बुढ़ापे में क्यों बोझ लगने लगते हैं मां-बाप? जानें क्या करें और क्या न करें

    Loading

    -सीमा कुमारी

    पेरेंट्स के लिए उनके बच्चे ही उनकी पूरी दुनिया होती है और नन्हें बच्चों के लिए भी उनके मां बाप सबकुछ होते हैं।शायद इसलिए ही मां-बाप को भगवान का दर्जा दिया गया है। बचपन में हर बच्चे के लिए उसके पेरेंट्स से बढ़कर कुछ भी नहीं होता है। बच्चे की जरूरतें और उनकी खुशियां भी हर मां-बाप बखूबी समझते हुए निस्वार्थ भाव से पूरा करते हैं। साथ ही बच्चा भले एक हो या इससे अधिक सभी पेरेंट्स उनसे एक समान प्यार और देखभाल करते हैं।

    वहीँ बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तो उन्हें अपने बूढ़े मां-बाप बोझ क्यों लगने लगते हैं ? यह सच है कि, वृद्धावस्था  जिंदगी का एक ऐसा अंतिम पड़ाव है, जिसमें मनुष्य को सिर्फ प्यार चाहिए होता है। बुजुर्गों को केवल अपने बच्चों का साथ चाहिए होता है कि वो हमेशा उनके पास रहें, ताकि वो अपनी बूढी आंखों से उन्हें फलते-फूलते देखते रहें। जिसके सहारे वे अपने बुढ़ापे की नैया को पार लगा सकें। पर क्या असल में ऐसा हो पाता है ?

    क्या माली समान हमारे पिता जिन्होंने हमें एक फलते-फूलते वृक्ष में तब्दील किया, क्या वो हमारी छाँव में बैठ पा रहे हैं ? यह सवाल कोई व्यक्तिगत सवाल नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक प्रश्न है। जिसका जवाब हमारी 21वीं सदी कि पीढ़ी को देना होगा। कुछ बच्चे को उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं, तो कई उनके बारे में बिना सोचे-समझे घर से ही निकाल देते हैं।  आइए जानें इससे जुड़ी महत्वपूर्ण बातें:

    सोशल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, हर मां-बाप का सपना होता है कि उनके बच्चे की शादी अच्छे संस्कार वाली लड़की-लड़का से हो। साथ ही वह अपनी मैरिड लाइफ हंसी-खुशी से बिताए। लेकिन, कई बार बच्चा अपनी शादीशुदा जिंदगी में इतना बिजी हो जाता है, कि अपने पेरेंट्स को भूलने लगता है। वहीं, कई लोग तो उनसे अलग रहने लगते हैं, जो कि बहुत ही गलत है। ऐसा करना सभ्य समाज को शोभा नहीं देता है।

    अक्सर बच्चे बड़े होने पर खुद को ज्यादा समझदार समझने लगते हैं। उनके अनुसार, वे जो भी करते हैं वह एकदम सही होता है। ऐसे में वे अपने काम में पेंरेट्स की दखलंदाजी बिल्कुल बर्दाशत नहीं कर पाते हैं। ऐसे में कई बच्चे पेरेंट्स को छोड़ देते हैं। लेकिन बच्चे  यह भूल जाते हैं कि उनके पेरेंट्स ने उनसे अधिक दुनिया देखी होती है। ऐसे में हर चीज और परिस्थिति को समझने का उन्हें उनके अधिक समझ होती है। इसलिए दोस्तों, ऐसा करने से बचे। उन्हें आप से कुछ नहीं चाहिए सिर्फ आपका सम्मान और प्यार की ज़रूरत है।

    बचपन में जब बच्चे को मामूली चोट लगने और बीमार होने पर पेरेंट्स का दिल बैठ जाता है। ऐसे में वे बच्चे को स्वस्थ रखने व उनकी खुशी का बखूबी ध्यान के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं। यहां तक कि अच्छे सेहत के लिए व्रत तक भी रखते हैं, धन-दौलत लुटा देते हैं। ठीक उसी तरह बुढ़ापे में मां-बाप भी बच्चे की तरह हो जाते हैं। ऐसे में खास देखभाल की जरूरत होती है। मगर इस दौरान पेरेंट्स का ध्यान रखने की जगह पर बच्चों के लिए वे बोझ बनने लगते हैं। ऐसे में वे उनकी सेवा करने की जगह पर उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ना सही समझते हैं जो कि बेहद गलत है।

    ऐसे रखें अपने बूढ़े मां-बाप का ख्याल

    अधिक बिजी होने के बावजूद भी बात करना न छोड़ें। समय-समय पर पेंरेट्स से बात करें। अगर आप नौकरी के कारण किसी दूसरे शहर में रहते हैं, तो समय निकालकर उनसे मिलने जाएं। आप रोजाना कुछ समय निकाल कर उन्हें फोन पर भी बात कर सकते हैं। भले ही वे आपसे नाराज हों। इसके अलावा, उनकी भावनाओं को समझने की कोशिश करें। अपने बच्चे व फैमिली की तरह मां-बाप की भी हर जरूरत का ध्यान दें, क्योंकि उनकी जिंदगी चंद दिनों की मेहमान है।  

    इन सभी बातों पर जरूर अमल करें। क्योंकि मां-बाप से बड़ा कोई धाम नहीं होता है।