पिंपरी चिंचवड़ में बंद का मिलाजुला असर

  • पंजाब से आए किसानों का समर्थन

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पिंपरी. केंद्र सरकार द्वारा किसानों और मजदूरों संबंधी कानूनों में बदलाव लाने वाले विधेयक पारित किए हैं। इसके विरोध में हरियाणा और पंजाब के किसान लाखों की तादात में दिल्ली के सिंधु बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे हैं। उनके आंदोलन को समर्थन देने के लिहाज से मंगलवार को भारत बंद (Bharat Bandh) का ऐलान किया गया। पिंपरी चिंचवड (Pimpri Chinchwad)  शहर में इस बंद का मिला-जुला असर रहा। शहर के पिंपरी स्थित डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक चौक में विभिन्न राजनीतिक दलों, सामाजिक, मजदूर संगठनों ने भारत बंद को अपना समर्थन दिया है।

सर्वदलीय अन्नत्याग आंदोलन

इस कड़ी में पिंपरी चौक में एक दिन का अन्नत्याग आंदोलन किया गया। इस आंदोलन को पंजाब से पिंपरी चिंचवड़ शहर में आये किसानों के एक गुट ने समर्थन दिया। केंद्र सरकार ने किसानों और मजदूरों के हितों के विरोध में कानून लाकर उनकी पीठ में खंजर घोंपा है, ऐसा सुर इस आंदोलन में सुनाई दिया। जय जवान, जय किसान, जय मजदूर के नारों के साथ केंद्र सरकार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नारेबाजी से पूरा इलाका गूंज उठा। इस आंदोलन में राष्ट्रवादी कांग्रेस, कांग्रेस, शिवसेना, समाजवादी पार्टी समेत विभिन्न राजनीतिक दलों और विभिन्न मजदूर, सामाजिक संस्था संगठनों के नेता व कार्यकर्ता बड़ी संख्या में शामिल हुए।

पुलिस रही मुस्तैद

भारत बंद और आंदोलन की पृष्ठभूमि पर पिंपरी चिंचवड़ पुलिस (Pimpri Chinchwad Police) ने पूरे शहर भर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था मुस्तैद रखी थी। सभी राजनीतिक दलों और संगठनों के नेता पिंपरी के डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर स्मारक चौक में इकट्ठा होने वाले हैं, इसकी जानकारी मिलने से सुबह से ही चौक में पुलिस का कड़ा पहरा था। एहतियात के तौर पर पिंपरी से नेहरूनगर की ओर जाने और आनेवाली ट्रैफिक को डाइवर्ट किया गया था।

कोई अनुचित घटना न हो, इसके लिए पिंपरी चौक में एसआरपीएफ के दो दस्ते, आरसीपी का एक दस्ता, 150 पुलिस, ट्रैफिक विभाग के तीन पुलिस अधिकारी, 28 कर्मचारी और 26 वॉर्डन की यहां तैनाती की गई थी। खुद पुलिस उपायुक्त मंचक इप्पर, सहायक आयुक्त डॉ. सागर कवडे, पिंपरी थाने के वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक मिलिंद वाघमारे, पुलिस निरीक्षक (क्राइम) राजेंद्र निकालजे, ट्रैफिक विभाग के पुलिस निरीक्षक राजेंद्र कुंटे मौके पर डटे रहे।

हम शांति चाहते हैं

पंजाब के किसानों के गुट में शामिल सुखदेव सिंह ने कहा कि हम जो संघर्ष कर रहे हैं, हम शांति से करना चाहते हैं। यह किसी को खतरे में डालना या चोट पहुंचाना नहीं चाहता है। हां मगर हम किसी के सामने झुकना भी नहीं चाहते। सामाजिक कार्यकर्ता मारुति भापकर ने कहा, किसान देश की रीढ़ हैं। केंद्र सरकार ने ऐसे कानून बनाए हैं जो पूंजीपतियों को किसान और मजदूर वर्ग को गुलाम बनाएंगे। मोदी ने लोकसभा चुनाव के दौरान 400 से अधिक रैलियों में किसानों और श्रमिकों के लिए बेहतर कानून बनाने का वादा किया। मगर उन्होंने किसानों और कामगारों के साथ धोखा किया है। सरकार ने मजदूर और किसान विरोधी रुख अपनाया है। मजदूर और किसान अब जागे गए हैं और दोनों एक साथ अन्याय से लड़ रहे हैं। वही किसान और मजदूर जो सरकार को सिंहासन पर बिठाते हैं, वही सरकार गिराएंगे।

सरकार की मंशा पर संदेह

पूर्व विधायक गौतम चाबूकसवार ने कहा सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा है कि कृषि उपज मंडी समिति में खामियों को दूर करके कृषि जिंसों की कीमतें कम नहीं होंगी। सरकार की मंशा को लेकर संदेह जताया गया है और किसान गुस्से में हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस के शहराध्यक्ष संजोग वाघेरे ने कहा, नया कानून देश के कृषि क्षेत्र के लिए कम ब्याज ऋण और फसल बीमा की गारंटी नहीं देता है। शिवसेना नेता सुलभा उबाले ने कहा, सरकार ईमानदार है, किसानों के लिए सब कुछ कर रही है, तो प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए राजमार्ग पर गड्ढे क्यों खोदें? पानी के फव्वारे और डंडों को चार्ज करके आंदोलन को कुचलने की साजिश क्यों? सरकार किसानों को देशद्रोही क्यों कह रही है? सामाजिक कार्यकर्ता मानव कांबले ने कहा, केंद्र सरकार के मजदूर विरोधी, किसान विरोधी कॉर्पोरेट कानून से भारी असंतोष है। सरकार को इन कानूनों को निरस्त करना होगा।

स्वामीनाथन आयोग की 7 सिफारिशें क्यों शामिल नहीं की?

मजदूर नेता कैलास कदम ने कहा, कृषि उपज को बेचने और खरीदने के सभी अधिकार किसानों से छीन लिए गए। गणेश दराडे ने कहा, अगर किसानों के लिए इतनी ही दया थी तो आधे-अधूरे गारंटी और स्वामीनाथन आयोग की सात प्रमुख सिफारिशें नए कानून में शामिल क्यों नहीं की? कृषि बिल उन कंपनियों के हित में पारित किए गए हैं जिनके साथ किसान समझौते करना चाहते हैं। अनिल रोहम ने कहा, महामारी के दौरान श्रम कानूनों में बदलाव हुए, नए कृषि कानून पेश किए गए। न श्रमिकों को न्यूनतम वेतन 21 हजार रुपये मिल रहा न सरकार किसानों को सब्सिडी और बाजार मूल्य की गारंटी नहीं दे रही।

पुणे शहर में कुछ दुकानें रही बंद, विभिन्न संगठनों का समर्थन

केंद्र सरकार के तीन कृषि सुधार बिलों के खिलाफ बुलाए गए बंद को पुणे शहर और उपनगरों में मिली-जुली प्रतिक्रिया मिली। सुबह में कुछ दुकानें बंद थीं और कुछ आवश्यक सेवाएं खुली थीं। भारत बंद के मद्देनजर किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए पुलिस की एक बड़ी टुकड़ी तैनात की गई थी।

नए कृषि कानून के विरोध में किसान यूनियनों ने मंगलवार देशव्यापी बंद का आह्वान किया था। राजधानी दिल्ली में पिछले 13 दिनों से आंदोलनरत किसानों और सरकार के बीच हुई पांच बैठकों के बाद भी कोई हल नहीं निकला है। बंद को देशभर में कांग्रेस, शिवसेना, एनसीपी और कई अन्य विपक्षी दलों, कार्यकर्ताओं और किसान संगठनों ने समर्थन दिया है। भारत बंद में भाग न लेने का फैसला करने के बाद भी, पुणे व्यापार संघों ने अपनी पिछली भूमिका को बदलने और भारत में किसानों के बंद में भाग लेने का फैसला किया है। इसलिए, पुणे में लक्ष्मी रोड, केलकर रोड, तिलक रोड, शास्त्री रोड, बाजीराव रोड, शिवाजी रोड और अन्य बाजार शाम 4 बजे तक बंद रहे। ट्रेड यूनियनों ने बंद के लिए समर्थन व्यक्त किया. हालांकि, इससे पहले उन्होंने कहा था कि वह भारत बंद में हिस्सा नहीं लेंगे। लेकिन ट्रेड यूनियनों ने दोपहर तक हड़ताल में शामिल होने का फैसला किया, क्योंकि बंद के समर्थन में मार्च पुणे के मुख्य बाजार से होकर गुजरेगा।

होटल, मेडिकल स्टोर और अन्य किराना स्टोर दोपहर में खुले थे। लेकिन ग्राहकों की संख्या कम थी।  कुल मिलाकर, PMPML बस सेवा, ओला-उबर चार पहिया और रिक्शा सेवाएं शहर और उपनगरों में चल रही थीं। परिणामस्वरूप, जीवन सुचारू रूप से चला। उपनगरों सहित अन्य सड़कों पर कम संख्या में चलने वाली गाड़िया की तस्वीर थी।