आदिवासियों ने सिखाया समर्पण और निरपेक्ष भाव की सेवा

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पुणे. हमने आदिवासियों से बहुत कुछ सीखा है, जैसे एक दूसरे की मदद करना, संयम और उनकी जरूरतों को कम करना. आदिवासियों द्वारा दिए गए प्यार की वजह से ही आज इतना बड़ा काम हुआ है. उन्होंने ही हमें समर्पण और निरपेक्ष सेवा सिखाई है.ऐसे विचार लोक बिरादरी परियोजना के संस्थापक, सामजिक कार्यकर्ता डॉ. प्रकाश आमटे ने व्यक्त किए.

एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनविर्सिटी, विश्व शांति केंद्र (आलंदी), माईर्स एमआइटी, पुणे और दार्शनिक ज्ञानेश्वर-संतश्री तुकाराम महाराज स्मृति व्याख्यान श्रृंखला न्यास के संयुक्त तत्वावधान में यूनेस्को अध्यासन द्वारा रजत जयंती दार्शनिक संतश्री ज्ञानेश्वर-संतश्री तुकाराम महाराज स्मृति व्याख्यान श्रृंखला के ऑनलाईन पांचवे सत्र में वे बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे.

आदिवासियों के मन में विश्वास की लौ जलाई  

डॉ. प्रकाश आमटे ने कहा कि 22 साल की उम्र में आदिवासियों के लिए काम करने की इच्छा व्यक्त करने के बाद, उन्हें बाबा की आंखों में एक अलग चमक दिखाई दी. उसी ऊर्जा के साथ  पत्नी मंदा के साथ वे हेमलकसा गए और जीवन के एक नए युग की शुरूआत की. यहां पर 7 से 8 महीने तक आदिवासियों से उनका कोई संपर्क नहीं था, लेकिन धैर्य के साथ कई काम पूरे होते गए. कई समस्याओं का सामना करते हुए वे यहां बने रहे.  आदिवासियों के मन में विश्वास की लौ उन्होंने प्रज्वलित की. फिर उन्हें शिक्षित करने, उन्हें उनके अधिकारों के बारे में जागरूक करने और खेती करने के लिए सिखाया. साथ ही जानवरों को बचाने का ज्ञान भी दिया. यहां स्कूल शुरू किए. नतीजन 15 बच्चे डॉक्टर बने, कुछ वकील बन गए और कुछ बच्चे आईआईटी में पढे़. सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि इनमें से 80 प्रतिशत बच्चे सामाजिक कार्य करने के लिए गढ़चिरौली लौट आए.

हमारे सरल जीवन ने लोगों को प्रभावित किया

समर्पण के साथ काम करना सबसे महत्वपूर्ण है. सादगी हमारी ताकत है और हम अब भी निरपेक्ष भावना के साथ सेवा कर रहे हैं. यही विरासत सभी लड़कों और लड़कियों ने ली है. हम पर बनी फिल्म के कारण हमारे सरल जीवन ने लोगों को प्रभावित किया है. इसलिए सार्वजनिक कार्यक्रमों के निमंत्रणों की सख्या में वृद्धि हुई है. जिसमें छात्रों की संख्या अधिक थी. इसलिए युवकों ने अपने अपने क्षेत्र में सामाजिक कार्य शुरू किया. आमटे ने कहा कि उन्हें गर्व है कि इस फिल्म ने युवाओं को प्रेरित किया.

शिक्षकों को प्रशिक्षण की जरूरत

आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर डॉ. दीपक पाठक ने कहा कि कई शिक्षक आज छात्रों को तकनीक सिखाते हैं, लेकिन उन्हें तकनीकी शिक्षा की जानकारी नहीं है. उनके लिए एमटेक या डॉक्टरेट की डिग्री पर्याप्त मानी जाती है, लेकिन जो विषय वे पढाते हैं वह छात्रों को ठीक से नहीं पठाया जाता है. इसके लिए उन्हें सिखाने के तरीके पर प्रशिक्षित होने की आवश्यकता है. मूल्यवर्धित शिक्षा भी आवश्यक है. केवल मां-बाप द्वारा दिए गए संस्कार ही पूर्ण नहीं होते. ऐसे समय शिक्षकों से मिलनेवाली प्रेरणा छात्रों के जीवन में बदलावा लाती है. कुछ छात्र प्रतिकूल परिस्थितियों से बाहर निकलते हैं. उनके मन में महत्वाकांक्षाएं होती हैं. वे कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार रहते हैं. ऐसे बच्चों को कैसे शिक्षित कर सकते हैं. इस पर शिक्षकों द्वारा सलाह और मार्गदर्शन देने पर छात्र बड़ी छलांग लगा सकते हैं. इंडियन कार्डियोलॉजी सोसाइटी, पुणे के अध्यय डॉ.जगदीश हिरेमठ ने कहा कि मन और शरीर के बीच संबंधो के बारे में अधिक विचार करने की आवश्यकता है. रिश्तों का मूल परिवार के संगठन में हैं, यह दुनिया का सबसे पुराना संस्थान है और यह जितना मजबूत है उतना ही खुशहाल समाज होता है. इसमें धर्म की नींव भी है. 

…तो अकेले ही चलने की भूमिका को निभानी पड़ती है 

एक विचारक समाज के लिए एक विचारधारा प्रस्तुत करता है, लेकिन जब उसे समाज द्वारा स्वीकार नहीं किया जात है, तो उसे अकेले ही चलने की भूमिका को निभानी पड़ती है. कुछ समय के बाद उनके विचारों को समाज द्वारा स्वीकार किया जाता है. इस अवसर पर समाजसेवी डॉ. मंदाताई आमटे, वक्ता डॉ. संजय उपाध्ये और शिल्पा तांबे विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे. कार्यक्रम की अध्यक्षता एमआईटी वर्ल्ड पीस यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष और यूनेस्को अध्ययन के प्रमुख डॉ. विश्वनाथ दा. कराड ने निभाई.