KT Jaleel

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    तिरुवनंतपुरम. केरल (Kerala) के उच्च शिक्षा मंत्री के टी जलील (Kerala Higher Education Minister KT Jaleel) ने पी विजयन मंत्रिमंडल से मंगलवार को इस्तीफा दे दिया। इससे कुछ दिन पहले ही राज्य लोकायुक्त ने कहा था कि जलील ने अपने एक रिश्तेदार को लाभ पहुंचाने के लिए लोक सेवक के तौर पर अपने पद का ‘दुरुपयोग’ किया। लोकायुक्त ने यह भी कहा था कि जलील को अपने पद पर रहने का अधिकार नहीं है।

    मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों ने पीटीआई-भाषा को बताया कि जलील ने मुख्यमंत्री को इस्तीफा भेज दिया है और त्याग पत्र राज्यपाल के यहां भेज दिया गया है। राजभवन ने बताया कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने इस्तीफा स्वीकार कर लिया है। जलील ने फेसबुक पर इस्तीफा देने की पुष्टि की है। उन्होंने लिखा, “मुझे यह कहते हुए खुशी हो रही है कि जो लोग मेरे खून के प्यासे रहे हैं, उन्हें अब सुकून मिल सकता है। मैंने मुख्यमंत्री को अपना इस्तीफा सौंप दिया है। पिछले दो साल से मैं मीडिया के हमलों का सामना कर रहा हूं।”

    जलील ने कहा कि मीडिया भ्रष्टाचार या आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने या शानदार जिंदगी जीने की वजह से उनके पीछे नहीं पड़ा है। उन्होंने कहा, “मैं इसे अपने सार्वजनिक जीवन का सबसे बड़ा सम्मान मानता हूं कि तीन केंद्रीय एजेंसियों ने अच्छी तरह से जांच की और उन्हें मेरे खिलाफ कुछ नहीं मिला।”

    सीमा शुल्क विभाग, एनआईए और ईडी ने जलील के खिलाफ आरोपों की जांच की थी लेकिन उनके खिलाफ कुछ नहीं मिलने की वजह से जांच को बंद कर दिया गया था। जलील ने कहा, “ पिछले कुछ दिनों से मुस्लिम लीग, कांग्रेस और दक्षिणपंथी मीडिया मेरे खिलाफ खबरें प्रकाशित कर रहा है। फिलहाल मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है और मैं अदालत के फैसले का इंतजार नहीं कर रह रहा हूं तथा नैतिक आधार पर इस्तीफा दे रहा हूं।”

    थवनूर से विधायक ने कहा कि वह सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ अपना संघर्ष जारी रखेंगे। बहरहाल, जलील भाई-भतीजावाद पर इस्तीफा देने वाले एलडीएफ सरकार के दूसरे मंत्री हैं। इससे पहले एलडीएफ की सरकार बनने के सिर्फ पांच महीने बाद ही उद्योग मंत्री ई पी जयराजन को अपने भतीजे और कन्नूर से पूर्व सांसद पीके श्रीमती के बेटे को केरल उद्योग एंटरप्राइजेज लिमिटेड का प्रबंध निदेशक नियुक्त कराने को लेकर इस्तीफा देना पड़ा था।

    बहरहाल, जलील ने इस्तीफा ऐसे समय में दिया है जब एलडीएफ की इस सरकार का कार्यकाल पूरा होने में कुछ ही दिन बचे हैं। राज्य में छह अप्रैल को विधानसभा चुनाव हुए थे और दो मई को नतीजे आने हैं। उन्होंने लोकायुक्त के आदेश पर स्थगन का अनुरोध करने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया था और आज ही अदालत ने उनकी याचिका पर सुनवाई करके अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। माकपा के सचिव प्रभारी ए विजयराघवन ने उनके फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह नैतिक आधार पर लिया गया है जबकि कांग्रेस ने कहा कि उन्हें बहुत पहले ही इस्तीफा दे देना चाहिए था।

    समझा जाता है कि माकपा ने नेतृत्व ने जलील को इस्तीफा देने के लिए कहा था। कानून मंत्री ए के बालान ने जलील के इस्तीफे के बारे में पूछने पर पहले कहा था कि लोकायुक्त ने मुख्यमंत्री को रिपोर्ट पर कार्रवाई करने के लिए तीन महीने का समय दिया है और इस तरह इस्तीफा देना का राज्य में कोई चलन नहीं है।

    विधानसभा में विपक्ष के नेता रमेश चेन्नीथला ने जलील को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि मंत्री के पास इस्तीफे के अलावा कोई विकल्प नहीं था। चेन्नीथला ने पूछा कि उन्होंने तीन दिन पहले लोकायुक्त की रिपोर्ट के तुरंत बाद ही इस्तीफा क्यों नहीं दिया? उन्होंने उच्च न्यायालय का क्यों रूख किया? केंद्रीय मंत्री वी मुरलीधरन ने इस्तीफे को देर से उठाया गया कदम बताया और पूछा कि मुख्यमंत्री ने क्यों त्यागपत्र नहीं दिया। उन्होंने दिल्ली में पत्रकारों से कहा, “ मुख्यमंत्री सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय हैं, लेकिन वह इस मामले पर चुप हैं।”

    मुरलीधरन ने यह भी कहा कि इस्तीफा लोगों को मूर्ख बनाने के लिए हुआ है तथा मुख्यमंत्री ने जलील को बलि का बकरा बनाया है। प्रदेश कांग्रेस प्रमुख एम रामचंद्रन ने कहा कि मुख्यमंत्री को भाई-भतीजावाद के इस कृत्य पर अपना रुख साफ करना चाहिए। वहीं प्रदेश भाजपा प्रमुख के सुरेंद्रन ने ट्वीट किया, “ और बहु प्रतीक्षित विकेट गिर गया। मंत्री के टी जलील को विजयन सरकार से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा।

    इससे पहले लोकायुक्त ने कहा था कि श्री जलील ने एक रिश्तेदार को लाभ पहुंचाने के लिए आधिकारिक पद का दुरुपयोग किया है। अपराध में उनके साझेदार श्री विजयन को भी अपना इस्तीफा देना चाहिए।” लोकायुक्त की एक खंडपीठ ने जलील के खिलाफ शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री को सौंपी थी और कहा था कि मंत्री के खिलाफ सत्ता के दुरुपयोग, लाभ पहुंचाने और भाई-भतीजावाद के आरोप साबित होते हैं।

    खंडपीठ में न्यायमूर्ति सी जोसेफ और न्यायमूर्ति हारून-उल-राशिद शामिल हैं। लोकायुक्त का फैसला मुस्लिम यूथ लीग द्वारा 2018 में की गई शिकायत पर आया है जिसमें आरोप लगाया गया था कि जलील के रिश्ते के भाई अदीब को केरल राज्य अल्पसंख्यक विकास वित्त निगम का महाप्रबंधक नियुक्त करने में नियमों की अनदेखी की गई है। अदीब को जब नियुक्त किया गया था तब वह एक निजी बैंक के प्रबंधक थे। लोकायुक्त ने पाया कि मंत्री ने निगम में महाप्रबंधक के पद की योग्यता में बदलाव किया ताकि पद के लिए उनके रिश्तेदार पात्र हो सकें। (एजेंसी)