निजी अस्पतालों में जन आरोग्य योजना लागू करने सरकार उदासीन

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  • भाजपा विधायक लक्ष्मण जगताप का आरोप

पिंपरी. निजी अस्पतालों जन आरोग्य योजना लागू करने को लेकर राज्य सरकार पर उदासीन रहने का आरोप लगाते हुए भाजपा के वरिष्ठ विधायक लक्ष्मण जगताप ने एक बयान में कहा है कि महामारी कोरोना के चलते आज स्थिति गंभीर हो गई है क्योंकि सरकार ने कोरोना महामारी के दौरान महात्मा ज्योतिबा फुले जनरोग्य योजना को लागू करने के लिए सभी धर्मादाय और निजी अस्पतालों को बाध्य नहीं किया.

निजी अस्पतालों में उपचार की लागत असम्भव है, इसलिए नागरिक उपचार के लिए सरकारी अस्पतालों में जाते हैं. वहां बड़ी संख्या में रोगियों के कारण, कई को आईसीयू बेड के लिए इंतजार करना पड़ता है.नतीजा समय पर इलाज नहीं मिल रहा है और मरीजों की मौत की संख्या में भारी वृद्धि हो रही है.

निजी अस्पतालों में इलाज के खर्च की जिम्मेदारी उठाने की मांग

विधायक लक्ष्मण जगताप ने सभी धर्मादाय और निजी अस्पतालों में महात्मा ज्योतिबा फुले जनआरोग्य योजना लागू करने में सरकार की लापरवाही पर मुख्यमंत्री से नाराजगी भी जताई है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे को भेजे एक पत्र के जरिये उन्होंने निजी अस्पतालों में कोरोना के रोगियों के इलाज के खर्च के भुगतान की जिम्मेदारी राज्य सरकार को उठाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि पुणे और पिंपरी-चिंचवट दोनों में कोरोना संक्रमण बढ़ गया है. रोगियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. दुर्भाग्य से कोरोना से मरने वालों की संख्या भी अधिक है. ऐसी स्थिति को उत्पन्न होने से रोकने और कोरोना के प्रसार को रोकने के लिए उन्होंने खुद बार-बार पत्र लिखकर महात्मा ज्योतिबा फुले जनआरोग्य योजना को सभी धर्मादाय और निजी अस्पतालों में तुरंत लागू करने की मांग की थी. इसका उद्देश्य निजी अस्पतालों में आम जनता के लिए मुफ्त उपचार और आईसीयू बेड प्रदान करना और सरकारी अस्पतालों पर तनाव को कम करना था.

सरकार ने मेरे पत्रों को की अनदेखी की

जगताप ने कहा कि यह दुखद है कि सरकार ने उनके द्वारा बार-बार भेजे गए पत्रों की अनदेखी की. आम नागरिक निजी अस्पतालों में इलाज नहीं करा सकते. तो इस आम आदमी को कोरोना रोग से संक्रमित होने के बाद सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा है. यह संख्या बहुत बड़ी है. इसके चलते सरकारी अस्पतालों में आईसीयू बेड और वेंटिलेटर की कमी है.वहां इलाज के लिए जाने के बाद आईसीयू बेड के लिए इंतजार करना पड़ता है. बेड की कमी के चलते समय पर इलाज नहीं मिल रहा और श्वसन संबंधी समस्याएं और अन्य बीमारियां बढ़ रही हैं. आईसीयू बेड और वेंटिलेटर की कमी के कारण होने वाली मौतों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है. यह स्थिति दिन पर दिन खराब होती जा रही है. रोगी की लागत पर विचार करना भी उतना ही महत्वपूर्ण था जब सरकार ने निजी अस्पतालों में 80 प्रतिशत कोरोना बेड के आरक्षण का आदेश दिया. क्या यहां का खर्च औसत मरीज के लिए सस्ती है? सरकार ने इसे नजरअंदाज कर दिया है.

निजी अस्पतालों की उपलब्धता से कम होगा तनाव

एक तरफ, सरकार जंबो कोविड केंद्र पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. हालांकि, शहर के सभी निजी अस्पतालों में डॉक्टरों, आईसीयू बेड, वेंटिलेटर, सुविधाओं के संयोजन से बड़ी संख्या में कोरोना रोगियों के लिए आईसीयू बेड उपलब्ध हो जाएगा. सरकार को एक अलग जंबो कोविड केंद्र स्थापित करने की आवश्यकता नहीं होगी. उपचार के लिए निजी अस्पतालों की उपलब्धता सरकारी अस्पतालों पर तनाव को कम करने में मदद करेगी. आईसीयू बेड के साथ कोरोना के रोगियों की मृत्यु दर को नियंत्रित करना भी संभव होगा. यदि महात्मा ज्योतिबा फुले जनरोग्य योजना सभी निजी अस्पतालों में लागू नहीं की जाती है, तो इन अस्पतालों में इलाज करानेवाले कोरोना रोगियों के इलाज के खर्च का वहन सरकार द्वारा किया जाना चाहिए. विधायक जगताप ने मांग की है कि कोरोना के रोगियों का वित्तीय बोझ उठाये जाने पर रोगियों को समय पर उपचार मिल सकेगा और इससे मृत्यु दर को कम करने में भी मदद मिलेगी.