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    पुणे. पीएमपी (PMP) को शहर की लाइफलाइन (Lifeline) कहा जाता है, लेकिन पीएमपी की हालात कई सालों सें सुधर नहीं पा रही है। उल्टा बढ़ती ही जा रही है। हर साल पीएमपी को घाटे से निकालने के लिए पुणे और पिंपरी महानगरपालिका (Pune and Pimpri Municipal Corporation) को सहायता (Help) करनी पड़ती है।

    महानगरपालिका के ऑडिट से जानकारी सामने आ रही है कि पीएमपी के बेड़े में कुल 2 हजार 126 बसें हैं। उसमें से करीब 706 बसें 7 साल से अधिक उम्र की है। ऐसी बसों पर मरम्मत ज्यादा करनी पड़ती है। साथ ही ये बसें सड़कों पर बंद होती है। मनपा का कहना है कि इससे पीएमपी का घाटा बढ़ता जा रहा है। इस वजह से ये बसें अब धीरे-धीरे कम करनी चाहिए। 

    पीएमपी के बेड़े में कुल 2 हजार 126 बसें 

    ज्ञात हो कि पीएमपी द्वारा किराए पर साथ ही खुद की, ऐसे बसों का इस्तेमाल किया जाता है। दोनों मिलकर पीएमपी के पास कुल 2 हजार 126 बसें हैं। उसमें से 1 हजार 383 बसें रोड़ पर दौड़ाई जाती है। यानी कुल 743 बसें वैसे ही पड़ी हुई है। एक तो बसें सड़कों पर नहीं आ रही है। साथ ही जो बसें पीएमपी के बेड़े में हैं, उसमें से करीब 44 प्रतिशत बसें 7 साल से भी पुरानी है। एक बस की उम्र ज्यादा से ज्यादा 7 साल की होती है। ऐसा होने के बावजूद भी पीएमपी प्रशासन के पास लगभग 44 प्रतिशत बसें पुरानी है। ये बसें एक तो सड़कों पर बंद पड़ती है। साथ ही इन पर बार-बार मरम्मत करने की वजह से पीएमपी का निधि भी खर्च हो रही है। नतीजा पीएमपी का घाटा बढ़ता जा रहा है। 

    पुरानी बसें कम करना आवश्यक 

    महानगरपालिका के ऑडिट के अनुसार, पीएमपी द्वारा हाल ही में कुल 1 हजार 383 बसें सड़कों पर दौड़ाई जा रही है। इसमें से 3 साल तक की करीब 630 बसें पीएमपी के पास है। 3 से 5 साल की करीब 09 बसें पीएमपी के पास है। तो 5 से 7 साल की करीब 265 बसें पीएमपी के बेड़े में है। सबसे ज्यादा यानी लगभग 44 प्रतिशत यानी 706 बसें 7 साल से भी पुरानी है। 2018-19 में यह तादाद 624 थी। जो अब यह 82 से बढ़ हो गई हैं, लेकिन फिर भी जितनी कम करनी चाहिए, उतनी नहीं हो रही है। इस वजह से मनपा का कहना है कि पीएमपी द्वारा ऐसी बसों की तादाद कम करनी चाहिए। तब जाकर पीएमपी का घाटा कम होगा।