Dr. Ratan Lal: It is also necessary to return as much as I took from Mother Earth

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नयी दिल्ली. चार महाद्वीपों में पांच दशक के अपने करियर के दौरान 50 करोड़ से ज्यादा छोटे किसानों के जीवन को बेहतर बनाने वाले भारतीय मूल के अमेरिकी मृदा वैज्ञानिक डा. रतन लाल का मानना है कि देश में एक ठोस मृदा नीति बनाए जाने की बेहद सख्त जरूरत है। उनका कहना है कि सबकी भूख मिटाने वाली धरती की सेहत को बनाए रखने के लिए भारत के कुछ राज्यों में पराली जलाने पर तत्काल रोक लगाने सहित अन्य उपाय किए जाने चाहिएं। डा. रतन लाल को वर्ष 2020 के ‘वर्ल्ड फूड प्राइज’ के लिए चुना गया है। इसे कृषि के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार के बराबर माना जाता है। वैश्विक स्तर पर खाद्य गुणवत्ता और मृदा संरक्षण को बढ़ावा देने वाले इस पुरस्कार की स्थापना 1986 में की गई थी और पहला पुरस्कार भी एक भारतीय कृषि वैज्ञानिक को दिया गया था।

डा. लाल ने पीटीआई भाषा को बताया कि उनके लिए यह पुरस्कार बेहद खास है क्योंकि 1987 में भारतीय कृषि वैज्ञानिक डा. एम एस स्वामीनाथन को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार सबसे पहले प्रदान किया गया था जो भारत की हरित क्रांति के जनक माने जाते हैं। 76 वर्षीय डा. रतन लाल का जन्म 5 सितंबर 1944 को ब्रिटिश भारत के पश्चिमी पंजाब के करयाल इलाके :अब पाकिस्तान: में हुआ। 1947 में बंटवारे के समय उनका परिवार भारत चला आया और हरियाणा के राजौंद में शरणार्थियों के रूप में रहने लगा। उनके पिता ने राजौंद में कुछ एकड़ भूमि की व्यवस्था की और पारंपरिक तरीकों से खेती करने लगे। इसी दौरान लाल का परिचय जमीन और खेती किसानी से हुआ। लाल ने स्थानीय स्कूलों में शुरूआती तालीम के बाद पंजाब कृषि विश्वविद्यालय से स्नातक और फिर दिल्ली के भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से एमससी किया । आगे की पढ़ाई के लिए वह विदेश चले गए और ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी से डाक्टरेट की उपाधि ली।

कृषि वैज्ञानिक के तौर पर अपनी उपलब्धियों से भरे करियर में उन्होंने आस्ट्रेलिया और नाइजीरिया में काम करने के साथ ही एशिया, अफ्रीका और लातिन अमेरिका में मृदा संरक्षण अभियानों का नेतृत्व किया। ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी में कॉलेज ऑफ फूड, एग्रीकल्चर और एनवायरमेंटल साइंसेस में प्रोफेसर डा. लाल ने कहा, ‘‘ एक मृदा वैज्ञानिक को पुरस्कृत किया जाना धरती की सेहत को बनाए रखने के महत्व को रेखांकित करता है। हमें धरती माता पर और अधिक ध्यान देना होगा। हमारे शास्त्र और पुराण भी यही कहते हैं कि हम धरती माता का सम्मान करें। भारत में मृदा की उर्वरा क्षमता को चीन और अमेरिका से कहीं कम बताते हुए डा. लाल कहते हैं कि बहुत सख्त मौसम, कुछ राज्यों में पराली जलाने का चलन, ईंट भट्ठों का बढ़ना और रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल इसके मुख्य कारण हैं।

ऐसे में यह जरूरी है कि देश में एक मृदा संरक्षण नीति हो और मृदा की गुणवत्ता बनाए रखने में विशेष योगदान देने वाले किसानों को पुरस्कृत किया जाना चाहिए। पुरस्कार के तौर पर मिलने वाली ढाई लाख डॉलर की रकम भविष्य के मृदा शोध और शिक्षा के लिए दान करने का ऐलान करने वाले डा. लाल कहते हैं धरती से सब कुछ छीन लेना अच्छा नहीं। लौटाना भी जरूरी है और यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। आप धरती से जो कुछ भी लें, उसे वापस भी लौटाएं। पिछले पांच दशक में डा. लाल ने मृदा संरक्षण और प्रबंधन की दिशा में अपने शोध कार्य से दुनियाभर के 50 करोड़ से ज्यादा छोटे किसानों का जीवन बदल दिया है। छोटे किसानों की इस सेवा को अपने लिए सबसे बड़ा सम्मान बताने वाले डा. लाल कहते हैं कि किसान ही धरती के सबसे बड़े खिदमतगार हैं, जो दुनिया का पेट भरने का कठिन दायित्व निभाते हैं।