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नयी दिल्ली.  गणित से आम तौर पर लोगों का 36 का आंकड़ा रहता है और लोग जमा घटा से बात आगे बढ़ते ही ‘9-2-11′ हो जाते हैं। ऐसे में यदि किसी मध्यम वर्गीय परिवार का लड़का अंकों के खेल में महारत हासिल कर 20 वर्ष की आयु में चार विश्व रिकॉर्ड और 50 लिम्का रिकॉर्ड अपने नाम कर ले तो इसे उसकी कड़ी मेहनत का फल और ईश्वर की देन ही कहा जा सकता है। यह कहानी है नीलकंठ भानु प्रकाश की जिन्होंने हाल ही में लंदन में आयोजित ‘माइंड स्पोर्ट्स’ ओलंपियाड में मानसिक गणना विश्व चैम्पियनशिप में विजय हासिल कर दुनिया में गणित के नक्शे पर एक नए सूरज का प्रकाश फैला दिया है। उन्हें सबसे तेज मानव कैलकुलेटर का दर्जा दिया गया है और वह गणित की बड़ी से बड़ी गणनाएं पलक झपकते ही कर डालते हैं। अपनी इस अद्भुत क्षमता के दम पर वह अब तक चार विश्व खिताब और 50 से ज्यादा लिम्का रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं।

तेरह अक्टूबर 1999 को जन्मे नीलकंठ भानु प्रकाश हैदराबाद से ताल्लुक रखते हैं और वहीं के भारतीय विद्या भवन से संबद्ध विद्यालय से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद इन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफंस कॉलेज से गणित में बीएससी ऑनर्स की पढ़ाई कर रहे हैं। भानु बताते हैं कि गणित से उनकी दोस्ती पांच वर्ष की आयु में हुई जब एक दुर्घटना के कारण उन्हें एक वर्ष तक बिस्तर पर रहना पड़ा और डॉक्टरों ने उनके माता-पिता से कहा कि इस हादसे की वजह से उनकी देखने, सोचने और समझने की क्षमता पर असर पड़ सकता है। ऐसे में अपने दिमाग को व्यस्त रखने के लिए नन्हे भानु ने ‘मेंटल मैथ्स’ का अभ्यास शुरू किया और देखते ही देखते उन्हें गणित जैसे कठिन एवं दुरूह कहे जाने वाले अंकों के खेल से प्यार हो गया।

उनका कहना है कि गणित में पारंगत होना कुर्सी-मेज पर बैठकर पढ़ाई करने जैसा आसान नहीं है। यह दिमाग का एक बड़ा खेल है और एक तेज गणितज्ञ बनने के लिए दिमाग को बिजली की तेजी से सोचने के लिए अभ्यस्त करना पड़ता है। शुरुआती बरसों में भानु स्कूली पढ़ाई के अलावा छह से सात घंटे तक गणित का अभ्यास किया करते थे, लेकिन अभ्यास का यह तरीका कुछ बदल गया है। भानु ने बताया कि दिमाग को लगातार अंकों में उलझाए रखने के दौरान वह अपने रोजमर्रा के काम भी करते हैं। संगीत सुनते हैं, पढ़ाई करते हैं, लोगों से मिलते हैं और क्रिकेट भी खेलते हैं लेकिन इस दौरान भी उनके दिमाग में अंकों का कोई न कोई खेल चल रहा होता है।

उदाहरण के लिए अगर वह कहीं जा रहे हैं तो रास्ते में उनके आसपास से गुजरने वाले तमाम वाहनों के अंकों को उनका दिमाग अपने आप ही जोड़ता रहता है। इसके लिए उन्हें कोई अधिक प्रयास नहीं करना पड़ता। इसी तरह अगर वह किसी से बात करते हैं तो उनका दिमाग यह गिनने लगता है कि सामने वाले ने कितनी बार अपनी पलकें झपकाईं। उनके अनुसार यह सुनने में भले अजीब लगे, लेकिन इससे दिमाग लगातार चलता रहता है। भानु को रिकॉर्ड बनाना और अवार्ड जीतना अच्छा लगता है, लेकिन इसके माध्यम से वह दुनिया को यह बताना चाहते हैं कि गणित कोई हौव्वा नहीं है और दुनिया को गणितज्ञों की जरूरत है। उनका मानना है कि गणित को लेकर लोगों में डर है और वह इसी डर को निकालना चाहते हैं। गणितज्ञ को किताबी कीड़ा मान लेना ठीक नहीं है। गणित एक मजेदार विषय है और इसके इसी रूप को दुनिया के सामने लाना वह अपना दायित्व मानते हैं। वह उन लोगों से नाराज हैं, जो कैलकुलेटर के रहते इंसानों द्वारा कठिन गणनाएं करने के औचित्य पर सवाल उठाते हैं। उनका कहना है कि तेज रफ्तार कारों और विमानों के इस युग में जब उसैन बोल्ट 9.8 सेकंड में 100 मीटर की दौड़ पूरी करते हैं तो लोग उन्हें सिर आंखों पर बिठा लेते हैं, फिर हम लोगों पर सवाल क्यों। दुनिया को अपनी उपलब्धियों से अवगत कराने का सबका एक ही मकसद होता है कि हमारा शरीर कई बार कुछ ऐसा कर देता है, जो अकल्पनीय होता है। कुछ लोग अपने कौशल से ऐसा कुछ कर जाते हैं, जो दूसरों को असंभव लगता है।