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के. आर. नारायण का जन्म 27 अक्टूबर 1920 में 'उज्हवूर' के पेरुमथानम में एक छोटी सी फूस की झोपडी में कोचेरिल रमण विद्यार के सात बच्चो में से चौथे बच्चे के रूप में हुआ था, वे सिद्धा और आयुर्वेद की पारंपरिक भारतीय औषधि प्रणाली के व्यवसायी थे।
के. आर. नारायण का जन्म 27 अक्टूबर 1920 में 'उज्हवूर' के पेरुमथानम में एक छोटी सी फूस की झोपडी में कोचेरिल रमण विद्यार के सात बच्चो में से चौथे बच्चे के रूप में हुआ था, वे सिद्धा और आयुर्वेद की पारंपरिक भारतीय औषधि प्रणाली के व्यवसायी थे।
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के आर नारायण की प्रारंभिक शिक्षा 1927 में उझावूर के अवर प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। उस समय आने जाने का उचित साधन नहीं होता था, जिस वजह से शिक्षा के लिए उन्हें  रोज 15 किमी पैदल जाना पड़ता था। के आर नारायण जी के पास किताबें खरदीने के लिए भी पैसे नहीं होते थे, वे अपने दोस्तों से किताबें ले कर नक़ल कर लेते थे।
के आर नारायण की प्रारंभिक शिक्षा 1927 में उझावूर के अवर प्राथमिक विद्यालय में हुई थी। उस समय आने जाने का उचित साधन नहीं होता था, जिस वजह से शिक्षा के लिए उन्हें रोज 15 किमी पैदल जाना पड़ता था। के आर नारायण जी के पास किताबें खरदीने के लिए भी पैसे नहीं होते थे, वे अपने दोस्तों से किताबें ले कर नक़ल कर लेते थे।
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1931 – 1935 तक, के आर नारायण ने आवर लेडी ऑफ़ लौरदे स्कूल से शिक्षा प्राप्त की।  सन 1937 में के आर नारायण ने सेंट मेर्री हाई स्कूल से  मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की।  स्कॉलरशिप की मदद से के आर नारायण जी ने इंटरमीडिएट की परीक्षा कोट्टायम के सी. एम. एस. स्कूल से 1940 में पूरी की। 1943 में उन्होंने बी.ए  एवं  ऍम.ए अंग्रेजी साहित्य में त्रावणकोर विश्वविद्यालय से किया। वे पहले ऐसे दलित हे जिन्होंने फर्स्ट क्लास में अपनी डिग्री पूरी की।
1931 – 1935 तक, के आर नारायण ने आवर लेडी ऑफ़ लौरदे स्कूल से शिक्षा प्राप्त की। सन 1937 में के आर नारायण ने सेंट मेर्री हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। स्कॉलरशिप की मदद से के आर नारायण जी ने इंटरमीडिएट की परीक्षा कोट्टायम के सी. एम. एस. स्कूल से 1940 में पूरी की। 1943 में उन्होंने बी.ए एवं ऍम.ए अंग्रेजी साहित्य में त्रावणकोर विश्वविद्यालय से किया। वे पहले ऐसे दलित हे जिन्होंने फर्स्ट क्लास में अपनी डिग्री पूरी की।
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1944-45 में  नारायण ने पत्रकार के रूप में कार्य किया। इस दौरान 10 अप्रैल 1945 में उन्होंने गांधीजी का इंटरव्यू भी लिया था।
1944-45 में नारायण ने पत्रकार के रूप में कार्य किया। इस दौरान 10 अप्रैल 1945 में उन्होंने गांधीजी का इंटरव्यू भी लिया था।
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इंदिरा गांधी की प्रार्थना पर ही नारायण ने राजनीती में प्रवेश किया था और 1984, 1989 और 1991 में केरला के पलक्कड़ की ओट्टापलम निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए कांग्रेस की सीट से लगातार तीन जनरल चुनाव जीते।
इंदिरा गांधी की प्रार्थना पर ही नारायण ने राजनीती में प्रवेश किया था और 1984, 1989 और 1991 में केरला के पलक्कड़ की ओट्टापलम निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए कांग्रेस की सीट से लगातार तीन जनरल चुनाव जीते।
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इसके बाद 21 अगस्त 1992 को शंकर दयाल शर्मा के राष्ट्रपति काल में उनकी नियुक्ती भारत के उप-राष्ट्रपति के रूप में की गयी। उनके नाम की सिफारिश भूतपूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल ले लीडर व्ही.पी. सिंह ने की थी। बाद में पी.व्ही नरसिम्हा राव की सहायता से बिना कीसी विरोध के उन्हें चुना गया था।
इसके बाद 21 अगस्त 1992 को शंकर दयाल शर्मा के राष्ट्रपति काल में उनकी नियुक्ती भारत के उप-राष्ट्रपति के रूप में की गयी। उनके नाम की सिफारिश भूतपूर्व प्रधानमंत्री और जनता दल ले लीडर व्ही.पी. सिंह ने की थी। बाद में पी.व्ही नरसिम्हा राव की सहायता से बिना कीसी विरोध के उन्हें चुना गया था।
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एक बार केंद्र सरकार ने उनके पास उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा का प्रस्ताव सरकार के पास फिर से विचार के लिए रिटर्न कर दिया। ऐसा करने वाले वे पहले प्रेसिडेंट थे।
एक बार केंद्र सरकार ने उनके पास उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा का प्रस्ताव सरकार के पास फिर से विचार के लिए रिटर्न कर दिया। ऐसा करने वाले वे पहले प्रेसिडेंट थे।
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अपने राजनीतिक सफर में नारायणन की मुलाकात बर्मा की एक लड़की हुई। धीरे-धीरे ये मुलाकातें बढ़ती गईं और प्यार हो गया। एक राजनयिक के तौर पर नारायणन जानते थे कि देश का कानून उनको विदेशी महिला से शादी करने की इजाजत नहीं देता है। उन्होंने इस मामले में पंडित नेहरू से दरख्वास्त की। नेहरू ने मान गए।  इस तरह नेहरू की विशेष अनुमति से दोनों शादी कर ली। लड़की ने अपने लिए नया नाम चुना, ‘उषा नारायणन। ’
अपने राजनीतिक सफर में नारायणन की मुलाकात बर्मा की एक लड़की हुई। धीरे-धीरे ये मुलाकातें बढ़ती गईं और प्यार हो गया। एक राजनयिक के तौर पर नारायणन जानते थे कि देश का कानून उनको विदेशी महिला से शादी करने की इजाजत नहीं देता है। उन्होंने इस मामले में पंडित नेहरू से दरख्वास्त की। नेहरू ने मान गए। इस तरह नेहरू की विशेष अनुमति से दोनों शादी कर ली। लड़की ने अपने लिए नया नाम चुना, ‘उषा नारायणन। ’
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श्री के. आर. नारायणन ने कुछ पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें 'इण्डिया एण्ड अमेरिका एस्सेस इन अंडरस्टैडिंग', 'इमेजेस एण्ड इनसाइट्स' और 'नॉन अलाइमेंट इन कन्टैम्परेरी इंटरनेशनल निलेशंस' उल्लेखनीय हैं।
श्री के. आर. नारायणन ने कुछ पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें 'इण्डिया एण्ड अमेरिका एस्सेस इन अंडरस्टैडिंग', 'इमेजेस एण्ड इनसाइट्स' और 'नॉन अलाइमेंट इन कन्टैम्परेरी इंटरनेशनल निलेशंस' उल्लेखनीय हैं।
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नारायणन को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई पुरस्कार प्राप्त हुए थे। 1998 में इन्हें 'द अपील ऑफ़ कॉनसाइंस फ़ाउंडेशन', न्यूयार्क द्वारा 'वर्ल्ड स्टेट्समैन अवार्ड' दिया गया। 'टोलेडो विश्वविद्यालय', अमेरिका ने इन्हें 'डॉक्टर ऑफ़ साइंस' की तथा 'आस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय' ने 'डॉक्टर ऑफ़ लॉस' की उपाधि दी। इसी प्रकार से राजनीति विज्ञान में इन्हें डॉक्टरेट की उपाधि तुर्की और सेन कार्लोस विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई।
नारायणन को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई पुरस्कार प्राप्त हुए थे। 1998 में इन्हें 'द अपील ऑफ़ कॉनसाइंस फ़ाउंडेशन', न्यूयार्क द्वारा 'वर्ल्ड स्टेट्समैन अवार्ड' दिया गया। 'टोलेडो विश्वविद्यालय', अमेरिका ने इन्हें 'डॉक्टर ऑफ़ साइंस' की तथा 'आस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय' ने 'डॉक्टर ऑफ़ लॉस' की उपाधि दी। इसी प्रकार से राजनीति विज्ञान में इन्हें डॉक्टरेट की उपाधि तुर्की और सेन कार्लोस विश्वविद्यालय द्वारा प्रदान की गई।
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जीवन के अंतिम दिनों में निमोनिया से पीड़ित हो गए थे। इलाज के लिए उन्हें आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल, नई दिल्ली मं भर्ती किया गया था जहां 9 नवंबर, 2005 को उन्होंने अंतिम सांस ली। 24 जनवरी 2008 को इनकी पत्नी उषा नारायणन का भी निधन हो गया।
जीवन के अंतिम दिनों में निमोनिया से पीड़ित हो गए थे। इलाज के लिए उन्हें आर्मी रिसर्च एंड रेफरल अस्पताल, नई दिल्ली मं भर्ती किया गया था जहां 9 नवंबर, 2005 को उन्होंने अंतिम सांस ली। 24 जनवरी 2008 को इनकी पत्नी उषा नारायणन का भी निधन हो गया।