City President change activities intensified in Congress!

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    पुणे. कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष नाना पटोले (Nana Patole) ने कार्यभार संभालने से कांग्रेस (Congress) में जान आ चुकी है। साथ ही पटोले ने आगामी स्थानीय निकाय चुनाव अकेले लड़ने का निर्धार किया है। इससे महाविकास आघाडी में हलचल तेज हो गई है। चुनाव का लक्ष्य सामने रखकर प्रदेश कांग्रेस से गतिविधियां तेज की जा रही है। इसके चलते सभी महत्वपूर्ण शहरों के शहराध्यक्ष बदलने के लिए भी कांग्रेस द्वारा प्रयास किए जा रहे है। इसलिए तगड़े उम्मीदवारों को जांचा जा रहा है। पुणे (Pune) तो इसमें सबसे आगे है। 

    पुणे शहराध्यक्ष के लिए सबसे पहले आबा बागुल, अरविंद शिंदे, संजय बालगुडे, वीरेंद्र किराड़ साथ ही फिर से रमेश बागवे, ऐसे नाम लिए जा रहे है। कहा जा रहा है कि पद देते समय मराठा समाज व ओबीसी समाज को लेकर राज्य में चल रहे आरक्षण के बारे में सोचकर उम्मीदवार तय किया जाएगा। 

    महानगरपालिका चुनाव ही लक्ष्य 

    ज्ञात हो कि पुणे, मुंबई जैसे महत्वपूर्ण महानगरपालिकाओं के चुनाव आगामी साल होंगे। इसको लेकर सभी पार्टियां अपनी ओर से तैयारी में लगी है। पुणे में हाल ही में एनसीपी ने अपना प्रदेशाध्यक्ष बदल दिया। साथ ही नया दफ्तर भी बना लिया है। साथ ही मनसे ने भी ऐसा किया है। भाजपा द्वारा तो पहले से ही तैयारी की जा रही है। ऐसे में राज्य में महाविकास आघाडी की सरकार है। कहा जा रहा था कि महानगरपालिका चुनाव ये तीनों पार्टियां एक साथ लड़ेगी, लेकिन हाल ही कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बन चुके नाना पटोले ने ऐलान किया है कि आगामी चुनाव कांग्रेस अपने दम पर लड़ेगी। इस तरह के सन्देश कार्यकर्ताओं को दिए गए है। इससे कांग्रेस में जान आ चुकी है क्योंकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को भ्रमित अवस्था को देखकर ऐसा लग रहा था कि कांग्रेस अब उठेगी नहीं। साथ ही राज्य सरकार में भी कांग्रेस की ताकत दिखाई नहीं दे रही थी। प्रदेशाध्यक्ष भी कुछ नहीं कर पा रहे थे। ऐसे में नाना ने कमान संभालकर कार्यकर्ताओं को प्रेरणा देने का काम शुरू किया है। इससे कांग्रेस कार्यकर्त्ता भी खुश हुए है। साथ ही प्रदेश द्वारा मनपा चुनाव सामने रखकर ही सभी रणनीति बनाई जा रही है। 

    पुणे में मुकाबला आसान नहीं 

    आगामी पुणे महानगरपालिका चुनाव में पुणे शहर में वार्ड रचना बदल दी जाएगी। उससे सम्बंधित फैसला राज्य सरकार पहले से ही ले चुकी है। महाविकास आघाडी को किसी भी हाल में पुणे में भाजपा को रोकना था। इसलिए रणनीति बनाई जा रही थी, लेकिन अब कांग्रेस ने अकेले चलने का ऐलान करने से यह मुकाबला आसान नहीं होगा। क्योंकि भाजपा के साथ अब कांग्रेस को एनसीपी साथ ही शिवसेना का सामना करना होगा क्योंकि शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने एकत्र आने का फैसला लिया है। इस तरह के कड़े मुकाबले करने के लिए स्थानीय नेता काफी पावरफुल होने चाहिए। इसकी तलाश में कांग्रेस है। इसके लिए कांग्रेस अब शहराध्यक्ष के नेतृत्व को ज्यादा महत्त्व दे रही है। प्रदेश द्वारा समूचे राज्य के शहराध्यक्ष बदलने के बारे में गतिविधियां तेज की जा रही है। इसके फैसला करने प्रदेश पर वरिष्ठ नेताओं की बैठकों का सिलसिला भी जारी है। 

    आरक्षण के मुद्दे को लेकर तय होगा उम्मीदवार 

    प्रदेश द्वारा तगड़े उम्मीदवारों को जांचा जा रहा है। पुणे तो इसमें सबसे आगे है। पुणे शहराध्यक्ष के लिए सबसे पहले आबा बागुल, अरविंद शिंदे, संजय बालगुडे, वीरेंद्र किराड़ साथ ही फिर से रमेश बागवे, ऐसे नाम लिए जा रहे है। कहा जा रहा है कि पद देते समय मराठा समाज व ओबीसी समाज को लेकर राज्य में चल रहे आरक्षण के बारे में सोचकर उम्मीदवार तय किया जाएगा। फ़िलहाल तो शहराध्यक्ष पद पर रमेश बागवे विराजमान है। लेकिन उनके काम से युवा नेता नाराज है तो वरिष्ठ नेता मानते है कि फिर एक बार बागवे को ही अवसर मिलना चाहिए। लेकिन बागवे पर पार्टी का मराठा व ओबीसी समाज भी नाराज है। क्योंकि कहा जाता है कि वे सभी समाज को एक साथ लेकर नहीं चल रहे है। इधर, आबा बागुल को गुटनेता बनाने से बागुल ने लगातार पार्टी को जोड़ने को लेकर प्रयास किए। साथ ही मनपा में लगातार भाजपा का पुरजोर विरोध करने का काम बागुल कर रहे है। बागुल फ़िलहाल मनपा में गुटनेता है। साथ बागुल ओबीसी समाज होने के कारण उन्हें इस पद के लिए मौका दिया जा सकता है क्योंकि बागुल लगातर 6 बार नगरसेवक बन चुके है। मनपा चुनाव में उनके ज्ञान का फायदा पार्टी को हो सकता है। साथ ही इससे पहले भी बागुल के हाथ से यह पद छूटा था । उसके बाद पार्टी के दो मराठा नेताओं का नाम भी आगे चल रहा है। इसमें अरविंद शिंदे व संजय बालगुडे का समावेश है।

    रेस में कई नाम 

    अरविन्द शिंदे को अभ्यासु नगरसेवक माना जाता है। साथ ही इससे पहले वे गटनेता रहे है। अपने अभ्यास व तकनीक ज्ञान से शिंदे अपने सामनेवाली विरोधी पार्टी को घेरे में लेते है, लेकिन शिंदे जनाधार में थोड़ा पीछे हो जाते है। इसलिए अंदरूनी लोग ही उनका विरोध करते है। पार्टी के वफादार के नाम से संजय बालगुडे को जाना जाता है। साथ ही युवा कांग्रेस से उन्होंने अपनी शुरुआत की थी। तब से ही लोगों में बालगुडे प्रसिद्ध है। लेकिन कई दिनों से वे नजर नहीं आ रहे है। साथ ही दो मराठा नेताओं में से किसे अवसर दिया जाए, यह भी समस्या पार्टी के समक्ष खड़ी है। इसके लिए पार्टी मारवाड़ी समाज के उम्मीदवार का भी विचार कर सकती है। इसमें वीरेंद्र किराड़ का नाम शामिल है। इससे पहले भी अभय छाजेड़ को पद दिया गया था। प्रदेश के वरिष्ठ नेता अब इनमें से किस पर मुहर लगाते है, यह देखना दिलचस्प होगा।