1/6

दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी टंकारा में सन् 1824 में मोरबी (मुंबई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम 'करशनजी लालजी तिवारी' और माँ का नाम 'यशोदाबाई' था। उनका का असली नाम 'मूलशंकर' था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए।
दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी टंकारा में सन् 1824 में मोरबी (मुंबई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम 'करशनजी लालजी तिवारी' और माँ का नाम 'यशोदाबाई' था। उनका का असली नाम 'मूलशंकर' था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए।
2/6
दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक ,अखंड ब्रह्मचारी तथा 'आर्य समाज' के संस्थापक थे। उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वंत्रता दिलाने के लिए मुंबई में 'आर्यसमाज' की स्थापना की थी।
दयानंद सरस्वती आधुनिक भारत के महान चिन्तक, समाज-सुधारक ,अखंड ब्रह्मचारी तथा 'आर्य समाज' के संस्थापक थे। उन्होंने वेदों के प्रचार और आर्यावर्त को स्वंत्रता दिलाने के लिए मुंबई में 'आर्यसमाज' की स्थापना की थी।
3/6
वे एक संन्यासी तथा एक चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। 'वेदों की ओर लौटो' यह उनका प्रमुख नारा था।
वे एक संन्यासी तथा एक चिंतक थे। उन्होंने वेदों की सत्ता को सदा सर्वोपरि माना। 'वेदों की ओर लौटो' यह उनका प्रमुख नारा था।
4/6
अपनी छोटी बहन और चाचा की हैजे के कारण हुई मृत्यु से वे जीवन-मरण के अर्थ पर गहराई से सोचने लगे और ऐसे प्रश्न करने लगे जिससे उनके माता पिता चिन्तित रहने लगे। तब उनके माता-पिता ने उनका विवाह करने का निर्णय किया लेकिन बालक मूलशंकर ने निश्चय किया कि विवाह उनके लिए नहीं बना है और वे 1846 में सत्य की खोज में निकल पड़े। दयानंद सरस्वती ने मूर्ति पूजा का विरोध किया।
अपनी छोटी बहन और चाचा की हैजे के कारण हुई मृत्यु से वे जीवन-मरण के अर्थ पर गहराई से सोचने लगे और ऐसे प्रश्न करने लगे जिससे उनके माता पिता चिन्तित रहने लगे। तब उनके माता-पिता ने उनका विवाह करने का निर्णय किया लेकिन बालक मूलशंकर ने निश्चय किया कि विवाह उनके लिए नहीं बना है और वे 1846 में सत्य की खोज में निकल पड़े। दयानंद सरस्वती ने मूर्ति पूजा का विरोध किया।
5/6
दरअसल बचपन में शिवरात्रि के दिन स्वामी दयानंद का पूरा परिवार रात्रि जागरण के लिए एक मंदिर में रुका हुआ था और उस दिन उनका पूरा परिवार सो गया तब भी वो जाग रहे थे। उन्हें इंतजार था कि भगवान शिव को जो प्रसाद चढ़ाए गए हैं वह उन्हें स्वयं ग्रहण करेंगे।
दरअसल बचपन में शिवरात्रि के दिन स्वामी दयानंद का पूरा परिवार रात्रि जागरण के लिए एक मंदिर में रुका हुआ था और उस दिन उनका पूरा परिवार सो गया तब भी वो जाग रहे थे। उन्हें इंतजार था कि भगवान शिव को जो प्रसाद चढ़ाए गए हैं वह उन्हें स्वयं ग्रहण करेंगे।
6/6

उन्होंने देखा कि चूहेस शिवजी के प्रसाद को खा रहें है, जिसको देख वो काफी आशर्चय हुए। उन्होंने कहा कि भगवान खुद के चढ़ाये गए प्रसाद की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं तो वो मानव की रक्षा कैसे करेंगे। इस बात को लेकर उन्होंने कहा कि भगवान की उपासना नहीं करनी चाहिए।
उन्होंने देखा कि चूहेस शिवजी के प्रसाद को खा रहें है, जिसको देख वो काफी आशर्चय हुए। उन्होंने कहा कि भगवान खुद के चढ़ाये गए प्रसाद की रक्षा नहीं कर पा रहे हैं तो वो मानव की रक्षा कैसे करेंगे। इस बात को लेकर उन्होंने कहा कि भगवान की उपासना नहीं करनी चाहिए।