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पिता रतनजी दादाभाई टाटा यानी आरडी टाटा को फ्रेंच भाषा सीखने का शौक था। फ्रेंच पढ़ाने वाले अध्यापक के घर में ही उनकी भेंट एक फ्रेंच युवती सुजाने से हुई। यह 20 वर्ष की छरहरे बदन की लंबी, सुनहरे बालों व नीली आंखों वाली थी। आरडी टाटा ने विवाह कर नाम सूनी रख दिया। सूनी का पारसी में अर्थ होता है सोने से बनी हुई। आरडी टाटा और सुनी से 29 जुलाई 1904 को जेआरडी टाटा का जन्म हुआ।
पिता रतनजी दादाभाई टाटा यानी आरडी टाटा को फ्रेंच भाषा सीखने का शौक था। फ्रेंच पढ़ाने वाले अध्यापक के घर में ही उनकी भेंट एक फ्रेंच युवती सुजाने से हुई। यह 20 वर्ष की छरहरे बदन की लंबी, सुनहरे बालों व नीली आंखों वाली थी। आरडी टाटा ने विवाह कर नाम सूनी रख दिया। सूनी का पारसी में अर्थ होता है सोने से बनी हुई। आरडी टाटा और सुनी से 29 जुलाई 1904 को जेआरडी टाटा का जन्म हुआ।
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उनकी मां फ्रांस की थी। इसलिए उनका ज्यादातर बचपन फ्रांस में ही बीता। उनकी मां कार चलाने वाली पहली भारतीय महिला थीं। फ्रांस के बाद मुंबई आकर उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई की। कैथेडरल और जॉन कोनोन स्कूल मुंबई से पढ़ाई के बाद उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
उनकी मां फ्रांस की थी। इसलिए उनका ज्यादातर बचपन फ्रांस में ही बीता। उनकी मां कार चलाने वाली पहली भारतीय महिला थीं। फ्रांस के बाद मुंबई आकर उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई की। कैथेडरल और जॉन कोनोन स्कूल मुंबई से पढ़ाई के बाद उन्होंने कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
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जेआरडी टाटा 1929 में पायलट का लाइसेंस हासिल करने वाले पहले भारतीय बने। वो सेना में काम करने चाहते थे। पिता की मौत के बाद उन्हें बिजनेस संभालना पड़ा। जेआरडी टाटा ने ही भारत में सबसे पहले कमर्शियल विमान सेवा टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की। इसी वजह से ही उन्हें देश की 'विमान सेवा का पिता' भी कहा जाता है।
जेआरडी टाटा 1929 में पायलट का लाइसेंस हासिल करने वाले पहले भारतीय बने। वो सेना में काम करने चाहते थे। पिता की मौत के बाद उन्हें बिजनेस संभालना पड़ा। जेआरडी टाटा ने ही भारत में सबसे पहले कमर्शियल विमान सेवा टाटा एयरलाइंस की शुरुआत की। इसी वजह से ही उन्हें देश की 'विमान सेवा का पिता' भी कहा जाता है।
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जेआरडी जमशेदपुर में इस्पात कारखाने के विभिन्न विभागों के काम का प्रशिक्षण ले रहे थे। उन्हीं दिनों उनके पिता रतनजी दादाभाई टाटा यानी आरडी टाटा की फ्रांस में मृत्यु हो गई। जेआरडी अंतिम समय में वहां नहीं पहुंच सके थे।
जेआरडी जमशेदपुर में इस्पात कारखाने के विभिन्न विभागों के काम का प्रशिक्षण ले रहे थे। उन्हीं दिनों उनके पिता रतनजी दादाभाई टाटा यानी आरडी टाटा की फ्रांस में मृत्यु हो गई। जेआरडी अंतिम समय में वहां नहीं पहुंच सके थे।
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पिता के देहांंत के समय कंपनी पर काफी कर्ज था। उन पर चार भाई बहनों की देखभाल का आर्थिक बोझ भी आ पड़ा। जेआर डी ने यह स्वीकार किया कि मुझे जोखिम उठाना पसंद है। उन्होंने स्थिति को देखते हुए कंपनी से केवल 750 रुपये प्रतिमाह वेतन लेना स्वीकार किया, जबकि उनके पिता तीन लाख रुपये प्रतिवर्ष कंपनी से लेते थे। उनके लिए तीन हजार प्रति माह वेतन तय कर गए थे, परन्तु उन्होंने कर्जे को देखकर ऐसा नहीं किया।
पिता के देहांंत के समय कंपनी पर काफी कर्ज था। उन पर चार भाई बहनों की देखभाल का आर्थिक बोझ भी आ पड़ा। जेआर डी ने यह स्वीकार किया कि मुझे जोखिम उठाना पसंद है। उन्होंने स्थिति को देखते हुए कंपनी से केवल 750 रुपये प्रतिमाह वेतन लेना स्वीकार किया, जबकि उनके पिता तीन लाख रुपये प्रतिवर्ष कंपनी से लेते थे। उनके लिए तीन हजार प्रति माह वेतन तय कर गए थे, परन्तु उन्होंने कर्जे को देखकर ऐसा नहीं किया।
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टाटा ने उद्यमिता के साथ अपने कर्मचारियों और उनके परिवारों के कल्याण के लिए कई काम किए। टाटा ने ही सबसे पहले 8 घंटे की ड्यूटी तय की। उन्होंने अपने कर्मचारियों के लिए फ्री मेडिकल सुविधा और भविष्य निधि योजना की भी शुरुआत की। किसी कर्मचारी के साथ दुर्घटना हो जाने की स्थिति में टाटा ने सबसे पहले मुआवजा देने की पहल की।
टाटा ने उद्यमिता के साथ अपने कर्मचारियों और उनके परिवारों के कल्याण के लिए कई काम किए। टाटा ने ही सबसे पहले 8 घंटे की ड्यूटी तय की। उन्होंने अपने कर्मचारियों के लिए फ्री मेडिकल सुविधा और भविष्य निधि योजना की भी शुरुआत की। किसी कर्मचारी के साथ दुर्घटना हो जाने की स्थिति में टाटा ने सबसे पहले मुआवजा देने की पहल की।
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जेआरडी का एक किस्सा बड़ा मशहूर है। जब मशहूर फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार और जेआरडी टाटा एक ही प्लेन में सफर कर रहे थे। दिलीप कुमार ने जेआरडी टाटा को पहचान लिया, लेकिन टाटा अपने ही काम में मगन थे। दिलीप कुमार ने उनसे बातचीत की शुरुआत करनी चाही। आखिरकार वो एक स्टार थे। लेकिन टाटा ने उनकी तरफ आंख उठाकर देखा भी नहीं। दिलीप कुमार से जब नहीं रहा गया तो वो बोल पड़े- हेलो, मैं दिलीप कुमार। टाटा ने उनकी तरफ देखा। अंचभित होकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और मुस्कुराते हुए फिर अपने काम में मगन हो गए। दिलीप कुमार से जब नहीं रहा गया तो उन्होंने दोबारा बोला- मैं दिलीप कुमार हूं। मशहूर फिल्म स्टार। जेआरडी टाटा बोले- सॉरी, मैं आपको पहचान नहीं पाया जनाब। वैसे भी मैं फिल्में नहीं देखता।
जेआरडी का एक किस्सा बड़ा मशहूर है। जब मशहूर फिल्म अभिनेता दिलीप कुमार और जेआरडी टाटा एक ही प्लेन में सफर कर रहे थे। दिलीप कुमार ने जेआरडी टाटा को पहचान लिया, लेकिन टाटा अपने ही काम में मगन थे। दिलीप कुमार ने उनसे बातचीत की शुरुआत करनी चाही। आखिरकार वो एक स्टार थे। लेकिन टाटा ने उनकी तरफ आंख उठाकर देखा भी नहीं। दिलीप कुमार से जब नहीं रहा गया तो वो बोल पड़े- हेलो, मैं दिलीप कुमार। टाटा ने उनकी तरफ देखा। अंचभित होकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और मुस्कुराते हुए फिर अपने काम में मगन हो गए। दिलीप कुमार से जब नहीं रहा गया तो उन्होंने दोबारा बोला- मैं दिलीप कुमार हूं। मशहूर फिल्म स्टार। जेआरडी टाटा बोले- सॉरी, मैं आपको पहचान नहीं पाया जनाब। वैसे भी मैं फिल्में नहीं देखता।
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भारत सरकार ने उन्हें 1955 में पद्म विभूषण और 1992 में भारत रत्न अवार्ड से सम्मानित किया। साथ ही उन्हें अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया जिसमें, 'टोनी जेनस पुरस्कार', 'फेडरेशन ऐरोनॉटिक इंटरनेशनेल', 'एडवर्ड वार्नर पुरस्कार', 'डैनियल गुग्नेइनिम अवार्ड शामिल है'।
भारत सरकार ने उन्हें 1955 में पद्म विभूषण और 1992 में भारत रत्न अवार्ड से सम्मानित किया। साथ ही उन्हें अन्य पुरस्कारों से भी नवाजा गया जिसमें, 'टोनी जेनस पुरस्कार', 'फेडरेशन ऐरोनॉटिक इंटरनेशनेल', 'एडवर्ड वार्नर पुरस्कार', 'डैनियल गुग्नेइनिम अवार्ड शामिल है'।
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29 नवंबर 1993 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में 89 वर्ष की उम्र में भारत रत्‍‌न जेआरडी टाटा का स्वर्गवास हो गया। संयोगवश जन्म और मृत्यु की तारीख 29 ही थी। उनकी मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद उनकी धर्मपत्‍‌नी थेलमा का भी निधन हो गया।
29 नवंबर 1993 को स्विट्जरलैंड के जेनेवा शहर में 89 वर्ष की उम्र में भारत रत्‍‌न जेआरडी टाटा का स्वर्गवास हो गया। संयोगवश जन्म और मृत्यु की तारीख 29 ही थी। उनकी मृत्यु के कुछ ही दिनों बाद उनकी धर्मपत्‍‌नी थेलमा का भी निधन हो गया।
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जेआरडी अपनी सरलता, शिष्टाचार, सौम्यता, साफगोई और उदार व्यवहार के लिए हमेशा याद किए जाएंगे।
जेआरडी अपनी सरलता, शिष्टाचार, सौम्यता, साफगोई और उदार व्यवहार के लिए हमेशा याद किए जाएंगे।