पुणे में कोरोना संक्रमण के बाद इम्यूनिटी का पता लगाने हो रहे टेस्ट

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पुणे. कोरोना के बढ़ते संक्रमण के बीच पुणे स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (आईसीएमआर-एनआईवी) के वैज्ञानिकों ने एक वायरस न्यूट्रलाइजेशन  विकसित किया है. यह एक रक्त परीक्षण है, जो कोविड-19 संक्रमण के बाद शरीर में एंटीबॉडी को बेअसर होने का पता लगाने के लिए किया जाता है.

कुछ एंटीबॉडी एक वायरस को बेअसर कर सकते हैं, लेकिन अन्य केवल प्रतिरक्षा कोशिकाओं को जुटाकर काम करते हैं, जो बीमारी से लड़ते हैं. न्यूट्रालाइजिंग एंटीबॉडी (नैब) छोटे प्रोटीन होते हैं, जो सार्स-कोविड-2 वायरस को होस्ट सेल में घुसने से भी रोकते हैं. परीक्षण में सामान्य एंटीबॉडीज के विपरीत इन विशिष्ट न्यूट्रिलाइजिंग एंटीबॉडीज को देखा जाता है और पता किया जाता है कि वे कितने कार्यात्मक हैं. साथ ही यह पता किया जाता है कि क्या वे सक्रिय रूप से वायरस को निष्क्रिय या अवरुद्ध कर सकते हैं? इस परीक्षण से उन लोगों का पता करने में मदद मिल सकती है, जो सुरक्षित रूप से काम पर लौट सकते हैं और नियमित गतिविधियों को फिर से शुरू कर सकते हैं. इस टेस्ट से यह निर्धारित करने में भी मदद मिल सकती है कि कैसे एक व्यापक रूप से आबादी ने सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा पैदा की है और साथ ही साथ सुरक्षात्मक एंटीबॉडी बनाने में एक वैक्सीन की प्रभावशीलता का आकलन भी हो सकता है.

जैव सुरक्षा सुविधा की होती है जरूरत

हालांकि, नैब को मापने के लिए एक जिंदा वायरस, अत्यधिक कुशल ऑपरेटर्स और लेवल-3 बायोसेफ्टी फैसिलिटी (जैव सुरक्षा सुविधा) की जरूरत होती है. लिहाजा, न सिर्फ परीक्षण महंगा हो जाता है, बल्कि सभी शहर इस तरह के परीक्षण करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे. इसके अलावा, अमेरिकन सोसाइटी ऑफ माइक्रोबायोलॉजी का कहना है कि हमें अभी भी पता नहीं है कि क्या न्यूट्रिलाइजिंग एंटीबॉडीज पूरी तरह से सुरक्षात्मक हैं भी या नहीं. पूर्ण सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा के लिए कितने टिटर (एकाग्रता) की आवश्यकता है और टिटर कब तक बना रहेगा.