शाहजहां-मुमताज़ की प्रेम कहानी

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-सीमा कुमारी

हिंदुस्तान की धरती पे ना जाने कितनी  शौर्य गाथाएं प्रसिद्ध हैं. इनमें से कुछ शक्ति और कुछ प्रेम हैं पर मैं आज मोहब्बत की बात करुँगी. हमारे देश ने दुनिया के सामने प्यार की कई मिसालें भी पेश की हैं जैसे हीर-रांझा, लैला-मजनू अनेकों कहानियां हैं. लोग इन कहानियों से प्रेरणा लेकर जीने मरने की कसमें आज भी खाते हैं. और प्यार करने वालों को लोग लैला-मजनू के नामों से पुकारना शुरू कर देते हैं. बोला जाता है कि मजनू जुदाई में दीवानों की तरह मारा-मारा फिरने लगा था. उसकी दीवानगी देखकर लोगों ने उसे ‘मजनू’ का नाम दिया. उसी नाम से प्रसिद्ध इब्न अल-मुलाव्वाह पूरे दुनिया में आज भी लोग उसे मजनूँ के नाम से जानते हैं और मजनूँ मोहब्बत का पर्याय बन गया है. और दोनों का नाम इस प्रकार जुड़ गया है मनो एक है तभी तो कहते है  लैला-मजनूँ . भारत के इतिहास में ऐसी प्रेम कहानियों ने जन्म लिया जिसने समाज की परवाह किये बिना प्यार को चुना. दुश्मनी दोस्ती में बदल गयी और दोस्त दुश्मन बन गए. भारत के इतिहास में कई असाधारण प्रेम कहानियां मिलती हैं जो दुनियाभर के लिए आज भी मिसाल है. आज ऐसी कहानी में से एक प्रेमी के बारे जानते हैं.

हिंदुस्तान के  प्रेम कहानियों में  शाहजहां-मुमताज का नाम लिए बिना शुरू करना गलत होगा. इनकी अनोखी प्रेम कहानी की निशानी आज भी हिंदुस्तान की सरजमीं पे ताजमहल के रूप में मौजूद है. जिससे देखने आज भी प्रेमी जोड़ा जाते रहते हैं. शाहजहां की यूं तो कई बेगमें थी लेकिन मुमताज के प्रति उनके प्रेम का जुनून ही कुछ ऐसी थी की उन्होंने संगमरमर के पत्थरों को भी जीवित कर दिया. आज भी ताजमहल की दरों-दीवारों से  मोहब्बत की खुसबू  आती है और आप इसे महसूस कर सकते है. शाहजहां और मुमताज की प्रेम कहानी किसी परिचय की मोहताज नहीं है. वहीं शाहजहां के पुत्र औरंगजेब को अपने पिता से नफरत हो गई. मध्यकालीन इतिहास में क्रूर और धर्मांध शासक के रूप में पहचाने जाने वाले औरंगजेब को उसके पिता शाहजहां की नफरत ने और क्रूर बना दिया. पिता शाहजहां के इस बुरे बर्ताव की वजह से उसकी क्रूरता तो बढ़ी वही भाइयों के प्रति घृणा भी पैदा हुई.