मनपा का पहला साइंटिफिक लैंडफिल प्रोजेक्ट

  • कचरा प्रक्रिया प्रकल्पों से निकलनेवाले रिजेक्ट का होगा निपटारा
  • 6 एकड़ जगह पर बना है प्रकल्प

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पुणे. महापालिका कई सालों से कचरे की समस्या से जूझ रही है. प्रक्रिया प्रकल्प पर्याप्त ना होना, उसके लिए जगह ना मिलना, कचरा डम्पिंग के लिए जगह ना होना, इसके चलते होनेवाले ग्रामीणों के आंदोलन, ऐसी कई समस्या से महापालिका त्रस्त है, लेकिन इसमें से एक प्रोजेक्ट की वजह से महापालिका को अब राहत मिल गई है.

कचरे के साथ ही कचरा प्रकल्पों से निकलनेवाले रिजेक्ट को कहां फेंका जाए, इसको लेकर महापालिका को परेशान होना पड़ता था, लेकिन अब महापालिका को इस बारे में परेशानी नहीं होगी क्योंकि महापालिका प्रशासन ने शहर में पहली बार साइंटिफिक लैंडफिल प्रोजेक्ट (scientific landfill project) बनाया है. जो 6 एकड़ (6 acres) जगह पर है. जिसके लिए महापालिका को 9 करोड़ (9 crores) की लागत आई है. 2-3 लाख मैट्रिक टन (2-3 lakh metric tons) की इसकी क्षमता है. इससे महापालिका की रिजेक्ट की समस्या का निपटारा होगा. साथ  ही ग्रामीणों के आंदोलन भी नहीं होंगे. 

प्रति दिन 2100-2200 मैट्रिक टन कचरा जमा होता है 

फुरसुंगी साथ ही उरुली देवाची के स्थानीय ग्रामीणों ने  मिश्रित कचरे की प्रक्रिया का विरोध किया था. साथ ही अन्य परियोजनाओं में कचरे का डंपिंग  करने का भी विरोध ग्रामीणों द्वारा किया गया था. हडपसर में रोकेम प्रसंस्करण संयंत्र में आग लगने और शहर के नवनिर्मित प्रसंस्करण संयंत्र का विरोध करने वाले आंबेगाव में प्रदर्शनकारियों द्वारा शहर की कचरे की समस्या को बढ़ा दिया गया था. अक्टूबर में ऐन बारिश के दौरान, कचरा ने शहर के नालों और बारिश के गटर को अवरुद्ध कर दिया, जिससे सड़कें धाराओं में बदल गईं थी. उससे बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य समस्या भी थी. ज्ञात हो शहर में 2100-2200 मैट्रिक टन कचरा जमा हो जाता है. इसमें से 1100-1200 टन कचरे पर मनपा के विभिन्न कचरा प्रक्रिया प्रकल्पों में प्रक्रिया की जाती है. 400-500 कचरा किसानों को दिया जाता है. लगभग 400 टन कचरे पर प्रक्रिया नहीं हो पा रही है. इस पर हल निकलने के लिए हम अब मोबाइल प्लांट का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके अनुसार, हडपसर में दिशा परियोजना के परिसर में नई मशीनरी स्थापित करने की प्रक्रिया पूरी हो गई है. इसके लिए मनपा को ज्यादा खर्चा नहीं आएगा. ऐसे कुल तीन जगहों पर प्रायोगिक तौर पर प्रकल्प बनाए जाएंगे. नतीजे अच्छे आने के बाद सम्बंधित कम्पनियो को इसका काम दिया जाएगा. प्लांट में कचरे पर प्रक्रिया कर उससे आरडीएफ तैयार किया जाएगा. इसके माध्यम से शहर की कचरे की समस्या हल की जाएगी. कचरा प्रक्रिया प्रकल्प बनाने का काम जारी है. इससे शहर में कचरा शेष नहीं बच रहा है. साथ ही लैंडफिल प्रोजेक्ट से रिजेक्ट की समस्या भी ख़त्म होती जा रही है. 

महाराष्ट्र प्रदुषण नियंत्रण मंडल की ली है मंजूरी 

लैंडफिल प्रोजेक्ट के बारे में अतिरिक्त आयुक्त ड़ॉ कुणाल खेमनार ने कहा कि देवाची उरुली इलाके में यह प्रकल्प बनाया गया है. लगभग 6-7 माह में हमने इस प्रकल्प का काम पूरा किया है. इसके लिए महापालिका को 9 करोड़ की लागत आई है. 25 नवंबर 2020 से इस प्रकल्प की शुरुआत भी की है. ड़ॉ खेमनार के अनुसार, महाराष्ट्र प्रदुषण नियंत्रण मंडल की इस प्रकल्प के लिए मंजूरी ली गई है. इससे पहले महापालिका का साइंटिफिक लैंडफिल प्रोजेक्ट नहीं था. हंजर प्रकल्प में जो था, वह साइंटिफिक नहीं था. साथ ही वह बंद भी हुआ था. इस वजह से पहले भुभराव प्रकल्प को नष्ट कर अब साइंटिफिक प्रोजेक्ट बनाया है. डॉ खेमनार ने आगे कहा कि यह करते समय जमीन के नीचे खुदाई की गई है. बाद में चारों साइड को 4-4.5 मीटर के मिट्टी की दीवारे बनाई गई. उसके बाद सबसे ऊपरी स्तर GCL यानी जिओ क्ले लाइनर का बनाया गया. उस पर HDPE का स्तर बनाया गया इसके उपर जिओ टेक्सटाईल का स्तर बिछाया गया  उस पर छोटे पत्थर को फिल्टर मीडिया लिचेट के तौर पर बिछाया गया है. उस पर एच.डी. पी.ई  के पाइप लगाए है. उस पर जीओ टेक्सटाइल का स्तर हैं. इसमें रिजेक्ट फेंका जा रहा है.

दवा का छिड़काव भी उस पर किया जा रहा

साथ ही इसकी दुर्गंध न आए इसके लिए दवा का छिड़काव भी उस पर किया जा रहा है. ड़ॉ खेमनार ने कहा कि जमीन के निचले स्तर में 1 से डेढ़ लाख मैट्रीक टन और ऊपरी स्तर पर 1 लाख से डेढ़ लाख मैट्रिक टन रिजेक्ट की इसकी क्षमता है. आगामी 3 साल तक महापालिका को रिजेक्ट फेकने में कोई परेशानी नहीं होगी. कचरा प्रक्रिया प्रकल्पों से प्रति दिन 350 से 400 मैट्रिक टन रिजेक्ट जमा होता है. तो पहले का 20 हजार मैट्रिक टन रिजेक्ट शेष रहा है. इसके अनुसार, लैंडफिल प्रोजेक्ट में प्रतिदिन 400 मैट्रीक टन रिजेक्ट नष्ट किया जा रहा है. इससे अब देवाची उरुली, फुरसुंगी डेपो ने लिचेट की समस्या खत्म होगी. इस प्रकल्प से महापालिका की सिरदर्द काफी कम हुआ है.

कचरे के साथ ही कचरा प्रकल्पों से निकलनेवाले रिजेक्ट को कहां फेंका जाए, इसको लेकर महापालिका को परेशान होना पड़ता था, लेकिन अब महापालिका को इस बारे में परेशानी नहीं होगी. क्योंकि महापालिका प्रशासन ने शहर में पहली बार साइंटिफिक लैंडफिल प्रोजेक्ट बनाया है. जो 6 एकड़ जगह पर है. जिसके लिए महापालिका को 9 करोड़ की लागत आई है. 2-3 लाख मैट्रिक टन की इसकी क्षमता है. इससे महापालिका की रिजेक्ट की समस्या का निपटारा होगा.

-डॉ कुणाल खेमनार, अतिरिक्त आयुक्त, महापालिका