लिए लोगों को एसटीडी बूथ में लम्बी लाइन लगाकर घंटों इन्तजार करना पड़ता था। पर तकनीक बदला और अब कमोबेस सबके हांथ में मोबाइल है। पलक झपकते देश-विदेश कही भी सिर्फ बात ही नहीं हो जा रही है, बल्कि वीडियो कॉल करके एक दुसरे को देख भी ले रहे है और अब एसटीडी बूथ कहीं दिखाई नहीं देता। समय के साथ सब कुछ बदल रहा है अगर ये कोचिंग वाले भी समय के साथ खुद को नहीं बदले तो इनकी भी हालत एसटीडी बूथ जैसी हो जाएगी।