निजी अस्पतालों पर मेस्मा

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– कोरोना मरीजों की सेवा से इनकार करने पर होगी कार्रवाई

पुणे. कोरोना के प्रकोप के बीच पुणे में निजी अस्पतालों के लिए एक बड़ा फैसला किया गया है. पुणे के इतिहास में पहली बार निजी अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों के लिए ‘मेस्मा’ (महाराष्ट्र आवश्यक सेवा रख रखाव अधिनियम 2006) अधिनियम लागू किया गया है.

जिसके बाद अब कोरोना मरीज का इलाज नहीं करने और चिकित्सा सेवाओं में शामिल नहीं होने पर प्रशासन उन डॉक्टरों पर कार्रवाई कर सकती है.

ससून और नायडू अस्पताल पर बढ़ रहा बोझ

पुणे शहर में कोरोना का प्रकोप जारी है. चिकित्सा शिक्षा और अनुसंधान विभाग के ससून, स्वास्थ्य विभाग के औंध, महानगरपालिका के डॉ. नायडू अस्पताल सहित अन्य अस्पताल कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों का इलाज कर रहे हैं. हालांकि जैसे-जैसे मरीजों की संख्या बढ़ रही है, इस अस्पताल पर तनाव बढ़ रहा है. कोरोना मरीजों की संख्या को देखते हुए प्रशासन ने पुणे के 701 अस्पतालों में 80 प्रतिशत बेड आरक्षित करने का निर्णय लिया है. इसमें 30 से 500 बेड की क्षमता वाला अस्पताल शामिल है. इस अस्पताल में कोरोना रोगियों के लिए निजी डॉक्टरों और नर्सों द्वारा चिकित्सा सेवाएं अब अनिवार्य हैं.

पुणे में पहली बार निजी अस्पतालों के लिए लागू

पहली बार ‘मेस्मा’ अधिनियम जो अब तक केवल सरकारी डॉक्टरों और नर्सों के लिए उपयोग किया जाता था. वह अब निजी डॉक्टरों के लिए भी लागू किया गया है. मनपा आयुक्त शेखर गायकवाड़ द्वारा जारी परिपत्र के दूसरे अंक में यह स्पष्ट किया गया है. गायकवाड़ ने आदेश में कहा है कि अस्पताल में काम करने वाले डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी आवश्यक सेवाओं के लिए काम करेंगे. जो भी डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारी कोविड -19 रोगियों को आपातकालीन सेवाओं में इलाज करने से मना कर देंगे. इसके अलावा काम पर मौजूद नहीं होगा. उन सभी पर ‘मेस्मा’ अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी. आगे उन्होंने कहा कि ‘मेस्मा’ अधिनियम के तहत डॉक्टर और नर्स अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते.